उपन्यास अंश: इश्क़ फरामोश
― प्रितपाल कौर
प्रितपाल हिंदी में लिखती रहती हैं। इश्क़ फरामोश उनके जल्द बुकस्टाल पर आ रहे उपन्यास का शीर्षक है। बेहिचक कह देने वाली लेखिका के चौथे उपन्यास (एक अंग्रेजी) का यह अंश उपन्यास को पूरा पढ़ने की जिज्ञासा पैदा कर सकता है।भरत एस तिवारी
किरण अजीब परिस्थिति का शिकार एक जागरूक पढी लिखी आधुनिक महिला है. पति को लडके का चाह थी मगर बेटी की पैदाइश पर वह नाखुश है. इसी के चलते तमाम तरह की दुश्वारियां किरण के जीवन में आती हैं. उधर सोनिया को लेकर रौनक के घर में एक अलग उथल पुथल मची हुई थी. ऐसे हालात से गुजर रहे ये दो कॉलेज के जमाने के प्रेमी जब अचानक वर्षों के बाद मिलते हैं तो क्या हालात बेहतर है पाते हैं?
दिन बीतते गए और बच्ची का नामकरण भी हो गया. इटावा के आसिफ के पुश्तैनी घर में जा कर ये काम किया गया. हालाँकि वे दो दिन के लिए आसिफ किरण और बच्ची होटल में ही रहे. आसिफ किरण को एक ही बार अपने घर ले कर गया है. एक तंग गली में मौजूद तीन मंजिला छोटी सी ज़मीन पर बने घर में करीब बारह सदस्य रहते हैं. जिनके लिए सिर्फ एक बाथरूम है. किरण के परिवार में सिर्फ माँ सुजाता है जो इंग्लैंड में थी और बीमारी की वजह से नहीं आ पाई.
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उस दिन किरण ने रात तक तीन गिलास भर कर दूध पिया था. रात भर उसका लिबास दूध से लथपथ रहा. नीरू ने हमेशा की तरह रात में दो बार दूध पिया था लेकिन किरण की छाती थी कि जैसे दूध की नदियाँ बहाए जा रही थी.
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उसके दिन और रात मानो लोहे की एक सड़क बन गए थे. जिन पर वह मज़बूत चमड़े से बने जूते पहने चल रही थी. पैरों में लगातार दर्द होता रहता था जो बढ़-चढ़ कर सीने में रखे एक मासूम से मांस के टुकड़े तक पहुँच जाता. कभी कभी इससे भी ऊपर सर में होने लगता. वह तमाम कोशिश करती कि किसी तरह कोई पुल बन जाए उस घर में मौजूद एक मर्द और औरत के बीच जो इन सारे दर्दों की दवा साबित हो सके. लेकिन कुछ न होता. मर्द अपनी मर्दानगी में जकड़ा था. औरत अपनी बेबसी में. और एक नन्ही सी मासूम जान इन सब के बीच एक खूबसूरत महकते फूल की मानिंद खिलती जा रही थी. किरण को डर लगने लगा था इस फूल के भविष्य को लेकर.
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पिछले कई दिनों से अबोला चल ही रहा था. सोनिया ने अपनी कुछ सहेलियों से सलाह-मशविरा किया और रौनक पर ये गंभीर आरोप लगा कर पुलिस में अर्जी दाखिल कर दी. ताकि वह दबाव में आ कर सोनिया की घर बदलने की बात मान जाए.
"आप बच्चों से ही पूछ लीजिये. बच्चे तो झूठ नहीं बोलते न."
ये कह कर सोनिया ने अदिति को टहोका मारा. और अहिस्ता से कहा, "बोलो बेटे, जो कहना है न पुलिस अंकल से कह दो. "
"हाँ अंकल. मेरे पापा बहुत गंदे हैं. हमें चॉकलेट नहीं ला कर देते. पिक्चर भी नहीं दिखाई. सन्डे के बाद अभी तक नहीं दिखाई. " अदिति ने कुछ रटा-रटाया और कुछ अपनी तरफ से जोड़ा . कह कर वो अपने पापा की तरफ देख कर जोर से हंस भी पडी.
