पितृसत्ता धोखा है, धक्का मारो मौका है

पितृसत्ता का पिता या पुरुष से सम्बन्ध

राजेश शर्मा

     "पितृसत्ता धोखा है, धक्का मारो मौका है" पिछले दिनों यह जुमला सोशल मिडिया मे बहुत लोकप्रिय रहा। जहाँ कई लोगो ने इसका खूब इस्तेमाल किया वहीँ कुछ लोग पितृसत्ता को धक्का मारने के प्रस्ताव का विरोध करते भी दिखे। दरअसल पिता की सत्ता को ये लोग चुनौती देना नहीं चाहते। यक़ीनन हिन्दुस्तानी संस्कृति मे पिता का महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन जब हम बात पितृसत्ता की करते है तो उसका मतलब सिर्फ पिता से नहीं होता। सतही सोच रखने वाले दोनों पक्षों के लोग पितृसत्ता की बात आते ही पिता को लेकर बहस करने लगते है जबकि यह लड़ाई पिता या पुरुष के साथ कम और उस सोच के साथ ज्यादा है जो सदियों से समाज की एक परम्परा बनी हुई है।

Rajesh Sharma Writer Poet राजेश शर्मा कवि लेखक पितृसत्ता का पिता या पुरुष से सम्बन्ध    पितृसत्ता का अर्थ समझने की जरुरत है। दरअसल पितृसत्ता एक असंतुलन की स्थिति है जिसमे परिवार का कोई पुरुष परिवार व परिवार के सभी सदस्यों के बारे मे निर्णय लेता है और इस प्रक्रिया मे स्त्री या स्त्री भावनाओं की कोई भूमिका नहीं होती। क्योंकि परिवार और समाज मे केवल पुरुष ही नहीं, स्त्री भी एक पक्ष है इसलिए उस पक्ष को नजरंदाज करने से ये असंतुलन पैदा होता है। क्योंकि निर्णय लेने वाला पुरुष अधिकतर एक पिता होता है इसलिए इस व्यवस्था को पितृसत्ता कहा जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की ये व्यवस्था समाज मे इतनी रच बस गई है की यदि परिवार की भाग-दौड़ किसी स्त्री के हाथ मे भी आ जाती है तो उसके निर्णय भी इसी व्यवस्था से प्रभावित होते है। स्वयं स्त्री होकर भी वह स्त्री भावनाओं के साथ न्याय नहीं कर पाती। घर के सभी निर्णय लेने वाली स्त्री भी जब शिक्षा, संपत्ति, व्यापार आदि का बराबर बंटवारा न कर अपने पुत्र के पक्ष मे जाती है तो भले ही सत्ता माता के हाथ मे हो लेकिन यह पितृसत्ता का ही एक उदहारण है। लेकिन दूसरी तरफ ऐसे भी परिवार है जहाँ परिवार की भाग-दौड़ भले ही पुरुष के हाथ मे हो परन्तु स्त्री पक्ष को नज़रंदाज़ नहीं किया जाता बल्कि परस्पर सहमती से निर्णय लिए जाते है। इस प्रकार के कुछ एक परिवार पितृसत्ता नामक व्यवस्था से बाहर है।

    परिवर्तन की यह लड़ाई वास्तव मे सत्ता परिवर्तन से नहीं बल्कि संतुलन स्थापित करने से सफल होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि घर की भाग-दौड़ चाहे जिस भी पक्ष के हाथ मे हो, वह दूसरे की भावनाओं को नज़रंदाज़ न करें। परिवारों से ही समाज का निर्माण होता है। परन्तु परिवारों का निर्माण व्यक्तियों से होता है। और व्यक्तियों के पास मिल-जुल कर रहने के सिवा कोई चारा नहीं है, इसलिए पितृसत्ता को धक्का मारना ही होगा।

Rajesh Sharma Writer Poet राजेश शर्मा कवि लेखक

राजेश शर्मा

स्नातक (कला)
21.11.1983
जन्म - अमृतसर (पंजाब)
डी-05, आजाद कालोनी, बुद्ध विहार, दिल्ली
संपर्क : 09711949635
नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् मे सहायक लिपिक के पद पर कार्यरत

एक टिप्पणी भेजें

9 टिप्पणियाँ

  1. लेख अच्छा है.....कुछ असहमतियाँ भी जायज हैं.......

    जवाब देंहटाएं
  2. sir ji bahut badiya likha he souch bahut gehri he apki

    जवाब देंहटाएं
  3. agreed as the article represented the mind set of Indian society

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
NDTV Khabar खबर