#चतुर_सियासत: दर्द तो था मगर गाय के लिए — अभिसार शर्मा #CowVigilantism

बेशक, अखलाक की हत्या अखिलेश के राज में हुई थी, मगर हत्यारों और आरोपियों का महिमामंडन आपके नेताओं और केंद्र के मंत्रियों ने किया था... — अभिसार शर्मा 



मोदीजी और शाहजी की सोच

Abhisar Sharma on PM's message to Cow Vigilantes



मैं प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की सियासी सोच और चतुराई का कायल हो गया हूँ। विपक्ष और पत्रकार महोदय जहाँ सोचना बंद कर देते हैं, मोदीजी और शाह की सोच वहां से आरम्भ होती है…खासकर मीडिया जब भक्त हो और विपक्ष कन्फ्यूज्ड । गौर कीजिये क्या हुआ था, जब प्रधानमंत्री ने गौरक्षकों के आतंक पे अपना बयान दिया था। न्यूज़ चैनल्स ने इसे गौ के नाम पर आतंक पर मोदी का बड़ा वार करार दिया। बीजेपी के एक नेता के पैसे से चलने वाले, सरकार के चाटुकार चैनल ने तो ये तक कह दिया के ये मोदी का विपक्ष को करार तमाचा है। बकौल इस और इसके जैसे कुछ और चैनल्स के, क्या अब विपक्ष और उदारवादी और कुछ गिने चुने पत्रकार मोदी के खिलाफ अपना propaganda बंद करेंगे? वाकई? क्या विपक्ष और सरकार से सवाल करने वाले गिने चुने पत्रकारों को मोदीजी का एहसानमंद होना चाहिए के आपने कुछ तो कहा? मगर कहा क्या?

दर्द तो था, मगर गाय के लिए और उस चार साल के बच्चे के लिए

जैसे मैंने शुरुआत में कहा के मैं मोदी और शाह की सियासी सोच का कायल हूँ। कुछ कहा भी नहीं और आभास भी दे दिया कि — हमने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है। देश और मीडिया उनके बयान से इसलिए प्रभावित था क्योंकि ‘मोदीजी इमोशनल हो गए थे’। उनकी आँखों में आंसू थे। मगर किसके लिए? जुनैद के लिए? पहलु खान के लिए? या अखलाक के लिए? अखलाक याद है न? जिसकी हत्या के आरोपी के अंतिम संस्कार में देश के पर्यटन मंत्री शामिल हुए थे और दिवंगत आत्मा के शरीर को तिरंगे से लिपटा गया था?

गौ-हत्या पर इमोशनल मोदीजी

खैर, ध्यान से पढियेगा जो मैं आगे लिख रहा हूँ। प्रधानमंत्री ने अपने इस इमोशनल भाषण में एक घटना का ज़िक्र किया। बताया कि किस तरह एक चार साल का बच्चा एक गाय के नीचे आ गया (और यहाँ प्रधानमंत्री पहली बार रोआँसे हुए) और बाद में गाय ने लड़के के घर के सामने खड़े होकर अपने प्राण त्याग दिए (यहाँ दूसरी बार मोदीजी का गला भर्रा गया) और इसी इमोशनल अपील के बाद उन्होंने कहा के ऐसी पावन गाय के नाम पर आतंक मचाना बंद करें। यानि दर्द तो था, मगर गाय के लिए और उस चार साल के बच्चे के लिए। ज़ाहिर है, अगर प्रधानमंत्री की इस बात पर यकीन किया जाए तो वाकई ये घटना मार्मिक थी...मगर चतुर सियासी सोच के धनी मोदीजी ने इस बयान के ज़रिये, गाय के नाम पर कट्टर सोच रखने वालों को नाराज़ नहीं किया। बल्कि प्रायश्चित करने वाली गाय के लिए आंसू बहाकर मोदीजी ने बता दिया कि उनके लिए गाय बहुत पावन है। होनी भी चाहिए, मेरे लिए भी है। यानि गौरक्षक खुश ! उसे मंच पर ऐसा प्रधानमंत्री दिखा, जिसकी आँखों में गाय के लिए तो आंसू हैं, मगर 15 साल के जुनैद, पहलु खान और अखलाक... उसका ज़िक्र तक नहीं। मानो गौ रक्षा या हिंदुत्व के नाम पर इनकी मौत इस पूरे घटनाक्रम का छोटा-सा पहलू है। इसे कहते हैं सियासत। इसे कहते हैं मास्टर-स्ट्रोक। गाय और उसके रक्षक भी कलंकित नहीं हुए और मीडिया का पेट भी भर गया।

