स्त्री के लिए आलोचक का रवइया न चाहते हुए भी रह रहकर सामंती होने लगता है मैत्रेयी पुष्पा आलोचना की रस्म हिंदी आलोचना जगत अभी भी साहित…
आज भी औरत विवाह के ऐसे चक्रव्यूह में फसी है जिसके भेदन की कला उसके पास नहीं …
गुलामी का आनन्द उठाने वाले आजादी के खतरों से बचते रहते हैं मैत्रेयी पुष्पा का खुला ख़त (अरविन्द केजरीवाल के नाम) प्रिय अरविन्द ( केजरीवाल ) म…
गणतंत्र और स्त्री - मैत्रेयी पुष्पा यह कैसा गणतंत्र है कि महिला आरक्षण बिल कब से लटका पड़ा है। पंचायती राज में महिलाओं को जो आरक्ष…
पिछले दिनों मैत्रेयी जी ने अपने एक लेख में ( लिंक ) समकालीन महिला कहानीकारो की खूब लानत मलामत की थी। उनकी उम्र और उनके लेखन को लेकर व्यक्तिगत टिपण्ण…
मैंने अपना मोबाइल उठाया है, राजेंद्र जी और फोनबुक में आपके नाम तक पहुंची हूं। वह चमक रहा है, लग रहा है अभी उस नंबर से घंटी बजेगी और आप बोल पड़ेंगे। …
वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने जनसत्ता में प्रकाशित अपने लेख " स्त्री विमर्श और आत्मालोचन " में नयी पीढी की महिला कहानीकारो के लेख…
स्त्री विमर्श और आत्मालोचन मैत्रेयी पुष्पा इस शब्दयुग्म से बहुत से लोगों का साहित्यिक जायका कड़ुवा हो जाता है। अगर ऐसा अनुभव है तो यह कोई विचित…