ईमानदारी के नाम पर बहुत सारे ठग लूट रहे हैं — रवीश कुमार | Ravish Kumar

Itna Vikas ho raha hai to Galiyan kyon badh rahi hain ? - Ravish Kumar

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इतना विकास हो रहा है तो गालियां क्यों बढ़ रही हैं? 

मेरा तो मानना है कि ये संगठित तरीका है और ये हर स्तर पर हो रहा है. देश में पार्टी के कार्यकर्ता कहीं भी हो सकते हैं, वहां से ये शुरू हो जाते हैं. तरह-तरह के वाट्स ऐप ग्रुप बने हुए हैं. वहां से इन बातों को फैलाया जाता है. मेरे ही बारे में इतनी सारी बातें घर तक पहुंचती हैं तो वे हैरान हो जाते हैं कि ये सब करता कब है. एक ग्रुप ने ये फैला दिया कि मेरे घर पर एक मीटिंग हुई है और मैंने विरोध की एक योजना बनाई है. तो घरवाले हैरान रह जाते हैं कि ये तो अपने घर में किसी को घुसने नहीं देता तो दूसरे को कैसे बुलाता है. हमारे रिश्तेदार तो इसी बात से दुखी रहते हैं कि ये किसी को घर में नहीं आने देता. मामला यहां तक पहुंच गया है कि गांव-देहात तक इन चीजों को फैला दिया गया है. जिन लोगों को अफवाहों पर विश्वास करना है, ये उनकी अपनी जिम्मेदारी है. वे अफवाहों पर खूब विश्वास करें. लेकिन ये एक रणनीति के तहत है कि आपको बदनाम कर दिया जाए. आपको गाली देकर आपका मनोबल तोड़ दिया जाए. पूरी एक टोली बनी हुई है और ये ‘​रीयल लोग’ हैं. ‘अनरीयल लोग’ नहीं हैं. ‘रीयल लोग’ में कोई भी हो सकता है. या तो आईटी सेल के लोग हो सकते हैं, या तो सपोर्टर हो सकते हैं. जो एक्टिव सपोर्टर हैं वो तो एक तरह से राजनीतिक व्यक्ति ही हो जाते हैं. पूरी कोशिश चल रही है कि जो विरोध है या जो भी लगता है कि वह सवाल कर सकता है तो उसको चुप करा दो.

टीवी मीडिया सोशल मीडिया का काउंटर हो गया है

मीडिया तो अब मीडिया रहा नहीं. टीवी मीडिया सोशल मीडिया का काउंटर हो गया है. वो बॉक्स आॅफिस काउंटर है. वहां से कुछ आ रहा है तो ये होता है कि फीड आ रही है, यही करो. वह जैसी भीड़ देखता है, वैसा ही करने लगता है. मीडिया तो जो कर रहा है, आप देख ही रहे हैं. कितने लोगों ने मुझे गाली दी कि नीतीश कुमार आपको राज्यसभा में भेज देंगे. मैं चाहता हूं कि और लोग राज्यसभा में जाएं ताकि मुझे गाली कम पड़े. मैं मनाता हूं कि एक नहीं, बीस पत्रकार राज्यसभा में भेज दिए जाएं ताकि जितने गाली देने वाले लोग हैं वो कन्फ्यूज हो जाएं कि अब किसको गाली देनी है. मैंने बाकायदा लेख भी लिखा है और जान-बूझकर लिखा है कि कुछ दिन के लिए गाली देने वालों का ध्यान तारीफ करने में चला जाए. जिनको राज्यसभा सीट मिल गई है आप उनकी तारीफ कीजिए. जिनको नहीं मिली, उनको कब तक गाली देंगे आप.

जो रीयल आम आदमी है वो कभी भी ऐसी अभद्र भाषा में बात नहीं करता. वो किसके दम पर करेगा? वो किसी को जानता नहीं, वो मारपीट करेगा तो पता नहीं क्या होगा.

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अगर जनता को चाटुकार मीडिया चाहिए, ये उसकी जिम्मेदारी है. हमारा कोई लोड नहीं है

तो पूरी फौज खड़ी कर दी गई है जो एक खास तरह के लोग हैं और जो एक खास तरह के लोगों पर बोलते हैं. अब इसमें जनता को तय करना है कि उसे खराब मीडिया चाहिए तो उसे मुबारक हो. अगर जनता को चाटुकार मीडिया चाहिए, ये उसकी जिम्मेदारी है. हमारा कोई लोड नहीं है. पत्रकार जो बहुत दिनों से लोड लेकर घूम रहे हैं, उसे भी ये लोड नहीं लेना चाहिए. उससे पूछना चाहिए कि भाई जो तुम अखबार खरीदते हो, जो केबल खरीदते हो, अगर आपको लगता है कि इसमें सब जानकारी मिल रही है, एक ही तरह की जानकारी आपको हमेशा चाहिए तो मुबारक हो. फिर ये मत करो कि ताली कहीं और बजाओ और समस्या में फंस जाओ तो मुझे फोन करो कि ये वाली स्टोरी आपने उठाई नहीं तो कौन करेगा. समाज से भी पूछा जाना चाहिए.

जब कोई अफवाह फैलती है

अब जब कोई अफवाह फैलती है तो जब तक आप उसका खंडन करेंगे, तब तक वाट्स ऐप ग्रुप से लेकर फेसबुक तक इतना फैल चुका होता है, फिर वो कोई पढ़ता थोड़े ही है? जो खंडन वाला होता है उसको तो दो-चार स्टेकहोल्डर लोग, हमीं लोग पढ़ते हैं कि अरे ये खबर गलत है, चला दिया लोगों ने तो चला दिया. नहीं भी चलाया तो कोई बात नहीं.

तरह-तरह झूठ के फैलाए जा रहे हैं

ये अब रोज हो रहा है. इसका कारण है कि रिपोर्टिंग हो नहीं रही है. रिपोर्टर हैं नहीं. सोशल मीडिया रिपोर्टर का रिप्लेसमेंट हो गया है. रिपोर्टर होता है तो अपनी खबर लाता है. कम से कम भले ही उसकी खबर गलत हो, तो भी एक आदमी जिम्मेदारी लेता है कि हमने चलाई है. सोशल मीडिया में आप किसको पकड़ेंगे? बाकी लोगों ने सोशल मीडिया के कमेंट को, जानकारियों को मान लिया है कि यही हमारे नए रिपोर्टर हैं. उसका क्या किया जा सकता है. सबको पता है गलतियां हो रही हैं. तरह-तरह झूठ के फैलाए जा रहे हैं. जिससे फायदा होता है, उस पर आप नहीं बोलते. नुकसान होता है तो आप केस करने चले जाते हैं. राजनीतिक दलों को देखिए, दूसरों के खिलाफ कितना प्रपंच फैला रहे हैं. अपने खिलाफ कोई कुछ बोल देता है ​तो केस कर देते हैं.

इतना विकास हो रहा है तो गालियां क्यों बढ़ रही हैं? 

अब आप बताइए कि गालियां देने वाले इतने लोग कहां से आ गए. क्या भारत में गालियों का प्रचलन बढ़ गया है अचानक? इतना विकास हो रहा है, इतनी अच्छी चीजें हो रही हैं, जैसा लोग बता रहे हैं तो गालियां क्यों बढ़ रही हैं? क्या बहुत अच्छी चीजें होंगी तो गालियां बढ़ जाएंगी? फिर तो वो अच्छी चीजें नहीं होनी चाहिए. हम तो डर गए हैं. इतनी सारी अच्छी चीजें हो रही हैं, लोग दावा कर रहे हैं तो गालियां क्यों बढ़ रही हैं? क्या मां-बाप बच्चों को सिखा रहे हैं कि आओ तुम गाली दो? मुझे भी दो, दूसरों को भी दो. क्या ऐसा बदल गया है हमारा समाज? मुझे मालूम नहीं कि समाज बदला है कि नहीं. ये संगठित रूप से है. आम तौर पर लोग ऐसी भाषा में बात नहीं करते. आपसे संतुष्ट नहीं होते, बहुत-सा काम पसंद नहीं आता. लेकिन कभी वो गलत भाषा में बात नहीं करता. तो निश्चित रूप से गाली देने वाला समर्थक होता है और सक्रिय समर्थक होता है जो अपने आपको आम आदमी बनाकर कुछ भी कर जाता है. जो रीयल आम आदमी है वो कभी भी ऐसी अभद्र भाषा में बात नहीं करता. वो किसके दम पर करेगा? वो किसी को जानता नहीं, वो मारपीट करेगा तो पता नहीं क्या होगा. ये नए तरह के बाहुबली हैं जो सोशल बाहुबली कहलाए जा रहे हैं.

