गुलज़ार: 1857 | #Gulzar : 1857


1857

गुलज़ार





एक ख़्याल था...इन्क़लाब का
इक जज़बा था
सन अठारह सौ सत्तावन!!
एक घुटन थी, दर्द था वो, अंगारा था, जो फूटा था
डेढ़ सौ साल हुए हैं उसकी
        चुन चुन कर चिंगारियॉं हमने रोशनी की है
कितनी बार और कितनी जगह बीजी हैं वो चिंगारियॉं हमने,
                                      और उगाये हैं पौदे उस रोशनी के!!
हिन्सा और अहिन्सा से
कितने सारे जले अलाव
कानपुर, झांसी, लखनउ़, मेरठ, रुड़की, पटना ।



आज़ादी की पहली पहली जंग ने तेवर दिखलाये थे
पहली बार लगा था कोई सांझा दर्द है बहता है
हाथ नहीं मिलते पर कोई उंगली पकड़े रहता है
पहली बार लगा था खूँ खौले तो रूह भी खौलती है
भूरे जिस्म की मिट्टी में इस देश की मिट्टी बोलती है

पहली बार हुआ था ऐसा....
गांव गांव....
रूखी रोटियॉं बटती थीं
ठन्डे तन्दूर भड़क उठते थे!
चंद उड़ती हुई चिंगारियों से
सूरज का थाल बजा था जब,
वो इन्क़लाब का पहला गजर था!!

गर्म हवा चलती थी जब
और बिया के घौंसलों जैसी
पेड़ों पर लाशें झूलती थीं
बहुत दिनों तक महरौली में
आग धुंऐं में लिपटी रूहें
दिल्ली का रस्ता पूछती थीं ।

उस बार मगर कुछ ऐसा हुआ...
क्रान्ति का अश्व तो निकला था
पर थामने वाला कोई न था
जांबाज़ों के लश्कर पहुंचे मगर
सालारने वाला कोई न था

कुछ यूँ भी हुआ....
           मसनद से उठते देर लगी
          और कोई न आया पांव की जूती सीधी करे
          देखते देखते शामे अवध भी राख हुई ।
चालाक था रहज़न, रहबर को
इस ‘‘कूऐ–यार’’ से दूर कहीं बर्मा में जाकर बांध दिया ।
अब तक वो जलावतनी में है
काश कोई वो मिट्टी लाकर अपने वतन में दफ़्न करे ।

आज़ाद हैं अब...
अब तो वतन आज़ाद है अपना
अब तो सब कुछ अपना है
इस देश की सारी नदियों का अब सारा पानी मेरा है
लेकिन प्यास नहीं बुझती
ना जाने मुझे क्यूं लगता है
            आकाश मेरा भर जाता है जब
            कोई मेघ चुरा ले जाता है
            हर बार उगाता हूँ सूरज
            खेतों को ग्रहण लग जाता है

अब तो वतन आज़ाद है मेरा....
चिंगारियॉं दो.... चिंगारियॉं दो....
मैं फिर से बीजूं और उगाऊं धूप के पौदे
रोशनी छिड़कूं जाकर अपने लोगों पर
मिल के फिर आवाज़ लगाऐं....
इन्क़लाब
इन्क़लाब
इन्क़लाब!!

बोस्कियाना, पाली हिल, बान्द्रा (पश्चिम), मुम्बई-400050
साभार नया ज्ञानोदय

nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज