गुलज़ार - दिखाई देते हैं, धुन्ध में अब भी साये कोई | #Ghazal #Gulzar


गुलज़ार 

... ग़ज़ल



Photo: Bharat Tiwari


दिखाई देते हैं,  धुन्ध में अब भी साये कोई
मगर  बुलाने से  वक़्त लौटे  न आये  कोई 




मेरे  मुहल्ले  का  आसमां सूना हो गया है
पतंग  उड़ाये, फ़लक  में  पेचे  लड़ाये कोई 


वो ज़र्द पत्ते  जो पेड़  से  टूट  कर  गिरे  थे
कहां गये  बहते  पानियों में   बुलाये  कोई 
   

ज़इर्फ़ बगर्द के हाथ में र’अशा आ गया है
जटायें  आंखों पे  गिर रही हैं,  उठाये कोई


मज़ार   पे   खोल   कर    ग्रेबां,   दुआयें   मांगीं
जो आये अबके, तो लौट कर फिर न जाय कोई

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