क्या है गोधरा का सच..? - देवाशीष प्रसून What is the truth of Godhra - Devashish Prasoon



चर्चा में दो किताबें 
गोधरा दंगों के बाद मोदी पर दो लेखकों के विरोधाभासी तर्क
-------------------------------------------------

दो किताबें, विषय एक, लेकिन दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग। देश के दो बड़े लेखकों ने इनमें गोधरा के दंगों पर अपने -अपने तर्क दिए हैं। एक मोदी को गोधरा में कार सेवकों की मौत के बाद फैले दंगों का दोषी बताते हैं तो दूसरे बताते हैं कि मोदी ने सही समय पर सही कदम उठाए। इन दिनों ये किताबें चर्चा में हैं।


द फिक्शन ऑफ फैक्ट फाइंडिग : मोदी एंड गोधरा
लेखक मनोज मित्ता वरिष्ठ पत्रकार, कानून व मानवाधिकार मामलों के विशेषज्ञ, टाइम्स ऑफ इंडिया से संबद्ध रहे हैं।

इस किताब में बताया है कि कारसेवकों की मौत के बाद भड़की हिंसा में कैसे राज्य की कानून-व्यवस्था शिथिल पड़ी रही। साथ ही वे पहलू जिनकी अनदेखी से मोदी आरोप मुक्त हो गए...
कारसेवकों की अधजली लाशें विश्व हिंदू परिषद को सौंप दी गई थीं। यह कानूनन गलत था। किसी कारण से नियम तोड़े भी गए तो इस मामले में हुए पत्राचार की जांच होनी चाहिए थी।

विहिप के कार्यकर्ताओं ने अगले दिन बंद की अपील की और अहमदाबाद लाकर उन क्षत-विक्षत शवों का जुलूस निकाला, जिससे पूरे गुजरात में हिंसा भड़क गई। क्या मोदी इसे रोक नहीं सकते थे? एसआईटी ने इस पहलू की अनदेखी क्यों की?

वड़ोदरा रेंज के पुलिस प्रमुख दीपक स्वरूप के बयान का हवाला है, जिसे रपट में नहीं शामिल किया गया - कांड के दिन मोदी रेलवे यार्ड में हिंदू भीड़ के साथ थे, बाद में उन्होंने कलेक्टोरेट में अफसरों, हिंदू नेताओं और मीडिया से मुलाकात की। सवाल यह है कि मोदी की सक्रियता के बाद भी लाशें विहिप को सौंपी गईं, जांच एजेंसियों ने इसको नजरअंदाज क्यों किया ?

एसआईटी की पूछताछ में मोदी ने गुलबर्ग सोसायटी में सांसद एहसान जाफरी को भी जिंदा जलाने पर कहा था- रात को कानून-व्यवस्था के रिव्यू के वक्त उन्हें पता चला। मिट्टा ने सवाल उठाया कि घटना के दिन मोदी 2 घंटे उसी इलाके में थे। तो उन्होंने कोई कदम क्यों नहीं उठाए।



मोदीनामा (ई-बुक)

लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर, विख्यात शिक्षाविद्, विकासशील समाज अध्ययन केंद्र (सी.एस.डी.एस) में वरिष्ठ फेलो और मानुषी की संपादक हैं।

इंटरनेट पर वायरल यह किताब मोदी की वकालत करती है। दूसरे अध्याय में मधु बताती हैं कि गोधरा ट्रेन नरसंहार के बाद के दंगों को काबू करने के लिए मोदी ने क्या कदम उठाए...

मोदी ट्रेन हादसे के बाद गोधरा पहुंचे और गोधरा व अन्य दंगा-संभावित इलाकों में कफ्र्यू लगाने का निर्देश दिया। सभी पुलिस आयुक्तों, जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को मुख्यालय में रहने, स्थिति पर नज़र रखने और एहतिहाती कदम उठाने को कहा।

उसी दिन, कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए मोदी ने केंद्र सरकार से केंद्रीय अद्र्ध सैनिक बलों की 10 कंपनियां और रैपिड एक्शन फोर्स की 4 कंपनियां मुहैया कराने का अनुरोध किया। अगले दिन गृहमंत्री से सेना तैनात करने को कहा। जल्द ही सेना और महाराष्ट्र पुलिस को वहां तैनात किया गया।

28 तारीख को दंगा भड़क जाने के एक दिन बाद हालात काबू में लेने के लिए शूट एट साइट का आदेश जारी किया। 2 मार्च तक पुलिस की गोली से 16 लोग मारे जा चुके थे, जिसमें 12 हिंदू थे। 482 हिंदुओं और 229 मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया।

दंगा न भड़के, इसके लिए 217 एहतिहाती गिरफ्तारियां की गईं, जिसमें 137 हिंदू और 80 मुसलमान थे। 2 मार्च को एहतिहाती गिरफ्तारियों की संख्या 573 पहुंच गई, जिसमें 477 हिंदू थे। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy