हम सब फ़कीर हैं : ए आर रहमान — भरत तिवारी | #IndianMusic





मैं एक नया मुकाबला दूंगा — ए आर रहमान

— भरत तिवारी



(आज के नवोदय टाइम्स में प्रकाशित)
http://epaper.navodayatimes.in/1355186/Navodaya-Time-Magazine-/The-Navodaya-Times-Magazine#issue/1/1



'पिया हाजी अली', फिज़ा, जिस फिल्म के लिए ए आर रहमान ने अपनी पहली क़व्वाली गायी थी, और 'ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा', जोधा अकबर, ए आर रहमान के इन दो सूफी नग्मों को गायन-शैली और भाषा के कारण भले ही मुस्लिम धर्म की सूफी शाखा का भक्ति गायन होने के कारण क़व्वाली कहा जायेगा — क़व्वाली को भारत उपमहाद्वीप में जाने और सुने जाने का श्रेय अमीर ख़ुसरो को जाता है, जिन्होंने अपने गुरु हज़रत निजामुद्दीन औलिया के लिए इन्हें रचा — लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में यह दोनों कव्वालियाँ अपनी भावना, जो ए आर रहमान की आवाज़ और संगीत के कारण दिल को सुकून देती है, हर संगीत प्रेमी की पसंद में शामिल हैं। बीते दिनों ए आर रहमान से मुलाक़ात हुई, रहमान क़ुतुब मीनार परिसर में होना तय हुए सूफी संगीत समारोह ‘सूफी रूट’ के सिलसिले में दिल्ली में थे।



उनसे एक छोटी लेकिन बड़ी बातचीत हुई; जिसका फ़ायदा उठाते हुए मैंने उनसे, उनके खुद के, 'पिया हाजी अली', और 'ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा' कव्वालियों पर, खयाल, अनुभव आदि के बारे में पूछा।

रहमान ने बताया, “जब फिज़ा के निर्देशक खालिद महमूद उनसे फिल्म में गाने के सिलसिले में मिले तो खालिद ने मुझसे कहा, मैं आपसे दूसरा 'मुकाबला' (ए आर रहमान का चर्चित गीत) चाहता हूं।

इस पर उन्होंने खालिद महमूद से पूछा, “फिल्म के अन्य गीतों के बारे में बताएं?

खालिद ने कहा, “एक क़व्वाली है, जिसके लिए वह संगीतकार खय्याम के बारे में सोच रहे हैं।


खालिद महमूद, बस्ती निजामुद्दीन, 3/9/2011 



तिस पर उन्होंने फिज़ा के निर्देशक से कहा, “आप उनके (खय्याम) लिए कुछ और सोच लें...मैं एक नया मुकाबला दूंगा, इसी से अपनी पहली क़व्वाली कंपोज़ करूंगा”...

रहमान जब यह सब बता रहे थे, उनकी आँखों में समर्पण का वह भाव दिख रहा था — जो उन्होंने कुछ देर पहले मेरे सवाल, “आप हज़रत निजामुद्दीन औलिया के भक्त हैं, कुछ बताएँगे?”, के जवाब में यह कहते समय, “हम सब फ़कीर हैं” — जो तब उपजता है जब किसी कलाकार को यह ‘पता’ होता है कि ‘कला’ का उद्गम, वह नहीं, कोई और, कोई दूसरी शक्ति होती है।

मैंने उन्हें और कुरेदा वह बोले,” 'पिया हाजी अली' के विषय में मुझसे डॉक्टरों से लेकर अन्य बहुत लोगों ने अपने अनुभवों को साझा किया है...इंग्लैंड में एक साहब ने मुझे बताया, उनकी कार का ज़बरदस्त ऐक्सिडेंट हुआ, कार पलट गई, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। उन सज्जन का कहना था कि ऐक्सिडेंट के समय उनकी कार के स्टीरियो में 'पिया हाजी अली' बज रहा था।



'ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा' के विषय में बात करते समय तो रहमान जैसे पूरी तरह भक्ति में लीन हो कर बोले “'ख़्वाजा’ मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है”...यह इन्हीं रुहानी गीतों की वजह से है, जिससे हर वर्ग के संगीत प्रेमी ने जुड़ाव और आत्मीय अनुभव महसूस किए, और इन सब की बदौलत मिली दुआओं का ही असर रहा जो मुझे ऑस्कर-सम्मान के रूप में मिला।




और सवालों के बीच मेरा उस शाम का उनसे अंतिम सवाल — इन दोनों गीतों को आये काफी वक़्त हो गया, अब तीसरा गीत कब ? — रहमान पुनः उसी भक्ति-भाव में उतरते हुए बोले, “मैं गानों के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता, यदि किसी रचना से जुड़ा संगीत, गायक, शब्द, सुर यानी कुछ-भी मुझे पसंद नहीं आता तो वह रचना मैं वहीँ रोक देता हूँ...”। मेरे प्रश्न का जवाब तो मुझे मिला नहीं था, यह उन्हें दिख गया...बोले “आप फेस्टिवल में आइये...”।





(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh