प्रधानमंत्री मोदी के नाम अभिसार का खुला ख़त @abhisar_sharma


आपने ज़िक्र किया देश में सामाजिक न्याय का । कमजोरों पर हमले की निंदा की । हालांकि आपने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की तरह खुलकर बात नहीं की, जिसमें उन्होंने ‘असहिष्णुता’ शब्द का इस्तेमाल किया, मगर ठीक है । हम आपकी भावनाएं समझ गए । वैसे ‘असहिष्णुता’ शब्द बीजेपी और आपके पैरोकारों को काफी असहज कर देता है । 


Open Letter to PM Modi 

- Abhisar




माननीय प्रधानमंत्रीजी

आज एक बार फिर, तीसरी बार, लाल किले की प्राचीर आपको सुनने का मौका मिला । तीसरी बार? आपकी बातों में वक़्त कैसे निकल गया पता ही नहीं चला । खैर, सबसे पहले आपको बधाई, कि आपने जिस बेहतरीन तरीके से बलोचिस्तान का ज़िक्र अपने भाषण में किया । मुझे आपके भाषण के इस हिस्से की सबसे अच्छी बात ये लगी कि आपने बड़ी खूबसूरती के साथ, पाकिस्तान को सियासी और कूटनीतिक पटखनी दी । आपने ज़िक्र किया पेशावर के एक स्कूल में आतंकवादियों के हमले का जिसमें कितने मासूम शहीद कर दिये गए । ये पाकिस्तान के इतिहास में दर्द का ऐसा लम्हा था, जिससे भारत में हम सबकी आँखें नम थी । क्यों न हों? बच्चे हमारी विरासत हैं । हमारी मासूमियत का सरमाया हैं । कोई कैसे उन्हें छलनी करने की सोच सकता है ? आपने पाकिस्तान के इस लम्हे का ज़िक्र करते हुए, उसकी कमज़ोर नब्ज, यानी बलोचिस्तान को बेरहमी से रौंध दिया । ये अप्रत्याशित है । भारत के इतिहास में किसी भी प्रधानमंत्री ने बलोचिस्तान शब्द का ज़िक्र नहीं किया । हाँ, एक शर्मिंदगी का लम्हा ज़रूर था, जब पूर्व UPA सरकार ने मिस्र के शर्म अल शेख से जारी हुए भारत पाकिस्तान संयुक्त बयान में बलोचिस्तान को जगह दे दी ।

जब मुख्य न्यायाधीश बेबस हो जाते हैं, अपनी वाजिब मांग को रखने के लिए “अब्रे करम” का दामन थामने लगें, तब ये एक प्रजातांत्रिक देश और सामाजिक न्याय के लिए अच्छी खबर नहीं है ।





पाकिस्तान के नाजायज़ कब्ज़े वाले कश्मीर का आपने जिस “तंज़” नुमा अंदाज़ में बखान किया, उसने हमें 1971 की याद दिला दी, जब अंतर्राष्ट्रीय मोर्चों पे मरहूम इंदिरा गाँधी ने ईस्ट पाकिस्तान यानी बांग्लादेश का ज़िक्र किया था । जब ये प्रण लिया था कि भारत, ईस्ट पाकिस्तान में चल रहे मानवाधिकार हनन को लेकर आँखें नहीं मूँद सकता । नतीजा हम सबके सामने है । पाकिस्तान दो फाड़ हो गया । मगर बलोचिस्तान में हमारे दखल के क्या मायने हैं? क्या भारत अब खुलकर बलोचिस्तान में चल रहे पृथकतावादी आन्दोलन का समर्थन करने जा रहा है? क्या ये समर्थन नैतिक के अलावा सामरिक भी होगा यानी सैनिक साजोसामान भी ? मैं जानता हूँ, आपके कुछ राष्ट्रवादी भक्तों के लिए ये किसी खूबसूरत ख्वाब से कम नहीं । इन राष्ट्रवादियों के लिए पाकिस्तान के चार हिस्सों में बिखर जाने से बेहतर स्थिति आखिर क्या हो सकती हैं । मगर ये बात आप भी समझते होंगे कि ये 1971 नहीं । अब मामला दो परमाणु संपन्न राष्ट्रों के बीच है । अब यक्ष प्रश्न ये भी है कि पाकिस्तान को अस्थिर करना क्या वाकई भारत के हित में है? विकल्पों की बात करें तो इसका सीधा अर्थ पाकिस्तान में प्रजातंत्र का खात्मा, यानी सेना का राज या फिर भयावह स्थिति में पाकिस्तान पर अतिवादियों (तहरीके तालिबान) का कब्ज़ा । या फिर और भी बुरा, ISIS का परचम, जो इस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान को आसपास से नोच रहा है । क्या भारत बलोच पृथकतावादियों को समर्थन देकर, दुनिया में पाकिस्तान पर आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी नैतिक बढ़त बनाये रखेगा ? दुनिया की नज़रों में, पाकिस्तान इस वक़्त आधिकारिक तौर पर भारत में आतंकवाद का प्रायोजक है । हमें फैसला करना होगा कि बलोच पृथकतावादियों को समर्थन देकर, हम कूटनीतिक तौर पर क्या हासिल करना चाहते हैं और इसमें भारत के क्या हित जुड़े हैं? पाकिस्तान को फिर बिखेरने की रूमानियत पालना बेहद आसान है । मगर हमें ये देखना होगा कि इसमें भारत के क्या हित हैं । मैं बलोचिस्तान में दखल देने या न देने के मायनों, या फिर उसे सही गलत बताने की बहस में नहीं पड़ना चाहता । मेरा हित सिर्फ राष्ट्रहित और मेरे देश की जनता की सुरक्षा है, जिसकी ज़िम्मेदारी आपके कन्धों पर है ।

