समीक्षा अंधेरे के सैलाब से रोशनी की ओर बढ़ती आत्मकथा भावना मासीवाल आत्मकथा ‘स्व’ का विस्तार है साथ ही स्व से सामाजिक होने की …
आगे पढ़ें »हास्य नाटिका कहाँ हो तुम परिवर्तक ? अशोक गुप्ता अशोक गुप्ता 305 हिमालय टॉवर, अहिंसा खंड 2, इंदिरापुरम, गाज़ियाबाद 201014 09871187…
आगे पढ़ें »कहानी इस ज़माने में प्रज्ञा उस दिन हमेशा की तरह ठीक टाईम से ही कॉलेज पहुंची थी लेकिन स्टाफ रूम में बहुत सारा खालीपन पसरा हुआ था। अखबारों …
आगे पढ़ें »वर्तमान साहित्य दिसंबर, 2014 मेरे मन में अनेक विचार उठ-गिर रहे हैं - भारत भारद्वाज ‘जा चुके थे जो बहुत दूर, …
आगे पढ़ें »कहानी आपबीती महेन्द्र भीष्म साइकिल का पिछला टायर पंचर हो चुका था । वह अब क्या करे ? इतनी देर रात गये पंचर बनाने वाले की दुकान का खुला हो…
आगे पढ़ें »आलोचकों की दृष्टि वहां तक नहीं पहुंच पाती जहां तक रचनाकारों की दृष्टि पहुंचती है - अनंत विजय यह वक्त आलोचना और आलोचकों के लिए गंभीर मंथन का है …
आगे पढ़ें »स्पर्श के गुलमोहर लाँघना मुश्किल अपने चित्रों एवं फिल्मों के लिए विख्यात संगीता गुप्ता के पास निश्चय ही असीम का वरदान है, वे चित्रकार होने…
आगे पढ़ें »कहानी इनसानी नस्ल नासिरा शर्मा खिड़की से घुसती गरम हवा अपने साथ पत्तियाँ-तिनके और सूखी, बेकार की चीज़ें उड़ाकर ला रही थी। ट्रेन लू के थपेड़ों क…
आगे पढ़ें »साहित्य अकादमी ने हाल ही में " भाषांतर अनुभव " नामक कार्यक्रम की एक नई श्रृंखला शुरू की है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत, प्रख्यात भारतीय कवि …
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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