इस समाज में आप जरा-सा खुद को ईमानदार घोषित करके जोर से बोलेंगे तो सौ लोग आ जाएंगे आपको बेईमान साबित करने के लिए. ये देखिए आप वहां गए थे. ये देखिए आपने रेड लाइट क्रॉस की, आप कहां ईमानदार हैं. इसमें लोग बहुत दिलचस्पी लेते हैं. और इसी ईमानदारी के नाम पर बहुत सारे ठग लूट रहे हैं जो अपने को ईमानदार बोलते हैं.

ये संगठित हैं

मालदा में घटना हो गई. मैं छुट्टी पर था. मैंने न टीवी देखा था न अखबार देखा था. पता चला कि सोशल मीडिया पर फोटो लगाकर चलता है कि रवीश कुमार हंड्रेड परसेंट रंडी की औलाद है. इसका मतलब ये संगठित हैं न! क्या ये कहीं लिखा है कि भारत की सभी दिशाओं को मैं ही कवर करूंगा? तब तो मैं रोज एक हजार पेज का अखबार बनकर छपने लगूं! क्या संभव है ये? पूछते हैं कि आप वहां गए थे, यहां क्यों नहीं गए. अरे भाई, हम तो पहले से ही बहुत जगह नहीं जा रहे थे. जहां जा सकते हैं, वहीं जाते हैं. क्या एक पत्रकार सब जगह जा सकता है? हम हनुमान जी हैं कोई कि उड़कर हर जगह पहुंच जाएंगे? तो जब हमने देखा कि सब इस तरह गाली दे रहे हैं तो हमने लिखा कि मैं हंड्रेड परसेंट भारत माता की औलाद हूं.

हम फलां पार्टी की ओर से उनको मां-बहन की गालियां देते रहते हैं

जो नौजवान किसी पार्टी के लिए ऐसा कर रहे हैं, कम से कम उनका कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है. वे चाहे किसी दल के समर्थक हों. वो अपने दल के भीतर बदमाश के रूप में ही पहचाने जाएंगे. अगर वे इस छवि के साथ किसी राजनीतिक दल में अपना जीवन लगाना चाहते हैं तो मेरी शुभकामनाएं! लेकिन क्या जब वे पचास साल के हो जाएंगे तब भी गाली देने के काम में लगे रहेंगे? अभी नौजवान हैं तो गाली दे रहे हैं, पर क्या वे जीवन भर गाली ही देंगे? बच्चे पूछेंगे क्या करते हो तो कहेंगे कि मैं गाली देता हूं. दो-चार पत्रकार हैं उनको गाली देता रहता हूं! हम फलां पार्टी की ओर से उनको मां-बहन की गालियां देते रहते हैं. अगर यही लक्ष्य है तो अच्छी बात है, गालियां ही दीजिए.

अगर हमारा समाज ऐसी प्रवृत्ति को मान्यता देता है तो मैं इस समाज को माला पहनाना चाहता हूं

अब इसका क्या करें कि कभी छुट्टी पर हैं, घर पर हैं, अस्पताल में हैं. गाली देने लगते हैं लोग कि आप वहां नहीं गए. रवीश कुमार ने फलां स्टोरी नहीं की. बहुत जगह नहीं की. बहुत जगह संसाधन ही नहीं. बहुत जगह नहीं कर पाए. केरल आज तक नहीं जा पाए. हिमाचल नहीं गए. तो क्या हम, हम नहीं रहेंगे? क्या हम पूरा विश्व घूम आएंगे, स्टोरी कर लाएंगे तब हम पत्रकार कहलाएंगे? वह भी निष्पक्ष? और कहने वाले कौन लोग हैं? सबसे ज्यादा तटस्थ वही लोग हैं क्या? वे तो पार्टी के लिए ऐसा कर रहे हैं. ये जितने लोग पत्रकारों को गाली दे रहे हैं, उनको देखिए तो वे तटस्थ लोग थोड़े ही हैं! वे गुंडे लोग हैं. उनकी टाइमलाइन देखिए तो वे खास तरह की ही बात करते हैं और उसी के लिए गाली देते रहते हैं. अगर हमारा समाज ऐसी प्रवृत्ति को मान्यता देता है तो मैं इस समाज को माला पहनाना चाहता हूं. बस यही बताऊंगा कि किसी दिन यही भीड़ उसके खिलाफ भी आएगी. कई दफा आई भी है. आज उनको मजा आ रहा है कि इसको गाली पड़ रही है.