दरअसल इसके पीछे कुछ हदतक अमित शाह की भी सोच है। याद है आपको — गुजरात के ऊना में दलितों पर हुए हमले के बाद मोदीजी की जुबान से गलती से फिसल गया था के अस्सी फीसदी लोग गौरक्षक के नाम पर पाखण्ड और आतंक फैला रहे हैं? क्योंकि यहाँ दाव पर बड़ा vote bank था और उत्तर प्रदेश के चुनाव होने वाले थे। खबर की मानें तो ये है कि अमित शाह ने मोदीजी के इस अस्सी-बयान पर आपत्ति जताई थी और इस बात को लेकर दोनों में चर्चा भी हुई थे और यह सहमति बनी के आगे से न 80 फीसदी जैसा कोई आंकड़ा ही दिया जाएगा और न ही गौरक्षकों को सीधे चुनौती दी जाएगी।

मोदीजी के ताज़ा बयान में वो सहमति दीखती है। इसमें गौरक्षकों को खुश करने के लिए गाय का महिमामंडन है और साथ ही —  बहुत खूबसूरती से —  मारे गए लोगों के लिए सीधे हमदर्दी नहीं जताई गयी है। अमित शाह ने तो ये तक बोल दिया है के हाल मे गाय के नाम पर हो रही हत्याएं कोई नयी बात नहीं है और पहले इससे ज्यादा गौ हत्याएं होती थी। हर बार की तरह इसमें उन्होंने कोई तर्क या आंकड़े नहीं दिए। वो पहले भी बोल चुके हैं कि हमारे शासन में सैनिकों की जान ज्यादा महफूज है और हमसे पहले ज्यादा सैनिक मारे जाते थे। यही बात वो किसानों के बारे मे कह चुके हैं और अगर कोई पूछे कि ऐसा आप किस आधार पर कह रहे हैं? तो मान्यवर चुप होने की नसीहत पहुँचा देते हैं। शाहजी को चुनौती देने की भला किसकी हिम्मत हो सकती है ?

भारत के इन दो सबसे ज्यादा ताक़तवर शख्सियतों ने बेशक बेहद चतुराई से अपने कट्टर vote-bank को बगैर नाराज़ किये, गाय के नाम पर चल रही हिंसा पर टिप्पणी दी है, मगर इस सियासी चतुराई के चलते दोनों ही इंसानियत और अपने फ़र्ज़ के लिए बुरी तरह नाकाम साबित हुए हैं। आपका फ़र्ज़ गाय के नाम पर किसी अतीत की घटना पर आंसू बहाना नहीं था, बल्कि एक स्टेट्समैन (statesman ) का परिचय देते हुए, जुनैद और पहलु के परिवार के ज़ख्मों पर मरहम लगाना होना चाहिए था। आपने ऐसा नहीं किया। आप अब भी सियासी-खेल खेल रहे हैं। मैं जानता हूँ आपके चाटुकार कहेंगे — ये सीधे तौर पर राज्य का विषय है और वैसे भी किसी समुदाय विशेष का नाम क्यों लेना। अरे तो क्या भूल गए तुम कि ऊना में दलितों पर हुए हमले के बाद, उत्तर प्रदेश चुनावों से ठीक पहले क्या कहा था?


बकौल मोदीजी, मेरे दलित भाइयों को छोड़ दो, बेशक मेरी जान लेलो, मगर मेरे दलित भाइयों को छोड़ दो। यानी कि गज़ब है वाकई! क्या प्रधानमंत्रीजी ये बोलने की हिम्मत कर सकते थे, कि मेरे मुसलमान भाइयों को छोड़ दो और बदले में मेरी जान लेलो? ऊना भी तो एक ही घटना थी न? नहीं?


सच तो ये है कि जुनैद, पहलु, अखलाक की हत्याओं से एक बड़ा सन्देश जा रहा है। और हत्याओं में शुमार हैं, आपकी सियासी सोच से इत्तफाक रखने वाले लोग। आपके समर्थक। झारखण्ड की हत्या में तो बीजेपी के एक महानुभाव सामने आ गए हैं। अखलाक की हत्या में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

और हाँ अमित शाहजी बेशक, अखलाक के हत्या अखिलेश के राज में हुई थी, मगर हत्यारों और आरोपियों का महिमामंडन आपके नेताओं और केंद्र के मंत्रियों ने किया था... आपकी सियासी चतुराई और कुछ नेताओं का रवैया इस आग में बारूद डालने का काम कर रहा है। दुःख के बात ये है कि गाय के नाम पर ये हिंसा जारी रहेगी, क्योंकि आप संवेदनहीन हैं, आप पत्थरदिल हैं और आपके राज्यों की सरकारों का रवैया भी मज़लूम के हक़ के खिलाफ है।

मुझे इंतज़ार रहेगा, जब बगैर किसी लाग लपेट के आप और मेरे प्रधानमंत्री, जुनैद की माँ के आंसू भी पोंछेंगे।




Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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