कवितायेँ: स्वप्निल श्रीवास्तव (hindi kavita sangrah)

Hindi contemporary poet Swapnil Srivastava's poetry. Swapnil, a resident of Faizabad is a well-known writer from Hindi literary world.

कवितायेँ: स्वप्निल श्रीवास्तव


♒ बांसुरी

swapnil shrivastav ki hindi kavita
मैं बांस का टुकड़ा था
तुमने यातना देकर मुझे
बांसुरी बनाया
मैं तुम्हारे आनंद के लिये बजता रहा
फिर रख दिया जाता रहा
घर के अंधेरे कोनों में
     जब तुम्हें खुश होना होता था
तुम मुझे बजाते थे
मेरे रोंम रोम में पिघलती थी
तुम्हारी सांसें
मै दर्द से भर आया करता था
     तुमने मुझे बांस के कोठ से  अलग किया
     मुझे ओठों से लगाया
मैं इस पीड़ा को भूल गया कि
मेरे अंदर कितने छेद हैं
     मैं तुम्हारे अकेलेपन की बांसुरी हूं
     तुम नही बजाते हो तो भी
     मैं आदतन बज जाया करता हूं


♒ इसी दुनियां में

swapnil shrivastav ki hindi kavita
सुगना होते तो
जंगल की तरफ उड़ जाते
मछली होते तो
नदी नदी होकर
पहुंचते समुंदर
हवा होते तो बांस के जंगलों में
बांसुरी की तरह बजते
     साधु हम मनुष्य हैं
     हमे अपने दुख सुख के साथ
     इसी दुनियां में रहना है





♒ जादूगर

swapnil shrivastav ki hindi kavita
     बहुत सारे खेल है जादूगर के पास
     वे आदमी को स्टेज से गायब कर देते हैं
     एक लड़की को खरगोश  में और खरगोश
को लड़की में बदल देते है
     एक रूमाल से बना देते है कई रूमाल
     रूमाल को रंगीन चिड़ियां बनाकर उड़ा देते हैं
          वे सबके सामने एक आदमी को आरी से
          चीर देते हैं
          लेकिन आदमी साबुत बच जाता है
     वे हमारे ज्ञान को अपने सम्मोहन से
     काटते है
          जादूगर के खेल स्टेज तक सीमित नही
          रह गये हैं
          उनके क्षेत्र का हो रहा है विस्तार
हम लाख चाह कर भी जादूगर से
नही बच सकते
     खेल खेल में वे छीन लेते है हमारी खुशी
     खेल खेल में वे हमारा गला काट देते हैं
          हम समझते हैं यह तो जादू है
          लेकिन वास्तव में यह हैं हत्या.


♒ स्वर्ण मृग

swapnil shrivastav ki hindi kavita
सभी भाग रहे हैं स्वर्ण मृग के पीछे
हाथ में लिये हुये तीर धनुष
जो संपन्न है उनके हाथ में है बंदूक
 अंधेरे में चमक रहा है स्वर्ण मृग
उसके हाथ पांव देह सोनें के बने हैं
स्वर्ण मुद्राओं की तरह चमक रही है
उसकी आंखें
वह हमारी जिंदगी के बींहड़ में
भाग रहा है
     वह छलांग नही भरता हवा में उड़ता है
     आखेटक उसके पीछे भाग रहे हैं
     यह स्वर्ण मृग मिल जाय तो जीवन
     हो जाय धन्य
स्वर्ण मृग के छाल पर आयेगी अच्छी नींद
बगल में सोयी होगी स्वर्ण कन्या
आयेगे सोनें के सपने
     स्वर्ण मृग के पीछे भागे थे मर्यादा पूरूषोत्तम
     उन्हें स्वर्ण मृग तो नही मिला लेकिन उन्हें
     जीवन में न जाने क्या क्या गवाना पड़ा
यह जानते हुये भी लोग स्वर्ण मृग के पीछे
भाग रहे हैं


♒ चींजों की सही जगह

swapnil shrivastav ki hindi kavita
चींजों को सही जगह रखने की आदत सही है
लेकिन मैं इस हुनर  को नही सीख पाया
जहां दिमाग को रखना चाहिये वहां रख दिया दिल
जिस खाते में दोस्तो की जगह थी वहां
दुश्मनों को रखने की वेवकूफी कर डाली
     चश्में की जगह चाकू और चाकू की जगह चश्मा रखने
     की सजा मैं भुगत रहा हूं
जिस शहर में घर बनाना चाहिये वहां संग्राहालय
बनाने का दुख उठाया
     स्त्रियों के मामले में मेरे अनुभव काम नही आये
     इसलिये प्रेमिका की जगह पत्नी और पत्नी की जगह
 प्रेमिका को रखकर बिगाड़ दिया सारा खेल
     चींजों को लाख सही जगह रखिये वह अपनी जगह
     बदल लेती हैं
     चीजों का स्वभाव है बदलना
     वह हमारी इच्छा के खिलाफ बदल जाती हैं.


♒ लोहे की पटरियां

swapnil shrivastav ki hindi kavita
     लोहे की पटरियां बिछ रही हैं
     आयेगी ट्रेन उस पर बैठकर  चला जाऊंगा
     दूर देश
     तुम ढूंढते रह जाओगे
तुम  मुझे पुकारोगे मुझतक नही पहुंच
पायेगी तुम्हारी आवाज
वह तुम्हारे ओठ को वापस हो जायेगी
     दुनियां की भींड़ भाड़ से अलग
     मैं एक छोटे कस्बे में चला जाऊंगा
 सोचूंगा--एक बड़े शहर में रहकर मुझे क्या मिला?
          कोई नही होगा मेरे साथ
          मैं अकेले रहूगा अपने भीतर
  मैं जानता हूं मेरे साथ जाने का जोखिम
     कोई नही उठायेगा



स्वप्निल श्रीवास्तव
मो. 09415332326
510, अवधपुरी कालोनी अमानी गंज
फैजाबाद 224001