आपने ज़िक्र किया देश में सामाजिक न्याय का । कमजोरों पर हमले की निंदा की । हालांकि आपने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की तरह खुलकर बात नहीं की, जिसमें उन्होंने ‘असहिष्णुता’ शब्द का इस्तेमाल किया, मगर ठीक है । हम आपकी भावनाएं समझ गए । वैसे ‘असहिष्णुता’ शब्द बीजेपी और आपके पैरोकारों को काफी असहज कर देता है ।

खैर, हमारे स्टूडियो में मौजूद एक गौरक्षक बेहद व्यथित दिखाई दिए । कहने लगे, 2014 में आपको समर्थन देना हमारी गलती थी । मुझे उम्मीद है कि संघ (RSS), परिवार के अन्दर चल रहे इस संघर्ष को आप वक़्त रहते ज़रूर संबोधित करेगा ।

बहरहाल, वापस आना चाहूँगा सामाजिक न्याय के आपके बयान पर । सवाल ये कि जब हाईकोर्ट में जजों की बहाली नहीं होगी और इस मुद्दे पर आपकी सरकार बार-बार मुख्य न्यायाधीश की आलोचना का सामना करती रहेगी, तब आप देश में न्याय की उम्मीद कैसे कर सकते है? मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर कह चुके हैं कि व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है । आपके भाषण के बाद उन्होंने फिर कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि आप न्यायपालिका में बहालियों पर टिप्पणी ज़रूर करेंगे । आप खामोश रहे ।

...ठाकुर साहब का दर्द वाजिब है और ये आपकी ज्यादती -

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर (फल) भी / ए अब्रे करम ए बेरे सखा कुछ तो इधर भी

जब मुख्य न्यायाधीश बेबस हो जाते हैं, अपनी वाजिब मांग को रखने के लिए “अब्रे करम” का दामन थामने लगें, तब ये एक प्रजातांत्रिक देश और सामाजिक न्याय के लिए अच्छी खबर नहीं है । ये शर्मनाक है जब मुख्य न्यायाधीश, न्याय के लिए “गुज़ारिश” करता दिखे । जजों की बहाली के लिए मिन्नतें करता दिखे । क्या यह सही है? सोचियेगा ज़रूर ।
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आपने दलितों का ज़िक्र किया, आपने शोषितों का ज़िक्र किया । दलितों के लिए गोली खाने के आपके बयान से मैं अब तक उबर नहीं पाया हूँ । मगर, जब मौका नाम लेने का ही है, तब आप मुसलमान को क्यों भूल गए ? एक ऐसे मौका पर जब उसकी वफ़ा, ईमानदारी पर बार-बार सवाल किये जा रहे हैं । जब दलितों के अलावा, मुसलमान पर भी गौरक्षा के नाम पर हमले किये जा रहे हैं, तब उसके लिए एक भी लफ़्ज़ न कहना, कितना जायज़ है? मैं ये स्पष्ट कर दूँ, कि व्यक्तिगत तौर पर मैं इस सतही तुष्टिकरण के खिलाफ हूँ । मगर अब नाम ले ही लिया तो फिर वो पीछे क्यों? क्योंकि हम उत्तर प्रदेश के चुनावों में प्रवेश कर रहे हैं । आपके कई पार्टी वीर आने वाले दिनों में शर्तिया तौर पर अनापशनाप बयान देंगे और निशाने पर मुसलमान ही होगा । ऊपर से उन्हें आज़म खान जैसे महानुभावों का साथ हासिल होगा । ऐसे में मुसलमान को इस कदर भूल जाना सवाल खड़े करता है । ये बात मैं इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि बार बार ISIS की चुनौती की बात कही जा रही है । ये कहा जा रहा है कि (कम से कम कुछ टीवी चैनलों की मानें तो) कुछ मुस्लिम धर्मगुरु और उनकी संस्थाएं कथित तौर पर भटके हुए नौजवानों को सीरिया तक पहुंचा रहे हैं । तब ये ज़रूरी हो जाता है कि एक स्टेट्समैन के तौर पर आप उसकी आशंकाओं को संबोधित करें ।

