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रेणु हुसैन की कहानी - आला जी | Hindi Story by Renu Hussain



समाज सेवा से जुड़ीं  कवियित्री रेणु हुसैन पेशे से सरकारी स्कूल नेताजी नगर सर्वोदय विद्यालय में अंग्रेजी की शिक्षिका हैं । रेणु हुसैन के दो कविता संग्रह “पानी प्यार” एवं “जैसे” और एक कहानी संग्रह “गुण्टी”  प्रकाशित हैं ।उनके आगामी काव्य संग्रह का नाम ‘घर की औरतें और चाँद‘ है। आजकल उनका रुझान ग़ज़ल लिखने की ओर है और उनकी लिखी ग़ज़लें तरन्नुम में सुनी जा रही हैं। उनकी ‘आला जी’ कहानी पढ़कर यह अहसास होता रहा कि समाज को असामाजिक नहीं होने देना समाज की, आपकी जिम्मेदारी है।  

शब्दांकन संपादक

Hindi Story: 'निसंग' — जयश्री रॉय की हिंदी कहानी


लाल साड़ी में लिपटी लड़कियाँ एक दहलीज पार कर किस अरण्य में हमेशा के लिए खो जाती है कोई जानना नहीं चाहता... कथा-कहानी सुनाने बैठी सयानी औरतें अक्सर कहती हैं, घर के बियाबान से कभी कोई स्त्री जीवित नहीं लौटी... 

निसंग

जयश्री रॉय की हिंदी कहानी  

रेणुरंग — कहानी: कस्बे की लड़की — फणीश्वरनाथ रेणु — एक अनगढ़ मासूम सौन्दर्य — रीता राम दास

रेणुरंग: फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती पर 10 चर्चित कहानियों का पुनर्पाठ. शब्दांकन और मैला आँचल ग्रुप की प्रस्तुति.

कस्बे की लड़की

एक अनगढ़ मासूम सौन्दर्य 

— रीता राम दास

रेणुरंग —नैना जोगिन — संघर्ष के भीतर ममत्व की फुहारें

रेणुरंग: फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती पर 10 चर्चित कहानियों का पुनर्पाठ. शब्दांकन और मैला आँचल ग्रुप की प्रस्तुति.

नैना जोगिन

संघर्ष के भीतर ममत्व की फुहारें

— रोहिणी अग्रवाल

कृष्णा सोबती — मित्रो मरजानी (उपन्यास अंश)

कृष्णा सोबती जी के प्रिय उपन्यास 'मित्रो मरजानी' का यह अंश यह कहते हुए कि वह पितृसत्ता भी ख़तरनाक हो सकती है जिसके केंन्द्र में मातृ-शक्ति हो'... शब्दांकन संपादक

मित्रो मरजानी 

कृष्णा सोबती

उपन्यास अंश



नई उठ घड़ी-भर को बाहर गई। लौटकर सास से कहा — अन्दर मँझली के हँसने की आवाज़ आती है, माँ जी!

रेणुरंग — रसप्रिया — फणीश्वरनाथ रेणु — हज़ारों लोक रंगों की कहानी

रेणुरंग: फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती पर 10 चर्चित कहानियों का पुनर्पाठ. शब्दांकन और मैला आँचल ग्रुप की प्रस्तुति.


रसप्रिया 

हज़ारों लोक रंगों की कहानी है—'रसप्रिया

— विवेक मिश्र 


नाग-पंचमी: लिंग पूजा — वयं रक्षामः – आचार्य चतुरसेन

आचार्य चतुरसेन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "वयं रक्षाम:" में कई ऐसे विषयों पर बात करते हैं जिन्हें पढ़ा जाना चाहिए. ऐसा ही एक विषय 'लिंग पूजा' का है जिसमें वह विषय की विश्व की अनेक सभ्यताओं/धर्मों/कलाओं आदि में मौजूद होने की व्यापक पड़ताल करते हैं. चूंकि शिव-रूद्र-लिंग-सर्प हमारी जिज्ञासा में सर्वोपरि होते रहते हैं, आज 'नाग-पंचमी' के दिन "वयं रक्षाम:" का यह अध्याय... शब्दांकन संपादक