रौनक भी हंस पडा. वह भाग कर उसके पास आ गयी और फिर उसकी गोद में गाल से गाल सटा कर बैठ गयी.
सिंह भी हंस पडा, "ठीक कहती हैं मैडम आप. बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते."
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बिना किसी उत्तेजना के वह पत्नी होने के फ़र्ज़ को अदा करती है. औरत होने की अपनी जिस्मानी हकीकत आसिफ को सिर्फ इस नाते से परोस देती है कि किसी वक़्त वो उसे एक अच्छा इंसान लगा था. ये एहसास हुआ था कि इस इंसान के साथ खुशगवार ज़िंदगी बीतेगी. उस एहसास के साथ जीने की आदत सी हो गयी है किरण को. लेकिन हकीकत ये है कि हर रोज़ यही अच्छा इंसान उसके इस मुगालते को धराशायी कर देता है. कभी अपनी हठधर्मी से तो कभी अपनी वाचाल और आवारा जुबान से.
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किरण को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसकी ज़िन्दगी में क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है?
उसका बलात्कार हुया था. अपने ही घर में अपने ही पति के द्वारा. और वो जानती थी वो कुछ नहीं कर सकती. कोई उसकी शिकायत नहीं सुनेगा. सुन भी लेगा तो कोई कुछ नहीं कर सकता.
किरण के इस बलात्कारी के लिए किसी सज़ा का कोई प्रावधान किसी कानून में नहीं है. जबकि वह खुद बिना कोई गुनाह किये बलात्कार की सजा पा चुकी है और शायद ज़िन्दगी भर पायेगी.
आज की रात उसके मानस पटल से कभी मिटाई नहीं जा सकेगी. आसिफ का वह कुरूप चेहरा हर बार जब भी वह आसिफ को देखेगी उसकी आँखों में उतर आयेगा.
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किरण के हर तरह से एक अच्छी लडकी होने के बावजूद भापाजी ने उससे रौनक की शादी को नकार दिया था, इस शक पर कि वह आधुनिक परिवार की सिंगल माँ की बेटी है, जॉइंट फॅमिली में नहीं निभ पायेगी. मगर खुद जिस लडकी का घर परिवार सब देख-परख कर रौनक की शादी करवाई वो तो पांच साल भी साथ नहीं निभा पायी. अलग होने के लिए जिन हथकंडों का इस्तेमाल किया उसकी तो रौनक ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी. वो तो भापाजी की की साख ऐसी है और पहुँच है तो इज्ज़त बची रह गयी वर्ना आज जेल में बैठा अपनी किस्मत को रो रहा होता.
सोनिया से उसका रिश्ता भी इस दिन के बाद से हिचकोले ही खा रहा है. जब उसके सामने नहीं होती तो उसका ख्याल ही तकलीफ देता है. जी चाहता है कभी मुंह तक न देखे. लेकिन जब सामने आती है तो उसी सोनिया पर प्यार भी आने लगता है. बच्चे सामने होते हैं तो ये प्यार कई गुना बढ़ जाता है. तब दिल कहता है कि एक गलती की माफी दी जा सकती है उसे.
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किसी तरह सोनिया को लेकर ड्राइव कर के घर पहुंचा. उषा ने दरवाज़ा खोला तो सोनिया बेडरूम में दाखिल होते ही बाथरूम की तरफ बढ़ी. रौनक ने उसका हाथ फिर से पकड़ा और बिठा दिया. खुद उसके सामने खडा रहा. आज उसके अंदर जो उबाल आ रहा था उसे वो झेल नहीं पा रहा था.
"मेरी ये बात आज कान खोल कर सुन लो. मैं पहली बार और आख़िरी बार कह रहा हूँ. तुमसे शादी मैंने भापाजी और माँ के कहने से की थी. तुम मेरी पसंद बाद में बनी. पहले उनकी थी. और अगर इसी तरह बनी रहना चाहती हो तो अपनी ये छोटी-छोटी मक्कारियां तुम्हें छोड़नी होंगीं. और अगर नहीं तो तुम आज़ाद हो. आज ही मैं यहाँ से हमेशा के लिए चला जाता हूँ. बच्चे पहले से ही वहीं हैं. तुम्हें पूरी इज्ज़त के साथ जितना चाहोगी अलिमोनी दे कर तलाक हो जाएगा. उसके बाद तुम आज़ाद हो. लेकिन अगर मेरी पत्नी के तौर पर रहना चाहती हो तो जिस तरह हम सब तुम्हारी इज्ज़त करते हैं और तुम्हारी बातों का मान रखते हैं तुम्हें भी रखना होगा. हम में से किसी की भी बेइज़्ज़ती अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा. मैं भापाजी नहीं हूँ. और मेरी सीमा आज टूट गयी है. "
उसका बलात्कार हुया था...
कितना झुकेगी? कितना दबेगी? नाजायज़ बातों के लिए. मन कडा किया और मुड़ कर स्टडी में आ कर वहां रखे काउच पर लेट गयी. अक्टूबर का आखिरी हफ्ता है. उसके जीवन से बिलकुल अलग मौसम इन दिनों बेहद मेहरबान है.
पंखे के नीचे कुछ ही देर में नींद भी उस पर तारी होने लगी और थोड़ी ठण्ड भी लगने लगी. किरण ने उठ कर शेल्फ पर रखी एक शाल उठाई जो वो इस कमरे में इसलिए भी रखती थी कि कभी काम करते हुए ठण्ड लगे तो ओढ़ी जा सके. ख़ास कर प्रेगनेंसी के दिनों में जब वह अक्सर घर से काम किया करती थी.
शाल ओढ़ कर वह चंद सेकंड में ही नींद में डूब गयी थी. स्टडी का ये काउच खासा लम्बा चौड़ा है. लगभग एक क्वीन साइज़ के बेड जितना.
नींद में ही थी जब उसे अपने स्तनों पर किसी कीड़े के काटने का एहसास हुया. वह चीख कर नींद से उठ गयी. कुछ पल तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह कहाँ है और किस हालत में है. उसका पूरा जिस्म किसी भारी सी चीज़ से दबा हुया था.
कुछ सेकंड में उसे याद आया वह स्टडी में काउच पर सो रही थी. फिर उसने देखा उसके काफ्तान के बटन खुले हुए थे और उसके नंगे स्तन काफ्तान से बाहर निकले पड़े थे. फिर उसने देखा कि आसिफ उसके ऊपर लेटा हुआ था.
वो कुछ समझ पाती. कोई प्रतिक्रिया कर पाती, कुछ बोल पाती उससे पहले ही आसिफ उस के एक स्तन को अपने मुंह में ले चुका था. उसे चूसते हुए उसने अपने दूसरे हाथ से उसके दूसरे स्तन को मसलना शुरू कर दिया था. किरण कसमसा कर रह गयी.
एक पल के लिए तो उसे समझ ही नहीं आया कि ये कौन है. वह फिर से चिल्लाने वाली थी कि ख्याल आया कि ये उसका पति है. फिर अगला ख्याल आया कि अगर पति है तो बलात्कार क्यों कर रहा है? क्यूँ नहीं उसके जाग जाने और होश में आने का इंतज़ार कर रहा?
ये बात वो उसे कहने ही वाली थी कि आसिफ ने अपना एक हाथ उसके कफ्तान के निचले सिरे तक पहुंचाया, काफ्तान ऊंचा किया, उसके पेट तक.
