सुबह हुई। उसे चाय की तलब लगी। पर उसके पास समय नहीं था। उसने सोचा, इतने असुरक्षित जीवन में किसी इच्छा का क्या महत्त्व, चाहे वह चाय पीने जैसी अदना…
ज़ख़्म भले न भरें, पर समय उन पर पपड़ी तो डाल ही देता है हलंत हृषीकेष सुलभ ≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡ अजीब-सी चुप्पी, जिसका कोई ओर-छोर नहीं था। लगता,…
स्मृतियाँ भी तो थकाती हैं कभी-कभी, जब वे ठाट की ठाट उमड़ती हुई बे-लगाम चली आती हैं उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ ≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡ ज़िन्दगी…