अदम गोंडवी जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे कमीशन दो तो हिन्दोस्तान को नीलाम कर देंगे ये बन्दे-मातरम का गीत …
आगे पढ़ें »शब्दांकन कर्मी पिछले ३ माह से संकलन कर रहे हैं. जल्द सब कुछ , आपके सामने होगा आप भी अपनी विधा की रचना इत्यादि भेज सकते हैं
आगे पढ़ें »ना वे रथवान रहे, ना वे बूढ़े प्रहरी, कहती टूटी दीवट, सुन री …
आगे पढ़ें »तू न जिया न मरा, ज्यों कांटे पर मछली, प्राणों में दर्द पिरा. * सहजन की…
आगे पढ़ें »जल ही जल नहीं रहा, आग नहीं आग. सूरत बदले चेहरे, सीरत बदला …
आगे पढ़ें »बदले मन के प्रसंग बदली बोली-बानी! * टूटा फूटा मजार खँडहर-सा …
आगे पढ़ें »मितवा मन पाखी बेचैन. प्रान-पिरावा अगिन जरावा , सुखदुख ये संसार छलावा , पल-छिन आवा …
आगे पढ़ें »ऋण को ऋण से भरते मूंज हुए केश, अपनी तक़दीर रहन उनके आदेश. ग़ुरबत की हथकड़ियाँ\ बच…
आगे पढ़ें »दीरघ दाग़ निदाघ नाहिं बिरछ की छाँव राम जी अम्बर अगिन झरे ! * घर से निकसे जीव-जहानी, आग …
आगे पढ़ें »नाहिन चाहिबे नाहिन रहिबे हंसा व्है उड़ि जइबे रे ! * काया-माया खेल रचाया आपु अकेला जग में आया भीतर रोया ब…
आगे पढ़ें »बूढा बरगद छाँह घनेरी, मंदिर घाट नदी के, आसमान धूसर पगडण्डी, कब स…
आगे पढ़ें »पुलिया पर बैठा एक बूढ़ा काँधे पर मटमैला थैला, थैले में कुछ अटरम-सटरम आलू-प्याज हरी तरकारी कुछ कदली फल पानी की एक बोतल भी है मदिरा जिसम…
आगे पढ़ें »हुज़ूरे आला, पेशे ख़िदमत है दरबारे आम में हमारा यह अर्जीनामा - कि हम थे कभी जंगल के आजाद बछेरे. किस्मत की मार कि एक दिन काफ़िले का सौदागर…
आगे पढ़ें »गन्धवाह-सा बौराया मन आहत स्वर उभरे। * विस्मृत्तियों का गर्भ चीरकर जन्मा सुधियों का मृगछौना , ज्यों कुहरे से …
आगे पढ़ें »इक दीदा-ए तर इक क़तरा-ए नम, इक हुस्ने-ज़मीं इक ख्वाबे-फ़लक इक जद्दोजहद इक हक़ मुस्तहक़ मेरी ज़िन्दगी मेरी ज़िन्दगी... मेरा इश्क़ है मेरी श…
आगे पढ़ें »अमरलता प्यासी की प्यासी सूख चला है जीवन बिरवा, सुन मेरे गीतों जे पियवा! बुरी गंध द्वार तक आई रोम-रोम उमगी तरुणाई , भाव…
आगे पढ़ें »युग संध्या (एक शोक गीत) वही कुहाँसा, वही अँधेरा, वही दिशाहारा-सा जीवन, इतिहासों की …
आगे पढ़ें »हर चेहरा जलहीन नदी-सा... (शताब्दी-बोध) इस रंगीन शहर में मुझको सब कुछ बेगाना लगता है , आकर्षक चेहरे हैं ल…
आगे पढ़ें »कैसे बीते दिवस हमारे हम जाने या राम! * सहती रही सब कुछ काया, मलिन …
आगे पढ़ें »गाँव में जन्में. धूल-मिटटी में खेले. पढ़ाई के लिए घर में ही जंग लड़े. मड़ई से निकले. पगडंडियों से चलकर, बनारस पहुंचे. विश्वविद्यालयी छात्र जीवन में…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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