भारत के दो मुख्य और जीवित ध्रुपद परंपराओं में से एक है। यह माना जाता है कि 17वीं शताब्दी में, दरभंगा मल्लिक परंपरा के पूर्वजों ने
से संगीत की शिक्षा ली, भूपत खान अवध के नवाब शुजा-उदौला के दरबार में मुख्य संगीतकार थे। पंडित क्षितिपाल मल्लिक दरभंगा घराने के प्रख्यात संगीतज्ञ थे; आपको समर्पित सोसाइटी द्वारा हर वर्ष ‘पंडित क्षितिपाल मल्लिक ध्रुपद उत्सव’ का आयोजन होता है।
शनिवार की शाम, दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में, दो दिवसीय उत्सव के दूसरे दिन पद्मश्री सम्मानित
गुंदेचा बंधुओ ने पंडित क्षितिपाल मल्लिक ध्रुपद सम्मान ग्रहण करने के पश्चात, अब तक ध्रुपद प्रेमियों से भर चुके हाल में,
राग मेघ में गायन से शुरुआत की। रमाकांत और उमाकांत भाइयों ने ध्रुपद को, बदलते वक़्त की ज़रूरत के महत्व को समझते हुए, ध्रुपद में वर्तमान परिप्रेक्ष्य के अनुरूप, न सिर्फ गायन बल्कि अन्य विधाओं, मसलन, नृत्यांगना चंद्रलेखा व आधुनिक कलात्मक नर्तक, कोरियोग्रफर अस्ताद देबू जैसे कलाकारों के काम के साथ जोड़ने जैसे, सफल प्रयोगों से ध्रुपद की कम होती लोकप्रियता को, वह उत्थान दिया है, जिससे आज संगीत की यह प्राचीन विधा अपना जादू बिखेर रही है। उनकी अगली प्रस्तुति
राग अडाना में शिव भजन 'आदीदेव शक्ति' थी, जिसमें अत्यंत खूबसूरत और जिस शक्तिशाली गायन के लिए बंधुओ को सम्मान से देखा जाता है, गायन से अलौकिक माहौल बना दिया; गायन में संगत पर
अखिलेश गुंदेचा, पखावज;
संगीता चोपड़ा तानपुरे पर और
संजीव झा तानपुरा व गायन सहयोगी रहे।
शाम के पहले चरण में
प्रभाकर नारायण पाठक मल्लिक ने
राग मारवा में धमार और
मियां की मल्हार का गायन किया। प्रभाकर पंडित क्षितिपाल मलिक के प्रपौत्र हैं। कार्यक्रम का संचालन
चन्द्र प्रकाश तिवारी ने किया।
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