दिल्ली गर्ल - हिंदी कहानी : संजना तिवारी | Delhi Girl - Hindi Kahani - Sanjana Tiwari

कहानी - दिल्ली गर्ल 

संजना तिवारी

अनुराग जब भी पास आते है लगता है असंख्य गिरगिट उसकी देह को चाट रहे हैं और मतलब निकलते ही नया रूप धरकर उसके मुंह पर थूक देंगे । उनकी साँसों की गर्मी मेरे शरीर का ताप नहीं बढ़ातीं बल्कि मुझे ज्वालामुखी के मुहाने खड़ा कर देती हैं । जी करता है ज़ोर से चिल्लाऊँ और पूछूँ – जिस औरत के विचारों, पसंद ना नापसंद की आपको परवाह नहीं उसके शरीर की इतनी भूख क्यों ???

संजना तिवारी

मौसम अपने पूरे शबाब पर था, साँझ धीरे से झीने काले दुपट्टे मे अपने अंगों को ढ़क रही थी । लाखो मद मस्त दिल अपनी आँखों के दांतों तले साँझ का शबाब चबा रहे थे, पर वो इन सब से बेखबर अपने टाइपराइटर की टिक.. टिक.. टिक मे खोई हुई थी । वो जितनी जल्द हो सके अपने अस्तित्व के टुकड़ों को पन्नो में छुपा देना चाहती थी,जिसे बाद में उसकी संताने जोड़े और जाने अपनी माँ के सम्पूर्ण नक़्शे को । उसकी इस व्यस्तता के बीच अचानक गरम मादकता से दहकते हुए होंठ उसके कानों से टकराए, धीरे – धीरे होंठ कानों को चूमते हुए गले तक जाने लगे और होंठो का अनुसरण करती हुई नाक गालों को सहलाने लगी । कमर पर उँगलियों के बल चलते दो हाथ कसते चले गए... ”आज तो इसकी जगह मुझे बाहों में ले लो “…… अनुराग की फुसफुसाती उन्मादी आवाज उसके कानो में गूंजने लगी.....

वो झटके से कुर्सी छोड़ कर खड़ी हो गयी, तेजी से टाइपराइटर से पेज खींच कर लपेटते हुए बोली... 

“ अरे आप !!!! आज जल्दी आ गए । “

“ हूँ सोचा मौका भी है दस्तूर भी तो क्यूँ ना फायदा उठाया जाए । हम्म...... बोलो क्या कहती हो । देखो आज मौसम कैसे प्रेमालाप में डूबा है “ अनुराग ने उसे अपनी ओर खींचना चाहा 

“ आपको अब थोड़े लिहाज़ में रहना चाहिए, शादी को दस साल हो गए हैं और आपकी ये आवारगी नहीं छूट रही “ उसने रुखाई से जवाब देते हुए जैसे खुद को पर्वत से टकराने से रोका 

“ आवारगी ???? कब और कैसे मूड खराब करना है तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता । महीने में अट्ठाईस दिन मैं ब्रह्मचर्य निभाता हूँ... क्या है ये सब... तुम किस टाइप की औरत हो ???”

“ शोध चल रहा है, तब तक आप जैसी हूँ वैसी ही झेल लीजिये । बैठिए, चाय ले आती हूँ । “ बोलने से पहले वो किचन की ओर बढ़ चुकी थी,पीछे हवा में छूटी उसकी आवाज़ गूंज कर अनुराग तक संदेश दे रही थी 

अनुराग ने बेतरतीब से कपड़े खोलकर यहाँ वहाँ फेंक दिए और गुस्से से दाँत चबाता हुआ बाथरूम की ओर बढ़ गया । मुंह हाथ धोकर उसने खुद को शीशे में कढ़ाई से निहारा और वापस आकर केवल लुंगी बांधकर बालकनी में जाकर बैठ गया । अपने रोज के टाइम पास की तरह उसने मोबाइल पर पॉर्न साइट खोली और व्यस्त हो गया । दूसरी ओर वो किचन में चाय चढ़ा कर खड़ी – खड़ी अपने मन में झुलस रही थी, सोच रही थी की अनुराग जब भी पास आते है लगता है असंख्य गिरगिट उसकी देह को चाट रहे हैं और मतलब निकलते ही नया रूप धरकर उसके मुंह पर थूक देंगे । उनकी साँसों की गर्मी मेरे शरीर का ताप नहीं बढ़ातीं बल्कि मुझे ज्वालामुखी के मुहाने खड़ा कर देती हैं । जी करता है ज़ोर से चिल्लाऊँ और पूछूँ – जिस औरत के विचारों, पसंद ना नापसंद की आपको परवाह नहीं उसके शरीर की इतनी भूख क्यों ??? गिरगिट का स्वभाव होता है रंग बदलना जैसे अनुराग का स्वभाव है खुद को सभी की नजर में परफेक्ट साबित करना, चाहे उसके लिए किसी ओर को जहन्नुम नसीब हो । अनुराग के कदम भावुकता, ज़िम्मेदारी, प्रेम और त्याग के पथ पर नहीं चलते, उसके कदम चलते हैं दिमागी चालों के उस शतरंज पर जहां वो लंबी तैयारी करता है की किससे क्या और कब करवाना है और वो रोज खुद को उबालती है,छानती है, परोसती है लेकिन अनुराग उसे एक ही घूंट में खत्म कर जाते है,डकार तक भी नहीं आने देते ।

चाय और खुद को छानकर वो बालकनी में आ गयी । उसे देखते ही अनुराग अपना कप उठा कर जाने लगे तो वो बोली –

“ आप पॉर्न साइट्स देखते हैं, मुझे पता है ! “

“ तो.......??? कहीं बाहर तो मुंह मारने नहीं जाता ?”

