फागुन का हरकारा - गीतिका 'वेदिका'

गीतिका 'वेदिका'

शिक्षा - देवी अहिल्या वि.वि. इंदौर से प्रबन्धन स्नातकोत्तर, हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर
जन्मस्थान - टीकमगढ़ ( म.प्र. )
व्यवसाय - स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन - विभिन्न समाचार पत्रों में कविता प्रकाशन
पुरस्कार व सम्मान - स्थानीय कवियों द्वारा अनुशंसा
पता - इंदौर ( म.प्र. )
ई मेल - bgitikavedika@gmail.com

फागुन का नवगीत - फागुन का हरकारा

भंग छने रंग घने
फागुन का हरकारा …….!

टेसू सा लौह रंग
पीली सरसों के संग
सब रंग काम के है
कोई नही नाकारा
फागुन का हरकारा …….!

बौर भरीं साखें है
नशे भरी आँखें है
होली की ठिठोली में
चित्त हुआ मतवारा
फागुन का हरकारा ………!

जित देखो धूम मची
टोलियों को घूम मची
कोई न बेरंग आज
रंग रंगा जग सारा
फागुन का हरकारा …….!

मुठी भर गुलाल लो
दुश्मनी पे डाल दो
हुयी बैर प्रीत, बुरा;
मानो नही यह नारा
फागुन का हरकारा ………!

मन महके तन महके
वन औ उपवन महके
महके धरा औ गगन
औ गगन का हर तारा
फागुन का हरकारा ………!

जीजा है साली है
देवर है भाभी है
सात रंग रंगों को
रंगों ने रंग डारा
फागुन का हरकारा ……..!

चार अच्छे कच्चे रंग
प्रीत के दो सच्चे रंग
निरख निरख रंगों को
तन हारा मन हारा
फागुन का हरकारा ……..!

इत उत रंग में रंग हुआ


इत उत रंग में रंग हुआ
रंग में रंग सब रंग
कोई न बेरंग रह सका
रंग रंगे सब अंग…..!

ऐसी होली माई बाबा की होली
हाथ किये पीले, बिठा दी डोली
चार कदम रोती दुल्हन
फिर हंसी पिया जी के संग …..!

ऐसी होली ससुर घर होली
सूनी माँग भरी रंग रोली
डोर कटी मैया घर से
हत्थे चढ़ी पिया की पतंग……!

बैरी न हमजोली है


बचते बचाते
छुपते छुपाते
छिपी कहीं पीछे
किबाड के

सजना चतुर
छुपे पीछे आये
देख लिए, छुपी
जहाँ आड़ के

जोर से पकड़ लिए
रंगे जबरदस्ती से
मौके पे चौका
पछाड़ के

मुंह से बोल फूटे नही
पक्का रंग छूटे नहीं
चाहे हो जलन बड़ी
पर कोई रूठे नही

प्यार वाली होली है
हंसी है ठिठोली है
जिसने रंगा है रंग
बैरी न हमजोली है

पिया रंग रंग दीनी ये होली


पिया रंग रंग दीनी
ये होली
चंपा चमेली सी
नार नवेली सी
चल दी पिया घर
बैठी जो डोली

पिया हरसाए
प्यार लुटाये
अगले बरस ही
गोरी सुत जाये
नन्हे से बोलों की
तुतलाती बोली

कौन रंग चाँदी
तो कौन रंग सोना
हमें नहीं भाये
कोई धातु की रंगोली

हम तो पिया के है
पिया ही हमारे है
बीते जीवन यूँ ही
करते ठिठोली

तन अगन लगी मन जले

तन अगन लगी मन जले
और फागुन आये ............!
holi greetings shabdankan 2013 २०१३ होली की शुभकामनायें शब्दांकन

हर ओर से झांके रंग रंग
करे व्यंग और मुस्काए
और फागुन आये ...........!

पिया बिनु क्या बसंत गोरी
क्या इकली मन भाये होरी
रंग गिरे तो भीगे तन, मन सकुचाये
और फागुन आये ............!

चम्पा और चमेली डाली
टेसू डाल लो भरी निराली
बीता जाये बसंत हाय जिय धडकाए
और फागुन आये .......... .!

पीली सरसों भी फूली
अमराई अमवा में झूली
क्यों पेंग बढ़ा के मेरा मन बस तरसाए
और फागुन आये ..........!

एक टिप्पणी भेजें

6 टिप्पणियाँ

  1. बीता जाय बसंत बहुत ही सुन्दर और ह्रदय स्पर्श करने वाली उत्तम रचना के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय भोलानाथ जी!

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार श्री महाकवि राजेश्वर जी!

      हटाएं
  3. गीतिका बहुत खूब लिखा है. कहा हो गयी दोस्त

    जवाब देंहटाएं
  4. होली से आपको लगता हैं अधिक प्रेम हैं ...खेर होली त्योहार ही ऐसा हैं

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg