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सूजा की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा - 20: | Vinod Bhardwaj on Francis Newton Souza




विनोद भारद्वाजजी अपने इस लेटेस्ट संस्मरणनामा में भारत के महान कलाकार सूजा  को याद करते हुए कहते हैं कि उन्हें आप चाहें तो पर्वर्ट कह सकते हैं पर कलाकार के रूप में उनमें ग़ज़ब की एनर्जी थी, रेखाएँ और उनके रंग अद्वितीय थे।  इन इतिहासिक संस्मरण, दस्तावेज के लिए विनोदजी को जितना भी शुक्रिया कहा जाए कम है... भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक 

सूजा की यादें

— विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा

I love your body, long for it, dream of it. यह लिखा महान लेखक जेम्ज़ जॉयस ने वर्ष उन्नीस सौ में अपनी प्रेमिका और होने वाली पत्नी नोरा को। कुल तेरह ख़त थे, जो लंबे समय तक छिपाए जाते रहे। साहित्य या कला के इतिहास में इससे डर्टी यानी भयंकर रूप से अश्लील ख़त किसी प्रेमिका/पत्नी को कभी नहीं लिखे गए। पर लेखक की भाषा में अद्भुत कविता भी थी। और वह भाषा म्यूज़िकल भी थी। 

सत्तर के दशक के मध्य में ये ख़त सार्वजनिक हुए, तो तहलका मच गया। महान भारतीय कलाकार फ़्रैन्सिस न्यूटन सूजा उन दिनों न्यूयॉर्क में रहते थे। उन्होंने इन ख़तों की ज़ीरॉक्स कॉपी कवि श्रीकांत वर्मा को भेजी। श्रीकांत जी दिनमान में मेरे वरिष्ठ सहयोगी थे। उन्होंने मुझे वे ख़त दिखाए। तब आज की तरह फ़ोटोकॉपी आसान नहीं थी। पर उन ख़तों की भाषा का जादू कुछ ऐसा था कि मैंने घंटों मेहनत कर के हाथ से उनकी नक़ल की। यह बात 1977 के आसपास की थी। 

सूजा की पेंटिंग "बर्थ" क्रिस्टीज की नीलामी में सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग 26.40 करोड रूपए में बिकी (नभाटा)

यह मेरा सूजा से पहला परिचय था। ख़ुद सूजा भी अपनी प्रेमिका को उससे भी अधिक डर्टी ख़त लिख सकते थे। सेक्स उनकी कला की केंद्रीय उपस्थिति है। कभी कभी वे पोर्नोग्राफ़ी की हदों को भी छू सकते थे। वे किसी महिला के सामने आसानी से कनीलिंगस पर शास्त्रीय चर्चा भी कर सकते थे। 

एक बार इंडिया इंटरनैशनल सेंटर के बार में फ़िल्मकार मित्र के बिक्रम सिंह ने सूजा, उनकी दोस्त श्रीमती लाल और मुझे लंच पर बुलाया। बातचीत में कनीलिंगस का ज़िक्र आया, और सूजा को अपना फ़ेवरेट विषय मिल गया। मेरे उपन्यास सेप्पुकु में नायक एक जगह एक स्त्री के आध्यात्मिक प्रश्नों से ऊब जाता है, तो वह पूछता है, आप कनीलिंगस शब्द का अर्थ जानती हैं? स्त्री कहती है, नहीं, पर यह बड़ा म्यूज़िकल शब्द है!

यह ग्रीक भाषा का शब्द है पुरुष द्वारा स्त्री के मुख मैथुन के लिए। पुरुष इसके विपरीत के लिए उत्सुक रहते हैं, पर ख़ुद स्त्री को इस तरह से संतुष्ट करने के नाम से भी घबराते हैं। यह एक अलग क़िस्सा है। 

ख़ैर। सूजा उन दिनों धूमीमल गैलरी के निकट सम्पर्क में थे। रवि जैन उनके बहुत प्रशंसक थे। मेरा सूजा से मिलना जुलना वहीं से शुरू हुआ। उनसे मित्रता की शुरुआत एक विवाद से हुई। उन दिनों सूजा सांख्य दर्शन का अध्ययन कर रहे थे। स्त्री कलाकार सुरुचि चाँद की दिल्ली में प्रदर्शनी थी, उद्घाटन सूजा को करना था। प्रदर्शनी कोई ख़ास नहीं थी। मैं भोपाल की पत्रिका कला वार्ता में कला पर नियमित लिखता था। मैंने अनुप्रास को ध्यान में रख कर एक लेख को शीर्षक दिया, सूजा, सुरुचि और सांख्य। सूजा हिंदी पढ़ नहीं पाते थे। उन्होंने अपने मित्र जगमोहन की पत्नी सरला से मेरे लेख का अनुवाद करा के करारा जवाब दिया। उन्होंने लिखा, मैंने प्रदर्शनी देखे बिना ही लिख दिया। वैसे एक तस्वीर से साफ़ था, कि मैं उद्घाटन भाषण कर रहे सूजा की बग़ल में खड़ा था। 

