आसमान खुला तो नहीं था उस वक्त भी लेकिन बचपन की यादों में शायद धुआं नहीं होता पंकज राग की कविता पटना: ‘ढूंढ़ोगे अगर मुल्कों मुल्कों’…
रवींद्र कालिया की कहानियों से मैं चमत्कृत था; उनकी भाषा, उनका यथार्थ के प्रति सुलूक, उनकी मध्यवर्गीय भावुकताविहीनता, उनका खिलंदड़ा अंदाज, इन …
अधिकतर ऐसा ही हुआ : कोई कालिया जी से मिला और उनका होकर ही रुखसत हुआ । उनका अत्यंत महत्वपूर्ण लेखक होना, आकर्षक अनोखा व्यक्तित्व, उनका वातावरण …
भरतमुनि रंग उत्सव नई दिल्ली, अक्टूबर 2019: विभिन्न भारतीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले दिल्ली सरकार के कला और संस्कृति विभाग साहि…
टीआरपी के बिसातियों न प्राइम टाइम में हंगामा मचा और न कोई कवर स्टोरी सामने आयी अनब्याही माता होने की पीढ़ीगत परम्परा के अनगिनत महीन और भद्द…
बाकी बहुत ज़्यादा बातें तो मैं जानती नहीं, पर जो समझ पाती हूं वो और है और जो समझाई जाती हूं वो और है... अंडा-करी और आस्था दाम…
... जगह दो थोड़ी सी इस वक्त़ की हबड़ातबड़ी में इस दुनियादारी के जंजाल में ... निधीश त्यागी की भाषा में एक बेहतरीनपन है, जो…
एक बेहतरीन कहानी जैसे 'आवारा मसीहा' ... उसमें उसको ढूँढने की कोशिश में — मधु कांकरिया कुछ यादें बड़ी ढीठ होती हैं। अनजाने अन…
देह व्यापार हो या बलात्कार, हम हायतौबा भी अपनी सहूलियत और अपने एजेंडा के हिसाब से मचाते हैं। मेरे शहर में कोई बलात्कार हुआ तो मैं दुःखी हो…