कि सुखनवरों का खून क्यूँ कर ठण्डा हो गया है दर्द अंगड़ाई नहीं लेता ये क्या हो गया है ?
क़त्ल या हो कोई बे-आबरू तुम्हें क्या मतलब ? ए खुदा तू ही बता, इन्सां को क्या हो गया है। कितनी क़ुरबानी चाहते हो कि चमन जल जाए क़ि नींद टूट जाए तुम्हारी, होश हो गया है।