आपने भटके हुए नौजवानों को राह पे लाने की बात तो की, मगर आपने माओवाद और आतंकवाद, दोनों को एक पैमाने पर तोल दिया । क्यों भला ? इन दोनों के बीच, इस वक़्त न कोई गठजोड़ है और न कभी बनना चाहिए । क्योंकि माओवाद के नाम पर बीजेपी की छत्तीसगढ़ सरकार संतोष यादव जैसे पत्रकारों पर छत्तीसगढ़ का विवादित CSPSA कानून लगा देती है । फिर उन्हें जेल में पीटा जाता है । पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को नक्सली समर्थक बताकर उन्हें निशाना बनाया जाता है । पत्रकारों, NGO से आपकी पार्टी को क्या बैर है, समझ पाना मुश्किल है । छत्तीसगढ़ के आधा दर्जन पत्रकारों को वहां की सरकार जेल भेज ही चुकी है, ऊपर से आउटलुक की नेहा दीक्षित के खिलाफ बीजेपी के कहने पर दर्ज हुई FIR भी हमारे सामने है ।

यही वजह है कि जब सामाजिक संस्थाओं और पत्रकारों पर ऐसे हमले होंगे तब सामाजिक न्याय की आपकी अपील अधूरी रहेगी और कुछ लोगों के लिए महज एक जुमला !

आपके भाषण में कश्मीर को भी स्थान नहीं मिला । अभिन्न अंग है न हमारा? क्योंकि यहाँ आप कुछ कहते तो बुरहान वानी की पेचीदा सियासत में फँस सकते थे । वैसे भी बीजेपी के लिए महबूबा मुफ़्ती द्वारा दिए गए बयानों को सही ठहराना मुश्किल हो रहा है, जिसमें वो बुरहान वानी की मौत के लिए सुरक्षा एजेंसीयों को कटघरे में खड़ा कर चुकी हैं । ऊपर से राष्ट्रवादी चैनलों ने भी इस मुद्दे पर खामोशी साध ली है । सच तो ये है मोदीजी, कश्मीर समस्या का समाधान, बलोचिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने के राष्ट्रवादी आह्वान के साथ नहीं किया जा सकता । कश्मीर का मुद्दा पेचीदा है, संवेदनशील है । उसे एक बार फिर “HEALING TOUCH” की ज़रूरत है ।

जब आपने अपने भाषण की शुरुआत की, तब वाकई मुझे लगा कि इस भाषण से देश को दिशा मिलेगी । आपके शब्दों में, मैं अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान नहीं करना चाहता, इसमें एक हफ्ता लग जाएगा । मगर न चाहते हुए भी, आपका पूरा भाषण न सिर्फ आपकी “उपलब्धियों” का बखान था, बल्कि एक चुनावी स्पीच भी । आपने 45 सीटों पर सिमट चुकी कांग्रेस को भी फिर याद किया । आपने हमें बताया कि आपकी सरकार अपेक्षा (उम्मीदों) की सरकार है, पिछली सरकारें आक्षेपों (आरोपों) की सरकार थी । लाल किले की प्राचीर से भी आपने सियासत को आबाद रखा । सच तो ये है कि सियासत से जुदा कुछ भी नहीं । न लम्हा न स्थान । सबसे हास्यास्पद तब लगा जब पार्टी के जुझारू प्रवक्ता संबित पात्रा ने एक टीवी डिबेट में कहा, कि आज के दिन मैं सियासत की बात नहीं करना चाहता, आरोप प्रत्यारोप नहीं करना चाहता । संबित की ये मनोकामना भी पूरी नहीं हुई ।

भारत माता की जय

आपका,
अभिसार


Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
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5 टिप्पणियाँ

  1. Abhisar is one of the mist courageous journalist of india. He should write blog like he is writing these days but he should care about his job. He shouldnt forget what happend with the journalist of Outlook.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (17-08-2016) को "क्या सच में गाँव बदल रहे हैं?" (चर्चा अंक-2437) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. chutiyon comment karne se pehle ye bhi padh liya karo
    https://www.pgurus.com/cbi-probe-ndtvs-income-tax-assessment-officer-journalist-husbands-unaccounted-income/
    congress ne to bacha liyatha ab bjp se kaun bachaye ga fraud

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