तब किरण ने नीचे की तरफ देखा तो मानो उसे सांप सूंघ गया. आसिफ पूरी तरह नग्न हो कर ही वहां आया था. उसके जिस्म पर कोई कपड़ा नहीं था. उसके पीनिस का उभार अपने चरम पर था. नीम अँधेरे में उस इंसान के जिस्म की इस उघडी हुयी सच्चाई को देख कर, जो कि उसका पति था, किरण को बिलकुल भी उत्तेजना महसूस नहीं हुयी.
बल्कि जिस तरह दबे पाँव और ढिठाई से वह उसकी नींद में दाखिल हुया था, किरण को उबकाई आ गयी. उसने खुद को किसी तरह रोका. मगर तब तक किरण का काफ्तान पूरी तरह ऊपर खिसक कर उसके पेट तक कर आ कर वहीं सिमट चुका था.
किरण के मन की हालत से बेखबर आसिफ ने अपना पीनिस किरण की योनी में डाल दिया था. अगले चंद पल किरण के लिए नरक का द्वार साबित हुए थे. आसिफ अपनी बेजा सेक्सुअल ताकत के नशे में डूबा खुद को आनंद में भिगोता जल्दी ही स्खलित हो गया.
शॉक में डूबी उसका चेहरा देखती किरण हैरान रह गयी. ऐसा कुरूप चेहरा उसने अपनी ज़िन्दगी में आज तक नहीं देखा था. वो जानती थी इस चेहरे को वह कभी भूल नहीं पायेगी. इस वक़्त वह भूल गयी थी कि ये इंसान वही इंसान था जो उसे एक वक़्त अच्छा इंसान लगता था.
स्खलित होने के फ़ौरन बाद आसिफ एक झटके के साथ उसे धकियाते हुए उठा था और उसी नग्न अवस्था में अपने बेडरूम की तरफ चला गया था. इस बात से पूरी तरह बेखबर और इस एहसास से रहित कि इस घर में एक नन्ही बच्ची भी थी और एक आया भी.
किरण भी फ़ौरन उठी थी. बाथरूम में जा कर कमोड पर बैठी. खुद को अच्छी तरह धोया. देर तक हैण्ड शावर से पानी की धार से खुद को साफ़-सुथरा करने की कोशिश में लगी रही. उसकी योनी में पानी की धार चुभ रही थी. आँखों से आंसू बह रहे थे. ये मन के दर्द के थे या उस चुभन के, तय नहीं कर पायी.
टॉयलेट रोल से पेपर लिया. जननांगों को सुखाया. मगर गालों पर बहते आंसुओं को नहीं पोंछा. उठी ही थी और काफ्तान नीचे किया ही था कि जो उबकाई अब तक रोक कर रखी थी वह उमड़ कर बाहर निकल आयी.
वहीं बैठ गयी. कमोड में उल्टी करती हुयी पेट को पूरी तरह खाली करने की कवायद करती रही और सोचने समझने की अपनी शक्ति को बहाल करने में जुटी रही.
किरण को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसकी ज़िन्दगी में क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है?
उसका बलात्कार हुया था. अपने ही घर में अपने ही पति के द्वारा. और वो जानती थी वो कुछ नहीं कर सकती. कोई उसकी शिकायत नहीं सुनेगा. सुन भी लेगा तो कोई कुछ नहीं कर सकता.
किरण के इस बलात्कारी के लिए किसी सज़ा का कोई प्रावधान किसी कानून में नहीं है. जबकि वह खुद बिना कोई गुनाह किये बलात्कार की सजा पा चुकी है और शायद ज़िन्दगी भर पायेगी.
आज की रात उसके मानस पटल से कभी मिटाई नहीं जा सकेगी. आसिफ का वह कुरूप चेहरा हर बार जब भी वह आसिफ को देखेगी उसकी आँखों में उतर आयेगा.
क्या कभी आसिफ के साथ वह अपनी खुशी से सहवास कर पायेगी?
एक बड़ा सा 'ना' उसकी आत्मा से निकला और उसे झिंझोड़ कर उसके जिस्म के आर-पार हो गया.
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