लिंग पूजा

— वयं रक्षामः – आचार्य चतुरसेन

Hindi Story: 'झाल वाली मछली' — अचला बंसल की हिंदी कहानी

जब आप कोई कहानी पढ़ना शुरू करें और उस कहानी का कहानीपन आपको पकड़ ले तब आप उस कहानी के लेखक को शुक्रिया ज़रूर कहें. शुक्रिया अचला बंसल जी. गजब कहानी कही आपने 'झाल वाली मछली'. और एक शुक्रिया जो इस कहानी के लिए कहा जाना है वह प्रिय प्रियदर्शन जी को जिन्होंने अंग्रेज़ी में लिखी गई इस कहानी को शानदार हिंदी में, अपनी अनुवाद-कला से पेश किया है. उतरिये इस साहित्यिकी संगम में... भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक



झाल वाली मछली

— अचला बंसल

कोरोना समय की कविताएं :सदानंद शाही


आज के 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' की ख़बर है: 'जेएनयू में रिकॉर्ड आवेदन, पिछले साल की तुलना में 22% अधिक'. आज से ठीक तीन वर्ष पूर्व प्रो सदानंद शाही को बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए जाने पर रोक लगा दी गई थी. सुनने में आया था, यह (आरोप लगाते हुए) कहते हुए कि वह बिलासपुर विश्वविद्यालय को वह एक ही वर्ष में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी बना देंगे. फिलहाल, कवि सदानंद शाही की कोरोना समय की कविताएं पढ़िए और ख़ुद तय कीजिये. यह कोरोना-समय में आपके द्वारा पढ़ी गयीं अन्य कविताओं-सी नहीं हैं — एक जगह कवि कह रहा है — "मनुष्य बचेगा, पृथ्वी बचेगी / तो धर्म भी बच जाएंगे" तो कहीं यह भी कि, "बैल पहले ही अलगा दिए गये थे / गाड़ियों से / अपने गुट्ठल कंधों के साथ / कभी कभार दिख जाते हैं / यह बताने के लिए / कि हम भी कभी बैल थे"... भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक

कोरोना समय की कविताएं :सदानंद शाही 

कोरोना का कहर

रेणुरंग — पंचलाइट — फणीश्वरनाथ रेणु — जाति का अंधेरा और हुनर की रोशनी

रेणुरंग: फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मशती पर 10 चर्चित कहानियों का पुनर्पाठ. शब्दांकन और मैला आँचल ग्रुप की प्रस्तुति.

पंचलाइट

जाति का अंधेरा और हुनर की रोशनी 

— राकेश बिहारी 

An Era of Darkness — भारत में संसदीय प्रणाली THE PARLIAMENTARY SYSTEM IN INDIA — Dr Shashi Tharoor | पार्ट 3


Dr Shashi Tharoor — An Era of Darkness — Book Excerpts

We must have a system of government whose leaders can focus on governance rather than on staying in power. The parliamentary system has not merely outlived any good it could do; it was from the start unsuited to Indian conditions and is primarily responsible for many of our principal political ills. — Dr Shashi Tharoor

नई क़लम — वह कौन थी! — विष्णुप्रिया पांडेय की छोटी हिंदी कहानी


भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) की युवा मीडिया एजुकेटर लेखक विष्णुप्रिया पांडेय लिखने का शौक़ और कथक नृत्य में रूचि रखती हैं. आइये विष्णुप्रिया की छोटी हिंदी कहानी, 'वह कौन थी!' पढ़ते हुए 'नई क़लम' में उनका स्वागत कीजिये...भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक

वह कौन थी!

विष्णुप्रिया पांडेय की हिंदी कहानी

कितनी मासूम थी वह। उसके सांवले रंग में गज़ब का आकर्षण था। ऐसा लगता जैसे उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में अनगिनत सवाल तैर रहें हों। मंदिर वाले बस स्टॉप पर लगभग हर रोज़ मैं उसे देखती, बस स्टॉप की बेंच पर कोने में चुपचाप बैठे हुए। ऐसा लगता वह मुझसे बातें करना चाहती है बहुत कुछ कहना चाहती है पर ऑफिस जाने की हड़बड़ी में आज तक उससे कुछ बात नहीं हो पायी थी।  जैसे हीं मैं  बस स्टॉप पर  पहुँचती मेरी नज़रें उसे ढूंढनें लगतीं। उसके स्कूल यूनिफार्म को देखकर मैंने अनुमान लगा लिया था कि वह रानी बाग़ के मदर मेरी कान्वेंट में पढ़ती है, शायद सातवीं या फिर आठवीं में। सभी स्कूल बसें इसी मंदिरवाले स्टॉप तक आती थी क्योंकि हमारी कॉलनी की सड़कें काफी संकरी थीं। यह बस स्टॉप हमारी कॉलनी के बड़े फाटक के बिलकुल सामने था। यही कारण था कि अधिकतर बच्चे अकेले हीं बस पर चढ़ते या उतरते दिखते। फिर भी सातवीं- आठवीं और उनसे छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक उन्हें छोड़ने और लेने ज़रूर आते थे। पर इसे तो कभी अपने पेरेंट्स के साथ नहीं देखा। यह तो जब भी दिखी अकेली दिखी। अपने आप में सिमटी हुई, कोने में बैठी बस का इंतज़ार करती हुई। उसकी बस शायद मेरी बस के बाद आती थी इसलिए मैंने उसे कभी बस पर चढ़ते नहीं देखा। कल उसकी आँखें मुझे बहुत उदास लगीं।  वह जिस तरह से मेरी और देख रही थी... मेरा मन हुआ मैं खुद उसके पास जाकर उससे बातें करूँ पर तभी मेरी बस आ गयी!

आज ऑफिस में भी मन बड़ा उखड़ा-उखड़ा रहा। उस बच्ची के चेहरे पर आज अजीब-सी प्रौढ़ता दिखी। मेरा मन बेचैन हो उठा। वह मेरी तरफ इतनी कातरता से क्यूँ देखती है? वह हमेशा बस स्टॉप पर अकेली क्यूँ आती है? कहीं वह किसी ज़ुल्म का शिकार तो नहीं! कहीं उसके साथ कुछ गलत तो नहीं हो रहा! मेरा मन कई आशंकाओं से घिर गया। मैं रात को ठीक से सो भी नहीं पायी। मैंने निर्णय ले लिया था कल मैं उससे ज़रूर बात करूंगी चाहे मुझे अपनी बस छोड़नी पड़े।

मैं रात भर बेचैन रही। बार-बार वह मासूम चेहरा मेरी आँखों के सामने आ जाता। इतनी बेसब्री से मैंने सुबह का इंतज़ार कभी नहीं किया था। आज तो जैसे घड़ी भी सुस्त हो गयी थी। जैसे-तैसे मैंने रात गुजारी।

सुबह मैं समय से काफी पहले बस स्टॉप पर पहुँच गयी। मुझे वह कहीं नहीं दिखी। मुझे खुद पर हंँसी आ गयी, अभी तो मेरे बस को आने में आधा घंटा बाकी था और उसके स्कूल बस का समय तो मेरे बस के बाद था फिर वह इतनी जल्दी क्यों आएगी! मैं बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगी। वक्त काटे नहीं कट रहा था। मैं बार-बार कॉलनी के फाटक की तरफ देखती। आधा घंटा बीता... एक घंटा बीता... अब तो साढ़े नौ बजने वाले थे ! अब वह नहीं आएगी। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मैंने अपनी चार्टेड बस भी छोड़ दी थी। बस स्टॉप के सामने ही कुल्फी वाले का ठेला था जो रोज़ हीं वहाँ होता था। मैंने सोचा क्यूँ न कुल्फी वाले भैया से पूछ लूँ। शायद उसे बच्ची का मकान पता हो। मैं झट से कुल्फी वाले की तरफ बढ़ गयी।

