के बिक्रम सिंह की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा फ़िल्मकार, ब्यूरोक्रेट, बुद्धिजीवी के बिक्रम सिंह के साथ मैंने कला और साहित्य क…
गला घोंट डंडामार डॉक्टर की दुनिया — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा ऐसा कहा जाता है अज्ञेय अपनी पंजाबियत को छिपाते थे, दूसरी तरफ़ कृष्णा सो…
हज़रत गंज की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा लखनऊ के हज़रत गंज की कई सुंदर यादें हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी में पाँच साल पढ़ाई की थी, क़…
जगदीश स्वामीनाथन की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा स्वामीनाथन सत्तर के दशक में दिल्ली की कला दुनिया के महानायक थे, साठ के दशक में …
अकबर, एस पी और उदयन की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा मैं आज के मुबशर जमाल अकबर को बिलकुल नहीं जानता, वैसे भी वह एम जे अकबर के न…
प्रिय कवि मंगलेश डबराल जी, जिन्हें विनोद भारद्वाज जी साहित्य और कला में अपना अकेला हमउम्र दोस्त लिख रहे हैं, उनपर लिखा यह संस्मरण पढ़ने के…
कला दुनिया की माया हैं, कहीं धूप कहीं छाया है। सुबोध प्यारा इंसान हैं, उसके दोस्त कहते हैं, उसका चक्रवर्ती भाग्य है, वह कल्पनाशील भी ख…
कुछ यादें अनमोल होती हैं। और उन अनमोल यादों को साझा किया जाना बीते कल के साथ किया जाने वाला वह बेहद ज़रूरी काम है जो भविष्य को, हमसब को आश…