के.के.बिरला फाउंडेशन का चौबीसवां 'बिहारी पुरस्कार'
प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार श्री ओम थानवी को
के.के.बिरला फाउंडेशन के निदेशक सुरेश ऋतुपर्ण ने प्रतिष्ठित चौबीसवें ’बिहारी पुरस्कार’ की घोषणा करते हुए बताया कि वर्ष 2014 के लिए यह सम्मान प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार श्री ओम थानवी को उनके यात्रा वृत्तांत ‘मुअनजोदड़ो’ (2011 में ‘वाणी प्रकाशन’ से प्रकाशित) के लिए दिया जायेगा। इस पुरस्कार में प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह व एक लाख रूपये की राशि भेंट की जाती है।
के.के.बिरला फाउंडेशन द्वारा प्रवर्तित तीन साहित्यिक सम्मान में से एक केवल राजस्थान के हिंदी / राजस्थानी लेखकों के लिए है जिसमें राजस्थान के मूल निवासियों के अतिरिक्त वे लोग भी आते हैं जो पिछले सात वर्षों से अधिक समय से राजस्थान में रह रहे हैं।
पिछले दस वर्षों में प्रकाशित राजस्थान के किसी लेखक की उत्कृष्ट हिंदी/राजस्थानी कृति को प्रतिवर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार महाकवि बिहारी के नाम पर बिहारी पुरस्कार कहलाता है। बिहारी पुरस्कार के चयन का उत्तरदायित्व एक निर्णायक समिति का है जो कि बिहारी पुरस्कार नियमावली के अनुसार कार्य करती है।
’मुअनजोदड़ो’ एक ऐसा यात्रा-वृ्त्तांत है जो सामान्य यात्रा-वृत्तांतों से एकदम अलग है। यह पुस्तक किसी एक यात्रा का विवरण भर नहीं है वरन् इसमें यात्रा के क्षणों में उपजी अनंत जिज्ञासाओं के साथ-साथ एक बौद्धिक यात्रा भी समानांतर चलती रहती है। लेखक अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान मुअनजोदड़ो की यात्रा पर जाता है क्योंकि यह यात्रा उसके लिए एक तीर्थयात्रा के समान है। अपनी सभ्यता के सबसे बड़े तीर्थ की यात्रा जिससे जुड़े अनेक भारतीय और पाश्चात्य विचारकों द्वारा प्रस्तुत मिथक उसे जहां एक ओर रहस्यमय बनाते हैं तो दूसरी ओर आकर्षक भी। ऐसे कम लेखक होते हैं जो अपनी पहली कृति से पहचान बना लेते हैं। ’मुअनजोदड़ो ’ ऐसी ही कृति साबित हुई है। यों यह भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीकों में एक मुअनजोदड़ो का यात्रा वृत्तांत है । जिसका आधार मुअनजोदड़ो एवं हड़प्पा सभ्यता पर लेखक का विशद अध्ययन है। यह अध्ययन स्वरूचि का होने के नाते पुस्तक को बोझिल नहीं बनाता और एक रोचक वृत्तांत के समानान्तर मुअनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता की खूबियों, गुत्थियों, वास्तुकला और नगर नियोजन की उपलब्धियों, अध्येताओं के आग्रहों-दुराग्रहों, रहस्यमय लिपि की चित्रात्मकता और कलारूपों के संदेशों को भी साथ ही साथ पिरोता चलता है। सहज-सरस भाषा और अनूठी वर्णन शैली इस पुस्तक को विशिष्ट बनाती है।
ओम थानवी का जन्म 1 अगस्त 1957 में राजस्थान के जिला जोधपुर के फलोदी कस्बे में हुआ। पत्रकारिता में आने से पहले रंगमंच की गतिविधियां में संलग्न रहे। 1980 में राजस्थान पत्रिका समूह से जुड़े। ’साप्ताहिक इतवारी पत्रिका’ का संपादन किया। 1989 में राष्ट्रीय दैनिक ’जनसत्ता’ से जुड़े। राजनीतिक घटनाक्रम पर टीवी समालोचक रूप में भी उन्होंने पहचान बनाई है। साहित्य, कला, नाट्य सिनेमा, पर्यावरण और भाषा आदि में गहरी रुचि रखते हैं, उन पर लिखते हैं। आजकल आप दिल्ली से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार ’जनसत्ता’ के कार्यकारी संपादक हैं। अपनी इस पुस्तक मुअनजोदड़ो के अतिरिक्त उन्होंने जाने-माने विद्वान सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ’अज्ञेय’ पर संस्मरणों की पुस्तक ’अपने अपने अज्ञेय’ (दो खण्डों में) का संपादन भी किया है।
वर्ष | लेखक | कृति |
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1991 | डा.जयसिंह नीरज | ढाणी का आदमी (काव्य संकलन) |
1992 | श्री नंद चतुर्वेदी | यह समय मामूलीनहीं (काव्यसंकलन) |
1993 | श्री हरीश भादानी | पितृकल्प (काव्य संकलन) |
1994 | डा. नंदकिशोर आचार्य | रचना का सच (निबन्ध संग्रह) |
1995 | श्री हमीदुल्ला | हरबार (नाटक) |
1996 | श्री विजेन्द्र | ऋतु का पहला फूल (काव्य संकलन) |
1997 | श्री ऋतुराज | सुरत-निरत (काव्य संकलन) |
1998 | डा. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय | विश्वबाहु परशुराम (उपन्यास) |
1999 | डा. प्रभा खेतान | पीली आंधी (उपन्यास) |
2000 | श्री बशीर अहमद मयूख | अवधू अनहद नाद सुने (काव्य संकलन) |
2001 | प्रो. कल्याणमल लोढ़ा | वाग्द्वार (सात हिंदी कवियों का अध्ययन) |
2002 | श्री विजयदान देथा | सपनप्रिया (कहानी संग्रह) |
2003 | इस वर्ष यह पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया। | |
2004 | श्री मरूधर मृदुल | आस-पास (काव्य संकलन) |
2005 | इस वर्ष यह पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया। | |
2006 | श्रीमती अलका सरावगी | शेष कादम्बरी (उपन्यास) |
2007 | श्री यशवंत व्यास | कामरेड गोडसे (उपन्यास) |
2008 | श्री नंद भारद्वाज | हरी दूब का सपना (काव्य संकलन) |
2009 | श्री हेमन्त शेष | जगह जैसी जगह (काव्य संकलन) |
2010 | श्री गिरधर राठी | अंत के संशय (काव्य संकलन) |
2011 | श्री अर्जुनदेव चारण | घर तौ अेक नाम है भरोसे रौ (काव्य संकलन) |
2012 | श्री हरीराम मीणा | धूणी तपे तीर (उपन्यास) |
2013 | श्री चन्द्रप्रकाश देवल | हिरणा मूंन साध वन चरणा (काव्य संकलन) |
के.के. बिरला फाउंडेशन के कार्यकलापों के अन्तर्गत डॉ. कृष्ण कुमार बिरला ने 1991 में बिहारी पुरस्कार की शुरूआत की थी।
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