मैंने राजवंती के गले में उस बूंदे को छूते हुए टोका — “ये बेटे के लिए पहना है न ?” गीताश्री पराई पीर समझने का नतीजा है ‘परिवर्तन’ — गीत…
शहर छूटा, लेकिन वो गलियां नहीं! — गीताश्री आखिर बाईजी का नाच शुरु हुआ। घर की औरतों को ऐसा नाच देखने की मनाही तो होती है, लेकिन घर की …
गीताश्री कहानियों के सेफ जोन से परिचित होते हुए भी बार-बार रिस्क लेती हैं। कहानियों में बोल्ड विषय लेने के आरोप उन पर निराधार है। वह बात को क…
राजेन्द्र राव से गीताश्री की बातचीत Rajendra Rao Interview by Geetashee बीसवीं सदी के आठवें दशक में एक रचनाकार ने जिस धमाकेदार अंदाज …