माधव हाड़ा की महत्वपूर्ण किताब 'सौनें काट न लागै - मीरां पद संचयन' की ज़रूरी समीक्षा की है रा. उ. मा. वि. आलमास, भीलवाड़ा, राजस्थान के प्राध्यापक मोहम्मद हुसैन डायर ने । ~ सं०
अरबों से मुक़ाबला करने के लिए रवीश कुमार ने की अक्षय कुमार से अपील, लिखा पत्र | Ravish Kumar's Open Letter to Akshay Kumar
रवीश कुमार जब कुछ कहते हैं तो कुछ, या किसी को बख़्शते नहीं हैं। एंकर नविका कुमार के कार्यक्रम में बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान से उठे बवाल पर, रवीश कुमार अक्षय कुमार को पत्र लिखते हैं और कहते हैं - "जब आप बैक डेट में मुग़लों से बदला ले सकते हैं तो मुझे भरोसा है कि आप अरबों से भी बदला ले सकते हैं।"
पढ़िए Ravish Kumar's Open Letter to Akshay Kumar ~ सं०
समीक्षा: मुजीब रिज़वी की किताब ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा: पद्मावत और जायसी की दुनिया’ — दिव्या तिवारी | Padmavat Aur Jayasi Ki Duniya
दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में रिसर्च स्कॉलर दिव्या तिवारी लिख रही हैं मुजीब रिज़वी की किताब ‘सब लिखनी कै लिखु संसारा: पद्मावत और जायसी की दुनिया’ की एक सुंदर समीक्षा ~ सं०
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मृदुला गर्ग के उपन्यास चित्तकोबरा का 'इडिशंस बैन्यन' से फ्रेंच संस्करण CHITTAKOBRA, Le cobra de l'esprit (चित्तकोबरा, कोबारा दे ले'इसप्री) एक बेहद संजीदा आवरण के साथ आया हुआ था। इसी खुशी के बीच उनके घर पर हो रही बातचीत में मृदुला जी ने मुझे बताया कि किस तरह प्रो० हरीश त्रिवेदी ने चित्तकोबरा के अंग्रेज़ी संस्करण को पढ़ने के बाद उन्हें ईमेल लिखकर कहा - "मैंने अभी चित्तकोबरा को इस आदर और आश्चर्य दोनों के साथ पढ़ा/दोबारा पढ़ा कि आप वर्षों पहले ही वहाँ हो आयी हैं और लिख चुकी हैं — जहाँ नारी-नज़र, विदेशी प्रेमी सबकी 'बोल्डनेस' आज भी बोल्ड दीखती है..." मैंने उनसे वह ईमेल मांगी, क्योंकि वह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जिसके बारे में भारतीय साहित्य से जुड़े लोगों को मालूम होना चाहिए। 26 मई 2017 को प्रो हरीश त्रिवेदी जी द्वारा मृदला गर्ग को लिखी यह चिट्ठी (ईमेल) और उसके बाद चित्तकोबरा का एक अंश ~ भरत तिवारी
पानियों पर लिखे बेवतन लोगों के अफ़साने — कहानी — मधु कंकरिया | Hindi Story on Stranded Pakistanis by Madhu Kankaria
अपना देश, अपना मुल्क कितनी बड़ी नियामत है यह! पर हम अभागे बिना देश के हैं। कौन समझेगा इस पीड़ा को? कौन समझेगा घर का बिस्तर, घर की गलियां छोड़ने का दुःख? सपनों से बाहर होने का दुःख! जीवन गुज़र रहा है पर हर वक़्त जैसे एक ख़ंजर घुसा है सीने में, क्या कभी छू पाऊंगी उस माटी को जहाँ खोली थी आँखें मैंने और मेरी बहन ने? लगता है जैसे एक अँधेरी सुरंग में ठहर गया है जीवन हमारा। आज भी ढाका के उमड़ते घुमड़ते मेघ संभालते हैं मुझे, जान से प्यारा लगता है ढाका मुझे पर ढाका मुझे अपना नहीं समझता, मेरे माथे पर मुहर लग गयी है ‘अटके पाकिस्तानी’ की ...
बांग्लादेश का उर्दू बोलने वाला समुदाय, जिन्हें बिहारी भी कहा जाता है, 1971 से एक कठोरतम स्थिति से गुज़र रहा है। जब पाकिस्तान बना तब बिहार से बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने पाकिस्तान (पूर्वी) का रुख किया, फिर जब पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बांग्लादेश बना तो ये हिन्दी-उर्दू बोलने वाला, बंगालियों से जुदा व्यवहार वाला, समुदाय ‘Stranded Pakistanis’ बन गया। इन ‘अटके पाकिस्तानियों' की कहानी ‘पानियों पर लिखे बेवतन लोगों के अफ़साने’ एक संजीदा और शोधपरक कहानी लिखकर मधु कंकरिया ने बेहद प्रशंसनीय कार्य किया है। यह कहानी, या फिर एक ज़िंदा इतिहास पढ़िएगा ज़रूर! ~ सं०
पसीने के सिक्के — रेणु हुसैन की पाँच कविताएं | Five Poems of Renu Hussain
रेणु हुसैन की कविताएं इधर बहुत निखरी हैं। पढ़ने में वह आनंद मिल रहा है जो हिन्दुस्तानी कविता की भाषा में होना चाहिए। और, विचारों के धरातल की फलक ख़ूब कुलांचे भरते हुए भी, नियंत्रण से बाहर नहीं जा रही है। पढ़कर अपने विचार दीजिएगा। ~ सं०
माँ : सात कविताएँ ~ कुलदीप कुमार | Maa : Seven Poems ~ Kuldeep Kumar
हिन्दी जगत के प्रिय, वरिष्ठ कवि व पत्रकार कुलदीप कुमार की सात कविताएं माँ पर। इनमें से में पहली दो कविताएं प्रो. नामवर सिंह द्वारा 1976 में 'आलोचना' में प्रकाशित की गई थीं, जब पत्रिका हिंदी साहित्य जगत में अपनी प्रतिष्ठा के चरम पर थी। अगली दो कविताएँ शिमला से विजय मोहन सिंह की लघु पत्रिका 'युवा पर्व' में प्रकाशित हुईं। अंतिम तीन कविताएँ हाल ही में 'नया ज्ञानोदय' में प्रकाशित हुई हैं। यह कविताएं शब्दांकन के पाठकों के लिए भेजने का कुलदीप कुमार जी को बहुत आभार। ~ सं०
गुलज़ार की कहानी - सनसेट बुलवार्ड | Hindi Story 'Sunset Boulevard' by Gulzar
गुलज़ार साहब को कैसे भी पढ़िए, उनके शब्दों की चमक सबसे जुदा, चमकदार और सटीक होती है। उनके गद्य में भी नज़मों की रवानगी होती है। शब्दांकन पर आप पहले भी गुलज़ार साहब की कहानी पढ़ते रहे हैं, उसी क्रम में आज पेश है कहानी 'सनसेट बुलवार्ड'। राय दीजिएगा। ~ सं०
'निचला ओंठ अधिक चंचल है ' व अन्य कविताएं — जोशना बैनर्जी आडवानी | Joshnaa Banerjee Adwanii Hindi Poetry
शब्दों को प्यार से चुनकर जोशना कविताएं बुनती हैं। उनकी कविताओं में एक नई कसावट है। जोशना बैनर्जी आडवानी की कविताओं पर बातचीत होनी चाहिए। फ़िलहाल, कविता प्रेमियों से इतना ही कि जल्दी वक़्त निकालकर इन कविताओं को पढ़िए। ~ सं०
सुंदर बदन सुख सदन श्याम को - मनमोहक - सूरदास का भजन / अश्विनी भिड़े-देशपांडे का गायन
सुंदर बदन सुख सदन श्याम को
सूरदास का भजन / अश्विनी भिड़े-देशपांडे का गायन
सूरदास के प्रस्तुत भजन को अश्वनी जी की मनमोहक आवाज़ में हमेशा सुनता रहता हूँ। बीते दिनों यह ख्याल आया कि आपसब को इस सुख से वंचित रखना अच्छी बात नहीं है। सादर, सप्रेम ~ सं०
खुशवन्त सिंह - शहतूत का पेड़ Khushwant Singh Story in Hindi
खुशवन्त सिंह - खुशवन्त सिंह की कहानियां - खुशवन्त सिंह किस्से
Khushwant Singh Ki Kahaniyan
खुशवन्त सिंह से हम वाकिफ़ हैं और हममें में से बहुत उनकी कहानियों को हिन्दी में पढ़ना चाहते होंगे। इसलिए, पेश है खुशवंत सिंह के एन अकबर द्वारा अनुवादित 'ज़न्नत और अन्य कहानियां' संकलन से एक किस्सा। ~ सं०
शहतूत का पेड़
~ खुशवन्त सिंह
विनोद कुमार शुक्ल, रॉयल्टी विवाद और लेखक-प्रकाशक संबंध ~ विनोद तिवारी
अब किसी पुस्तक के कितने संस्करण छपते हैं और कितने दिनों के अंतराल पर छपते हैं और कितनी प्रतियाँ छपती हैं, यह मुद्दा नहीं है बल्कि, दो-चार-दस-बीस प्रतियों के संस्करण का बाज़ार से उठ जाना ख़बर है।
प्रकाशक का व्यापारी होना सच है, इससे कोई दिक्कत नहीं है, होनी भी नहीं चाहिए। दिक्कत इस बात से है कि वह अपने उत्पादक को वह मूल्य क्यों नहीं दे रहा है जो उसे देना चाहिए। किसानों वाली हालत क्यों हो? मौका मिलते ही लूट खसोट कर लेने की आदत तो कभी भी ठीक नहीं होती। प्रस्तुत लेख में अध्यापक, आलोचक और संपादक विनोद तिवारी रॉयल्टी विवाद और लेखक-प्रकाशक संबंध की, उसके विभिन्न आयामों की जांच-पड़ताल करते हुए तार्किक सुझाव भी दे रहे हैं। ~ सं०
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