दिल्ली में धमकती पूरब की ठुमरी - भरत तिवारी


शेखर सेन व गिरिजा देवी

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पूरब अंग गायकी उत्सव : गिरजा देवी पुरस्कार 2016-17

भरत तिवारी





‘वीएसके बैठक’ दिल्ली की वह संगीत संस्थान है जो संगीत को पारंपरिक बैठक अंदाज़ में संगीत रसिकों तक पहुँचा रही है. विनोद एस कपूर द्वारा दो दशकों पहले शुरू होने के बाद से बैठक में 500 से ज्यादा शीर्ष कलाकार व उभरते कलाकार हिस्सा ले चुके हैं. बैठक भारतीय शास्त्रीय संगीत का आनंद उठाना भर नहीं है बल्कि यह उस विरासत को बचाए रखना है जो शायद इसके नहीं होने पर अब तक ख़त्म हो चुकी होती.
विनोद एस कपूर





रविवार को राजधानी में वीएसके बैठक के तीन दिन चले “पूरब अंग गायकी उत्सव : गिरजा देवी पुरस्कार 2016-17” कार्यक्रम के पुरस्कार वितरण व समापन में ठुमरी सुनने वालों की ज़बरदस्त मौजूदगी थी. इस बीच पहले मंच पर, अप्पाजी गिरिजा देवी ने आठ गायिकाओं को सम्मानित किया — अबंती भट्टाचार्य को सर्वोत्तम कलाकार, पियु मुखर्जीसांता कुंडू को विकसित कलाकार तथा अन्य पांच कलाकारों अपराजिता भट्टाचार्य, अत्री कोतल, काकोली मुखर्जी, कोयल दासगुप्ता नाहा और शिल्पी पॉल की प्रस्तुति को सराहा गया. कलाकारों का अप्पाजी के प्रति स्नेह और अप्पाजी का उनके प्रति वात्सल्य हृदय से आता दिख रहा था.
अप्पाजी गिरिजा देवी ने आठ गायिकाओं को सम्मानित किया




तत्पश्चात जयपुर अतरौली गायकी घराने की भारतीय शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध कलाकार अश्विनी भिडे देशपाँडे ने ठुमरी और झूला सुना कर बैठक में संगीत का रंग भर दिया, श्रोताओं पर चढ़ा यह पुरबिया-रंग, आगरा घराने के बेहतरीन गायिका सुभ्रा गुहा ने, मिश्र पीलू में ठुमरी और एक दादरा सुना और गहरा दिया. शाम की तीसरी प्रस्तुति भातखण्डे संगीत संस्थान सम-विश्वविद्यालय की कुलपति, जयपुर-अतरौली घराने की संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित श्रुति सडोलीकर काटकर की, दादरा ‘जिया में लागे आन बान’ और एक अन्य दादरा थी, यह इस कदर सुरीली पेशकश थी कि श्रोता वाह-वाह करते रहे.
अश्विनी भिडे देशपाँडे
सुभ्रा गुहा
श्रुति सडोलीकर काटकर




शाम की समाप्ति महा-प्रसाद से होनी थी, यानी 88 वर्ष की युवा ‘ठुमरी की रानी’ का गायन. पहली दफ़ा इस कार्यक्रम में गए, मुझको, नहीं पता था कि कैसा संगीत सुनने मिलेगा. मगर अब तक मैं संगीत के रंग में पूरी तरह उतर चुका था और अप्पाजी ने जब ‘हमसे नजरिया कहे फेरी ओ बालम’ राग बिहाग में ठुमरी और उसके बाद भैरवी में ‘बाबुल मोरा नईहर छूटा जाये' सुनाया तो आँखें - सिर्फ मेरी ही नहीं बहुतों की - ख़ुशी से भावविहल हो रही थीं.









गिरिजा देवी व सुनंदा शर्मा 
गिरिजा देवी व मंजरी सिन्हा
गिरिजा देवी , शोभना नारायण व श्रीमती पसरीचा
सुआंशु खुराना
गिरिजा देवी व अविनाश पसरीचा

शाम के दो और सरप्राइज थे, एक तो संगीत की वरिष्ठ आलोचक मंजरी सिन्हा का कार्यकम सञ्चालन, जो सुखद रूप से साहित्यिक होते हुए भी चुटकियों से भरा जीवंत था और दूसरा संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष शेखर सेन को गिरिजा देवीजी का मंच पर अपने साथ गायन के लिए बैठाना रहा -- शेखर सेन की माता ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका और संगीतज्ञ रही हैं -- और उनका सुरों को पूरी तरह काबू में रखते हुए बीच-बीच में गिरिजाजी का साथ देना श्रोताओं को मोहता रहा.

कार्यक्रम में अविनाश पसरीचा, राजन मिश्रा, विनोद दुआ, माला सिकरी, शोभना नारायण, सुनंदा शर्मा व सुमन डूंगा आदि भी संगीत का आनंद उठाते दिखे.



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1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-08-2017) को "गम है उसको भुला रहे हैं" (चर्चा अंक-2712) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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