कविता—दोहे—ग़ज़ल—ओ—नज़्म :: गौरव त्रिपाठी


kavita-dohe-gazal-o-nazm-gaurav-tripathi

कविता—दोहे—ग़ज़ल—ओ—नज़्म, पक्की है युवा कवि गौरव त्रिपाठी के कलम की सियाही





अलमारी 

कभी गौर से देखा है?
घर की अलमारी
घर का घंटाघर होती है
ये वक्त बताती है।

इसमें प्रेस कर के रक्खी स्कूल यूनिफ़ार्म
बताती है
कि आज सुबह फिर से
मम्मी जल्दी उठ गयीं थीं,
कम्बल रखने को बना वो खाली कोना
कहता है
कि पापा अब भी सो रहे हैं,
और पिछले साल
अचानक गायब हुयीं सफ़ेद साड़ियाँ
याद दिलातीं हैं
कि दादी मर चुकी है।

नमी से फूली प्लाई की फांस
जब उंगली में चुभती है
तो घर में चल रही
तंगी का एहसास होता है,
और पल्ले का टूटा हैण्डल
मानो कह रहा हो
कि वक्त बुरा है
सहारा देने वाला कोई नहीं है।

इसकी शेल्फ़ में बिछे अख़बार
जिनके नीचे से कभी
ख़ुशबूदार ख़त निकलते थे
अब वहाँ छिपे हैं
कुछ दवा के पर्चे
जिनसे एक खट्टी सी मह़क आती है।

इसकी छोटी सी तिजोरी में रक्खा
काले रैग्ज़ीन का फ़ोल्डर
जिसमें घर की बुनियाद रक्खी है
अब काफ़ी फटेहाल हो गया है।
और वो लाल
वेलवटी केस
जिसमें
कई पीढ़ियाँ पिरो के बना
एक हार होता था
अब उसमें सिर्फ़ हवा है
जो साँय-साँय करती है।

अलमारी के दरवाज़े पे छपे
उंगलियों के निशान
खाँसते खाँसते
उस रात का मंज़र बयां करते हैं
जब आख़िरी बार उठा था
वो बेरहम दर्द
और सब कुछ ले गया था।

उन उंगलियों के निशानों
को पोंछ कर
कल किसी ने
दरवाज़े पर
एक पोस्टर चिपका दिया।
जिसमें मुस्कुराता हुआ
एक नौनिहाल बच्चा
कह रहा है
कि अब सब पहले जैसा हो जायेगा।

सच है-
घर की अलमारी
घर का घंटाघर होती है
ये वक्त बताती है


ग़ज़ल

काट  के  अपने  पर  जाते हैं
पंछी अब चल  कर  जाते  हैं

बन के क़ाबिल अपने अपने
घर  से   हो   बेघर   जाते  हैं

मौत पे  किसकी ये  रोज़ाना
लटके  लटके  सर  जाते  हैं

कोई  मेला  है  बचपन  का?
ये  सब लोग किधर जाते हैं?

आज  अकेले  हैं  तो  जाना
लोग  अकेले   मर  जाते  हैं


दोहे

हाँ – हाँ कर के प्रीत है, ना – ना करै लड़ाइ।
मूढ़ हिलाना बन  गयी,  इस युग की सच्चाइ॥

देस – धर्म की गाँठ में, मनुस दिये उलझाय।
उलझी गुत्थी  खोल दे,  सो सूली  चढ़  जाय॥

धागा धागा जोड़ कर, चोला जो बन जाय।
चोला चोला सब करे, धागा उधड़त जाय॥

फूंक फूंक शोला जले, दिया जले बिन फूंक।
वैमनस्य  में  श्रम  लगे, प्रेम  सहज  औ मूक॥

बापू  कृतघन देश पे, व्यर्थ हुए बलिदान।
लीं दधीचि से हड्डियां, चुका न पाये दान॥

चलता है इतिहास में, क्षण-क्षण अपनी राह।
बूंद को न  दरकार  है, ना  सागर  की चाह॥

तुम्हारा हाल कैसा है

हुई मुद्दत बहुत हमने
कभी पूछा न आपस में
कि मेरे भाई बरसों से
जो अब तुम दूर रहते हो
तुम्हारा हाल कैसा है? तुम्हारा हाल कैसा है?

ये माना हम थे जब बिछड़े
हुए थे अनगिनत झगड़े
मचा कोहराम था घर में
गिरी बिजली थी आंगन में

वो कब अपनी लड़ाई थी
बड़ों की ही लगायी थी
था उनका फ़ायदा उसमें
किया सौदा था आपस में

बँटी दौलत उठा कर के
हमें मुद्दा बना कर के
वो बूढ़े जो ये कहते थे
कि हम तुम एक से बच्चे
नहीं एक साथ पल सकते
वो झूठे थे, वो झूठे थे

हां माना अब नहीं मुमकिन
है रहना साथ में लेकिन
भला हम दोनों आपस में
कोई भी रंज क्यों पालें

कभी आया है ये दिल में
किसी रस्ते या महफ़िल में
जो हम नज़रें मिलायेंगे
नहीं क्या मुस्कुरायेंगे?

व्यथा दोनों घरों की ही
समझता हूं मैं पर फिर भी
जो उसमें रहते हैं उनकी
कभी खुशियों से भी ज़्यादा
कोई भी घर बड़ा है क्या?

भुला कर के मैं शिकवे सब
ये तुमसे पूछता हूं अब
कि मेरे भाई बरसों से
जो अब तुम दूर रहते हो
तुम्हारा हाल कैसा है? तुम्हारा हाल कैसा है?

होड़

होड़ में रहने वाले
होड़ में रह जाते हैं

होड़ के अंदर, तप कर
होकर ऊर्जावान
लगाते हैं छलांग
एक होड़ से दूसरी होड़ में

और करते हैं प्रेरित,
सोचने को
होड़ से बाहर

दोहराते हैं उदाहरण
उनके, जिनने
होड़ से निकल कर, बनायी
एक नयी होड़
जो उस होड़ में हैं
जो होड़ बनाती है


और इन सबका भार उठाए पृथ्वी,
जो बाहर है
दुर्गम, निर्जीव ग्रहों की होड़ से
पर घूमती है
घूमने की होड़ में
सूरज के चारों ओर

सूरज, अपना तारा
जो एक दिन
अपनी गर्मी खोकर
लेगा समेट
सब कुछ अपने अंदर
और सब कुछ होगा शांत और शीतल
जैसा होता है
होड़ के बाहर

gaathiwrites@gmail.com

००००००००००००००००


nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज