कवितायेँ - ऐन सूरज की नाक के नीचे : सुमन केसरी

उसके मन में उतरना...  suman kesri monalisa ki aankhen mona lisa सुमन केसरी मोनालिसा की आँखें


उसके मन में उतरना
मानो कुएँ में उतरना था
सीलन भरी
अंधेरी सुरंग में

     उसने बड़े निर्विकार ढंग से
     अंग से वस्त्र हटा
     सलाखों के दाग दिखाए
     वैसे ही जैसे कोई
     किसी अजनान चित्रकार के
     चित्र दिखाता है
     बयान करते हुए-
     एक दिन दाल में नमक डालना भूल गई
     उस दिन के निशान ये हैं
     एक बार बिना बताए मायके चली गई
     माँ की बड़ी याद आ रही थी
     उस दिन के निशान ये वाले हैं
     ऐसे कई निशान थे
     शरीर के इस या उस हिस्से में
     सब निशान दिखा
     वो यूँ मुस्कुराई
     जैसे उसने तमगे दिखाए हो
     किसी की हार के...

          स्तब्ध देख
          उसने मुझे होले से छुआ..
          जानती हो ?
          बेबस की जीत
          आँख की कोर में बने बाँध में होती है
          बाँध टूटा नहीं कि बेबस हारा
          आँसुओं के नमक में सिंझा कर
          मैंने यह मुस्कान पकाई है

तब मैंने जाना कि
उसके मन में
उतरना
माने कुएँ में उतरना था
सीलन भरे
अंधेरे सुरंग में
जिसके तल में
मीठा जल भरा  था...


मोनालिसा

                         
क्या था उस दृष्टि में
उस मुस्कान में कि मन बंध कर रह गया

          वह जो बूंद छिपी थी
          आँख की कोर में
          उसी में तिर कर
          जा पहुँची थी
          मन की अतल गहराइयों में
          जहाँ एक आत्मा हतप्रभ थी
          प्रलोभन से
          पीड़ा से
          ईर्ष्या से
          द्वन्द्व से...

वह जो नामालूम सी
जरा सी तिर्यक
मुस्कान देखते हो न
मोनालिसा के चेहरे पर
वह एक कहानी है
औरत को मिथक में बदले जाने की
कहानी...

लड़की


डुग डुग डुग डुग
चलती रही है वह लड़की
पृथ्वी की तरह अनवरत
और नामालूम सी

     किसे पता था कि चार पहर बीत जाने के बाद
     हम उसे पल-पल गहराते चंदोवे के नीचे
     सुस्ताता-सा देखेंगे
     और सोचेंगे
     लेट कर सो गई होगी लड़की
     पृथ्वी सी

          पर चार पहर और बीतने पर
          उसे आकाश के समन्दर से
          धरती के कोने कोने तक
          किरणों का जाल फैलाते देखेंगे

कभी उसके पाँवों पर ध्यान देना
वह तब भी
डुग डुग डुग डुग
चल रही होगी
नामालूम सी
पृथ्वी सी..



मैं बचा लेना चाहती हूँ


मैं बचा लेना चाहती हूँ
जमीन का एक टुकड़ा
खालिस मिट्टी और
नीचे दबे धरोहरों के साथ

          उसमें शायद बची रह जाएगी
          बारिश की बूंदों की नमी
          धूप की गरमाहट
          कुछ चांदनी

उसमें शायद बची रह जाएगी
चिंटियों की बांबी
चिड़िया की चोंच से गिरा कोई दाना
बाँस का एक झुड़मुट
जिससे बांसुरी की आवाज गूंजती होगी...


औरत


 रेगिस्तान की तपती रेत पर
   अपनी चुनरी बिछा
      उस पर लोटा भर पानी
        और उसी पर रोटियाँ रख कर
           हथेली से आँखों को छाया देते हुए
                                               औरत ने
                     ऐन सूरज की नाक के नीचे
                                 एक घर बना लिया


एक टिप्पणी भेजें

6 टिप्पणियाँ

  1. बेहद मर्मस्पर्शी और भेदी कविताएँ हैं । सीधे मन की गहराईयों में उतर जाती हैं आपकी रचना । सभी कवितायें रत्नों की तरह हैं । "उसके मन में उतरना" तो निः शब्द कर देती है । आपको बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ऐसे मार्मिक और अर्थगर्भित शब्दों के लिए शुक्रिया

      हटाएं
    2. ऐसे मार्मिक और अर्थ गर्भित शब्दों के लिए धन्यवाद

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. दिल को छूती सारगर्भित कवितायें

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
फ्रैंक हुजूर की इरोटिका 'सोहो: जिस्‍म से रूह का सफर' ⋙ऑनलाइन बुकिंग⋘
NDTV Khabar खबर