कही ऐसा तो नहीं कि समाज में फैली जिस गंदगी को लेकर हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, उसका श्रोत भी हम ही हैं? रवीश का ये आलेख पढ़ कर, उनका दुःख समझ आता है.…