खूब गाली दी जा रही है. मुझे लगता है ये भी ‘स्किल इंडिया’ का प्रोजेक्ट हो सकता है

मैं देखना चाहता हूं कि जीडीपी की ग्रोथ इतनी बढ़ गई है तो गालियों की ग्रोथ इतनी कैसे बढ़ गई? सुबह से लेकर शाम तक खूब गाली दी जा रही है. मुझे लगता है ये भी ‘स्किल इंडिया’ का प्रोजेक्ट हो सकता है. वे गाली दे सकते हैं. बहुत सारे राजनीतिक दल के लोग समर्थकों से गाली दिलवा रहे हैं पैसा देकर. तो इसे एक स्किल का रूप दे दिया जाए.

मुझे पता नहीं है कि मीडिया का कोई सांस्थानिक स्वरूप है कि नहीं. मैं ऐसा नहीं मानता कि मीडिया का कोई सांस्थानिक स्वरूप होता है. बस चल रहा है तरल पदार्थ की तरह तो ठीक है. कोई सांस्थानिक स्वरूप नहीं मिलता. दो-चार लोगों का स्वरूप होता है वही अपने आप में संस्थान हो जाते हैं. मीडिया का कोई सांस्थानिक स्वरूप नहीं होता. हमने तो नहीं देखा.

क्या सचमुच कोई ऐसा युग आ गया है कि आलोचना लायक कुछ बचा ही नहीं है

विश्वसनीयता एक ऐसी चीज है कि जिस पर कभी असर नहीं पड़ता. इस पर असर पड़ने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता. इतने अविश्वसनीय लोग हैं और जनता का समर्थन लेकर राज करते हैं, विश्वसनीयता ले लेते हैं. ये बड़ी सापेक्षिक चीज है. एक जगह गंवाकर आप दूसरी जगह हासिल कर सकते हैं. इसको भी आपको थोड़ा रिलेटिवली देखना पड़ेगा कि क्या है विश्व​सनीयता. क्या किसी के चले जाने से लोग टीवी देखना बंद कर देते हैं? अखबार पढ़ना बंद कर देते हैं? लोग जानते हैं कि फलां अखबार में किसी एक की आलोचना कभी नहीं छपती, फिर वे वह अखबार कैसे पढ़ लेते हैं? क्या सचमुच कोई ऐसा युग आ गया है कि आलोचना लायक कुछ बचा ही नहीं है? अगर किसी चीज की आलोचना नहीं हो, तो वह तो सबसे नकारात्मक है. आलोचना ही तो सबसे सकारात्मक चीज है. ये जो दुकानदारी चल रही है- निगेटिविटी और पॉजिटिविटी की, ये वही है कि जो हम बता रहे हैं उससे अलग मत सोचो. अस्पताल खुल जाएं, लोगों की सैलरी बढ़ जाए, पेंशन मिल जाए, सब कुछ हो जाए क्या उसके बाद कोई निगेटिव नहीं लिखेगा? तब भी बहुत-से लोग लिखेंगे. तब भी बहुत-सी चीजें होनी रह जाएंगी. नहीं तो अमेरिका और फ्रांस में सब बंद हो जाना चाहिए कि हमने सब पा लिया है. हम फिलहाल तो उन्हीं के जैसे हो रहे हैं और वे खुद ही स्ट्रगल कर रहे हैं.