बाद में सूजा दिल्ली आए, तो दिनमान के दफ़्तर के पास ही जीवन गेस्ट हाउस में रुके। कला समीक्षक के बी गोयल दरिया गंज में रहते थे, वे उनकी बुकिंग इस जगह पर करा देते थे। लंदन में शुरू में सूजा को नाम और सफलता मिली थी पर न्यूयॉर्क में वह संघर्षशील ही थे। स्त्रियाँ उनकी बड़ी कमज़ोरी थीं, उनमें से कई ने उनका फ़ायदा भी उठाया। वह अपने जीवन में हुसेन और रजा की तरह कभी ख़ूब पैसा भी न देख पाए। उनकी पेंटिंग से बाद में लोग मालामाल हो गए। 

सूजा अपने चित्र, रेखांकन बड़ी उदारता से भेंट कर देते थे। वह काम भी ख़ूब तेज़ी से करते थे। एक बार वह रवि जैन के घर के पास एक गेस्ट हाउस में ठहरे हुए थे। मुझे उन्हें मनु पारेख के घर लंच के लिए ले कर जाना था। एक बजे तक वह सात पेंटिंग बना चुके थे। फ़र्श पर उनके चित्र बिखरे हुए थे। 

मैंने दिनमान के एक चर्चित इंटर्व्यू में उनसे पूछा आपको कितनी हिंदी आती है? मनु अक्सर उनके जवाब को याद करते हैं, जितनी जीबी रोड (दिल्ली का रेड लाइट इलाक़ा ) के लिए ज़रूरी है। चरण शर्मा एक बार बता रहे थे, वे न्यूयॉर्क में उनके साथ रुके हुए थे। सूजा रोज़ तय्यार हो कर चुपचाप कहीं चले जाते थे। एक दिन चरण ने उनका पीछा किया। वे पोर्न फ़िल्म देखने जाते थे। 

एक बार मैंने उनसे पूछा, आपको फ़ेमिनिस्ट आंदोलन ने क्या कुछ बदला नहीं? वे बोले, काफ़ी फ़र्क़ पड़ा है मुझ पर। लेकिन वे कोई ख़ास बदले नहीं थे। उन्हें आप चाहें तो पर्वर्ट कह सकते हैं पर कलाकार के रूप में उनमें ग़ज़ब की एनर्जी थी, रेखाएँ और उनके रंग अद्वितीय थे। 

मंडी हाउस के बहावलपुर हाउस के कला मेले में अस्सी के दशक के मध्य में उन्होंने सब के सामने एक विशाल केनवास पेंट किया था। रवींद्र भवन में उन्हें त्रीनाले अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में एक अलग कक्ष मिलना चाहिए था। पर वह कला मेले में धूमीमल गैलरी के स्टॉल में बच्चों के बीच काम कर रहे थे। आज के स्टार कलाकार सुबोध गुप्ता भी वहाँ खड़े उनका स्केच बना रहे थे। यह चित्र धूमीमल के संग्रह में है। एक बार सुबोध ने मुझसे कहा, यह चित्र मैं ख़रीदना चाहता हूँ। पर उदय जैन इसे बेचने के मूड में नहीं हैं। 

सूजा एक बार कला समीक्षक रिचर्ड के घर गए। मुझ से बोले, इतना नामी समीक्षक और वहाँ कोई ख़ास चित्र नहीं थे। मैंने उनकी कुछ कविताओं के हिंदी अनुवाद किए, कोंकणी भाषा पर उनके विचारों पर मुंबई नवभारत टाइम्स में फ़्रंट पेज ऐंकर लिखा, वे इतना ख़ुश हुए कि कई रेखांकन मुझे दे दिए। 

उन्हें ख़त लिखने का बहुत शौक़ था, आप जवाब दें या न दें। मुझे उन्होंने कई महत्वपूर्ण ख़त लिखे। उनके ख़तों की एक किताब बननी चाहिए। न्यूयॉर्क में मैं उनकी पहली पत्नी की बेटी शेली सूजा से मिला, तो उनको मैंने यह बात ज़ोर दे कर कही। 

ग़ौर कीजिए अंजली इला मेनन जैसी बड़ी स्त्री कलाकार सूजा को आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा चित्रकार मानती हैं। सूजा जो फ़िल्मकार फ़ेलीनी की तरह भव्य नितम्बों और विशाल स्तनों वाली स्त्रियों से हमेशा अब्सेस्ड रहे, पूरी तरह से आंदोलित। पर वे क्या कलाकार थे। वे एक प्रखर लेखक भी थे, उनका आत्मकथ्य अद्भुत है और ये कहना की मैंने अपनी माँ के गर्भ में ही पेंट करना शुरू कर दिया था। 

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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