कवितायेँ: स्वप्निल श्रीवास्तव
♒ बांसुरी
तुमने यातना देकर मुझे
बांसुरी बनाया
मैं तुम्हारे आनंद के लिये बजता रहा
फिर रख दिया जाता रहा
घर के अंधेरे कोनों में
जब तुम्हें खुश होना होता था
तुम मुझे बजाते थे
मेरे रोंम रोम में पिघलती थी
तुम्हारी सांसें
मै दर्द से भर आया करता था
तुमने मुझे बांस के कोठ से अलग किया
मुझे ओठों से लगाया
मैं इस पीड़ा को भूल गया कि
मेरे अंदर कितने छेद हैं
मैं तुम्हारे अकेलेपन की बांसुरी हूं
तुम नही बजाते हो तो भी
मैं आदतन बज जाया करता हूं
♒ इसी दुनियां में
जंगल की तरफ उड़ जाते
मछली होते तो
नदी नदी होकर
पहुंचते समुंदर
हवा होते तो बांस के जंगलों में
बांसुरी की तरह बजते
साधु हम मनुष्य हैं
हमे अपने दुख सुख के साथ
इसी दुनियां में रहना है
♒ जादूगर
वे आदमी को स्टेज से गायब कर देते हैं
एक लड़की को खरगोश में और खरगोश
को लड़की में बदल देते है
एक रूमाल से बना देते है कई रूमाल
रूमाल को रंगीन चिड़ियां बनाकर उड़ा देते हैं
वे सबके सामने एक आदमी को आरी से
चीर देते हैं
लेकिन आदमी साबुत बच जाता है
वे हमारे ज्ञान को अपने सम्मोहन से
काटते है
जादूगर के खेल स्टेज तक सीमित नही
रह गये हैं
उनके क्षेत्र का हो रहा है विस्तार
हम लाख चाह कर भी जादूगर से
नही बच सकते
खेल खेल में वे छीन लेते है हमारी खुशी
खेल खेल में वे हमारा गला काट देते हैं
हम समझते हैं यह तो जादू है
लेकिन वास्तव में यह हैं हत्या.
♒ स्वर्ण मृग
हाथ में लिये हुये तीर धनुष
जो संपन्न है उनके हाथ में है बंदूक
अंधेरे में चमक रहा है स्वर्ण मृग
उसके हाथ पांव देह सोनें के बने हैं
स्वर्ण मुद्राओं की तरह चमक रही है
उसकी आंखें
वह हमारी जिंदगी के बींहड़ में
भाग रहा है
वह छलांग नही भरता हवा में उड़ता है
आखेटक उसके पीछे भाग रहे हैं
यह स्वर्ण मृग मिल जाय तो जीवन
हो जाय धन्य
स्वर्ण मृग के छाल पर आयेगी अच्छी नींद
बगल में सोयी होगी स्वर्ण कन्या
आयेगे सोनें के सपने
स्वर्ण मृग के पीछे भागे थे मर्यादा पूरूषोत्तम
उन्हें स्वर्ण मृग तो नही मिला लेकिन उन्हें
जीवन में न जाने क्या क्या गवाना पड़ा
यह जानते हुये भी लोग स्वर्ण मृग के पीछे
भाग रहे हैं
♒ चींजों की सही जगह
लेकिन मैं इस हुनर को नही सीख पाया
जहां दिमाग को रखना चाहिये वहां रख दिया दिल
जिस खाते में दोस्तो की जगह थी वहां
दुश्मनों को रखने की वेवकूफी कर डाली
चश्में की जगह चाकू और चाकू की जगह चश्मा रखने
की सजा मैं भुगत रहा हूं
जिस शहर में घर बनाना चाहिये वहां संग्राहालय
बनाने का दुख उठाया
स्त्रियों के मामले में मेरे अनुभव काम नही आये
इसलिये प्रेमिका की जगह पत्नी और पत्नी की जगह
प्रेमिका को रखकर बिगाड़ दिया सारा खेल
चींजों को लाख सही जगह रखिये वह अपनी जगह
बदल लेती हैं
चीजों का स्वभाव है बदलना
वह हमारी इच्छा के खिलाफ बदल जाती हैं.
♒ लोहे की पटरियां
आयेगी ट्रेन उस पर बैठकर चला जाऊंगा
दूर देश
तुम ढूंढते रह जाओगे
तुम मुझे पुकारोगे मुझतक नही पहुंच
पायेगी तुम्हारी आवाज
वह तुम्हारे ओठ को वापस हो जायेगी
दुनियां की भींड़ भाड़ से अलग
मैं एक छोटे कस्बे में चला जाऊंगा
सोचूंगा--एक बड़े शहर में रहकर मुझे क्या मिला?
कोई नही होगा मेरे साथ
मैं अकेले रहूगा अपने भीतर
मैं जानता हूं मेरे साथ जाने का जोखिम
कोई नही उठायेगा
स्वप्निल श्रीवास्तव
मो. 09415332326
510, अवधपुरी कालोनी अमानी गंज
फैजाबाद 224001