इन सब बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर इस समाज में आप जरा-सा खुद को ईमानदार घोषित करके जोर से बोलेंगे तो सौ लोग आ जाएंगे आपको बेईमान साबित करने के लिए. ये देखिए आप वहां गए थे. ये देखिए आपने रेड लाइट क्रॉस की, आप कहां ईमानदार हैं. इसमें लोग बहुत दिलचस्पी लेते हैं. और इसी ईमानदारी के नाम पर बहुत सारे ठग लूट रहे हैं जो अपने को ईमानदार बोलते हैं. उन पर कोई सवाल भी नहीं करता. इस समाज की नैतिकता को मैं खूब अच्छे से समझता हूं. यहां विश्वसनीयता जैसा कुछ नहीं है. मैंने देखा हुआ है कि आप कुछ भी करके आइए और आप भाषण दीजिए, लोग आपको पसंद कर लेते हैं. चाहे राजनीति में, चाहे सिनेमा में, चाहे पत्रकारिता में. इसलिए इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए. लेकिन 2013 के बाद इतनी गालियां दी जाने लगीं, ये समझ में नहीं आया कि क्या है ये? ये गाली देने वाले लोग कुछ भी करें, इनको कोई कुछ नहीं बोलता. फोटोशॉप वालों को कोई कुछ नहीं बोलता.

मीडिया के बिना अगर समाज रह सकता है तो अच्छा ही है.

ये थोड़ी बहुत मात्रा में कर सब रहे हैं. लेकिन जो सत्ता पक्ष से जुड़ा पक्ष होता है, वह खतरनाक हो जाता है. यह हर कहीं खतरनाक हो जाता है. हमें मालूम नहीं दक्षिण भारत में या उड़ीसा में इसका क्या स्वरूप है. हम दिल्ली और आसपास देख रहे हैं. इंटरनेट कोई ग्लोबल चीज थोड़ी है. घटनाएं पता चलती हैं लेकिन क्या सारी घटनाएं पता चल जाती हैं? नहीं पता चलतीं. इंटरनेट के बहुत सारे लोकल फिनॉमेना हैं. हमें मालूम नहीं कि बंगाल-बिहार में इसका क्या स्वरूप है. जो हम देख रहे हैं, उसमें देख रहे हैं कि खास तरह का राजनीतिक दल जो सत्ता पक्ष में होता है, उसका बड़ा पावर होता है, और ये लोग उसी की तरफ से अफवाह फैलाते हैं और गाली देते हैं. कई बार मिनिस्टर लोग शामिल हो जाते हैं. दुखद है पर कोई बात नहीं. मीडिया के बिना अगर समाज रह सकता है तो अच्छा ही है.

लोकतंत्र में नागरिक होना आईआईटी के इम्तिहान की तैयारी से कमतर बात नहीं है. ये आपकी नागरिकता का फर्ज है कि आपको जानने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी. बिल्डर के जो सताए लोग हैं, हमारे सहयोगी अभिज्ञान ने उस पर पचासों शो किए हैं. इसका मतलब तब वे लोग कुछ और देख रहे थे. जब अभिज्ञान उनके लिए काम कर रहा था क्या वे लोग कुछ और देख रहे थे. अब हंगामा मचा. अब पूछिए कि क्या वे सताए हुए लोग जागरूक लोग हैं? बिल्कुल नहीं हैं. आज वे लड़ रहे हैं, पर आज तक वे कहां थे? तो अगर लोग नशे में हैं तो रहें. वरना उनको भी मेहनत करनी पड़ेगी, आपको भी और हमको भी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(बातचीत पर आधारित)
साभार तहलका
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(Published in Tehelkahindi Magazine, Volume 8 Issue 11, Dated 15 June 2016)

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2 टिप्पणियाँ

  1. ठगी और चोरी चकारी सीखिये और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सिखाइये नहीं तो आपके चेहरे पर चोर लिख दिया जायेगा क्योंकि आज ईमानदार होना एक गुनाह है और कोई भी गिरोह आपसे कतरायेगा आप अकेले पड़ जायेंगे कहीं किसी गली पर कोई स्टिंग करके आपका एनकाउंटर कर आपको मार दिया जायेगा ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-06-2016) को "चुनना नहीं आता" (चर्चा अंक-2371) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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