"भैया, क्या आप उस बच्ची को जानते हैं जो रोज़ यहां इस कोने में बैठी रहती है, सुबह आठ बजे के आस पास", मैंने बस स्टॉप के बेंच की ओर इशारा किया।

कुल्फ़ीवाले ने अजीब सी नज़रों से मुझे देखा। मैंने फिर दोहराया,
"भैया अगर बता सको तो बहुत बड़ी मदद हो जाएगी।"

"बच्ची!!! मैंने तो कभी उस कोने में किसी बच्ची को बैठे नहीं देखा, मैडम जी! तीन साल से सुबह सात से शाम सात बजे तक यहीं होता हूँ। इस कॉलोनी के अधिकतर बच्चों को पहचानता हूँ पर यहां इस कोने में मैंने आज तक ऐसी किसी बच्ची को बैठे नहीं देखा।"

मेरा सर दर्द से मानों फटा जा रहा था। मेरी नज़रों के सामने अब भी वह मासूम चेहरा घूम रहा था।

वह कौन थी!?!? मेरी कल्पना, मेरा डर या मेरा दर्द भरा बचपन...

विष्णुप्रिया पांडेय 
142-A, EVA, सेक्टर-93, नॉएडा
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चीन से कैसे जीतें — लड़ना होगा इस पार के ड्रैगनों से — अश्विन सांघी @AshwinSanghi



अश्विन सांघी वह पब्लिक इन्टलेक्चूअल हैं जिनकी बात सबको सुननी चाहिए। अश्विन के तर्क असली होते हैं, और शायद यही कारण है कि असलियत से दूर भागते लोग उनके तर्कों से मुंह छिपाते हैं। पढ़िए इस उत्कृष्ट लेख को समझिये चीन से कैसे जीतें और सांघी जी को इसे भेजने का शुक्रिया मेरे साथ मिलकर कहिये... भरत एस तिवारी

An Era of Darkness — (आंशिक) स्वतन्त्र प्रेस: भारतीय समाचार-पत्रों का उदय — Dr Shashi Tharoor | पार्ट 2





डॉ शशि थरूर की अवश्य पढ़ी जाने वाली किताब 'An Era of Darkness/अन्धकार काल' के अंश, एक ज़रूरी अध्याय 'प्रजातन्त्र, प्रेस, संसदीय प्रणाली एवं विधि सम्मत नियम' / Democracy, The Press, The Parliamentary System' की श्रृंखला English और हिंदी में, आप शब्दांकन पाठकों के लिए.

डॉ शशि थरूर जी का 'रूपा पब्लिकेशन' द्वारा अंग्रेज़ी अंश तथा 'वाणी प्रकाशन' द्वारा अनुवादित हिंदी अंश उपलब्ध कराने का आभार, धन्यवाद...भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक.

An Era of Darkness — प्रजातन्त्र से परिचित कराने का ब्रिटिश दावा — Dr Shashi Tharoor | पार्ट 1



डॉ शशि थरूर की अवश्य पढ़ी जाने वाली किताब 'An Era of Darkness/अन्धकार काल' के अंश, एक ज़रूरी अध्याय 'प्रजातन्त्र, प्रेस, संसदीय प्रणाली एवं विधि सम्मत नियम' / Democracy, The Press, The Parliamentary System' की श्रृंखला English और हिंदी में, आप शब्दांकन पाठकों के लिए.

डॉ शशि थरूर जी का 'रूपा पब्लिकेशन' द्वारा अंग्रेज़ी अंश तथा 'वाणी प्रकाशन' द्वारा अनुवादित हिंदी अंश उपलब्ध कराने का आभार, धन्यवाद...भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक

आज का नीरो: राजेंद्र राजन की चार कविताएं


कवि राजेंद्र राजन जी की इन कविताओं को पढ़ने के बाद... 
कुछ कवि अपना धर्म निभा रहे हैं और बाकियों को कवि कहा, सोचा ही क्यों जाए! भरत एस तिवारी/ शब्दांकन संपादक


आज का नीरो | न्याय | हौसला आफजाई | दूसरा

राजेंद्र राजन