कविता—दोहे—ग़ज़ल—ओ—नज़्म, पक्की है युवा कवि गौरव त्रिपाठी के कलम की सियाही अलमारी कभी गौर से देखा है? घर की अलमारी…
योजना आयोग की पूर्व सदस्या सईदा हामिद की दो नज़्में आसिफा भेड़ें चराते -चराते कहाँ खो गई किस जंगल में जा बस गई मेरी बेटी तुमपे मन्…
वो जला रहे हैं ये गुलिस्तां — भरत तिवारी वो जला रहे हैं ये गुलिस्तां हो बुझाने वालों तुम कहाँ यहाँ आग घर तक पहुँच रही ज…
खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो? गुलज़ार खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो? एक ख़ामोश-सा जवाब तो है। डाक से आया है तो कुछ कहा होगा "कोई …
हाल की घटनाओं पर जाने-माने ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव की नई नज़्म ये टोपी और तिलक-धारी ~ आलोक श्रीवास्तव टोपी, कुर्ता, छोटा जामा हर रोज…
वो भूली दास्तां ... एक रात हुआ कुछ ऐसा - कि मेरे बिस्तर पर लेटते ही और नींद के आने से पहले, एक नज़्म उतर आई, मेरी इन बंद आँखों में। पहले कुछ …
क्या कोई फ़लक पर चाँद रखने आ रहा है? गुलज़ार दियारे शब में क्या कोई फ़लक पर चाँद रखने आ रहा है ? किसी आशिक़ के आने की ख़बर है ? या को…
मैं नीचे चल के रहता हूं.... जनाज़ा गुलज़ार मैं नीचे चल के रहता हूं ज़मीं के पास ही रहने दो मुझ को मुझे घर से उठाने में बड़ी आसानी होगी …
1857 गुलज़ार एक ख़्याल था...इन्क़लाब का इक जज़बा था सन अठारह सौ सत्तावन!! एक घुटन थी, दर्द था वो, अंगारा था, जो फूटा था डेढ़ सौ साल हुए…
को-पायलट* गुलज़ार बहुत कम लोग थे फ्लाइट में, और वो था उस आधी रात की फ्लाइट में कम ही लोग होते हैं अँधेरे में चले थे हम, मगर कुछ देर मे…