“ आप जा पाएंगे ???”

“ वॉट डू यू मीन मैडम ? ये तीन साल में दो बच्चे क्या तुम्हारा भाई गिरा गया है ?”

“नहीं, आपके ही हैं... तब तक मैंने उम्मीद नहीं खोई थी... सुना था शीतल जल के बार–बार स्पर्श से चट्टानों के रूप बदल जाया करते हैं ?” उसकी आवाज सर्द पड़ती जा रही थी ।

“जो जैसा होता है उसे वैसा ही मिलता है । तुम्हें भी मिला है और तुम्हारी झूठी कहानियों में मैं आने वाला नहीं हूँ... डोंट ट्राई टू टीच मी एंड फीड मी...  । “ अनुराग शांत घातक आवाज में शब्दों को चबा गए ।

“फिर तो ये आप पर भी लागू हुआ ना, आप जैसे हैं वैसा भोग रहें हैं और भोगेंगे भी । “

“ गलती भुगत रहा हूँ, कुछ गलतियों का कभी सुधार नहीं हो सकता... ” कहकर अनुराग कमरे की ओर चले गए लेकिन अपने पीछे माहौल में जहर घोल गए ।

वो चाय के हर घूंट के साथ हवा में फैले जहर को गले से नीचे धकेलने लगी । उँगलियाँ कप पर काँपने लगी और आखिर में दोनों पोखर लाख रोकने पर भी बह निकले । एक – एक मोती गिरता जाता और उसकी अंजुरी को यादों से भरता जाता । अनुराग ने जब उसे शादी के लिए प्रपोस किया था तो उसके अस्तित्व के साथ – साथ उसके नाम से भी उसे बेइंतहा मुहब्बत हो गयी थी । अनुराग .. अनुराग...  अनुराग,मीठे सुर की भांति गूँजता रहता था । दोनों ने मुहब्बत को तव्व्जो दी और धर्म को धक्का मार दिया । हिन्दू धर्म उंच नीच के हजारों भेदों में बंटा हुआ है लेकिन उन दोनों के लिए इतना काफी था की वो दोनों हिन्दू है और दोनों में से कोई नीच जात नहीं है । दोनों एक ही आफिस में थे । वो दिल्ली में जन्मी – पढ़ी लिखी जैन धर्म की कन्या थी और अनुराग बिहार से गाँव सनोली के ब्राह्मण थे । कुछ वर्षों पूर्व ही उनका परिवार कानपुर सैटल हो गया था । गाँव में घर – खेत थे जिसकी देख रेख के लिए अनुराग का परिवार जाता रहता था । उसकी गंभीर, संस्कारी आदतों ने अनुराग पर गहरा प्रभाव छोड़ा था और अनुराग की पारिवारिक स्नेहिल समझ उसको बहुत भाती थी । ये पसंद मन ही मन प्रेम में परिवर्तित हुई और अनुराग ने उसे शादी के लिए प्रपोस कर दिया । उसे परिवारों के खिलाफ जाकर जीवन भर दुख उठाने से कुछ दिन अभी रो लेना बेहतर लगा था लेकिन अनुराग नहीं माना । उनका प्यार टीन ऐज़ का उबाल नहीं था उसमें संतोष और धीरज की भावना थी । परिवारों का सम्मान सर्वोपरी था इसलिए मान- मनौवल के बाद दोनों परिवारों की रजामंदी से दिल्ली में ही छोटी सी शादी कर दी गयी । 

ससुराल आने पर उसे पता चला की गाँव और कानपुर के जानकारों से कहा गया है की वो भी बिहारी परिवार (शाडींलय गोत्र ) से है और उसकी माँ की गंभीर बीमारी के चलते जल्दबाज़ी में दिल्ली में ही शादी करनी पड़ी । उसे गहरा आघात पहुंचा था । माँ की झूठी बीमारी के नाम पर हर आने जाने वाले को सलामती की कहानी कहना उसे आहत करता था । अनुराग से पूछने पर उनका दो टूक जवाब था – 

“तुम शहर की पैदाइश हो ना इसलिए गाँव के संस्कारों और नियमों को नहीं जानती,अगर किसी को भी पता चला की तुम जैन थी तो मेरी बहनो की शादी होना मुश्किल हो जाएगा । किस मुंह से बुलाते रिश्तेदारों को शादी में ??? तुम्हारे घर से कोई जात वाली कहानी कह देता तो ??”

“ अगर आपको ये सब की परवाह थी तो किसी बिहारी कन्या को चुनना चाहिए था । आपको मुझसे मेरी पहचान छीनने का कोई हक नहीं है । “

“ये सब जरूरी था और अपनी बहनों के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ । “

“ तो आप मुझे छोड़ देते, आप पर कोई दबाव नहीं था । मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ?”

“ देखो, तुम कुछ भी थी लेकिन अब बिहारी हो बस इससे वास्ता रखो । “

“ और मेरे घर वाले ? वो क्यूँ खुद को छिपाएं ?”

“ करना तो पड़ेगा । मैं अपनी बहनों के लिए तुम्हारा जीवन दांव पर लगा सकता हूँ “ अनुराग कठोरता से कहकर चले गए लेकिन ये दबे शब्दों की धमकी वो समझ चुकी थी । अब लगभग ये रोज का किस्सा हो गया । उसके पहुँचने से पहले उसकी बदनामी लोगों तक पहुंचा दी जाती । लोग उससे अजीब -अजीब से सवाल करते, संदेह की नजरों से देखते और वो... .!!!! वो समझ ही नहीं पाती की आखिर इस छींटाकशी का कारण क्या है । अनुराग के माँ बाप छोटी बड़ी बातों में उसे बेइज्जत करते, कम दहेज का ताना देते । अनुराग से कहने पर वो उसे परिवार तोड़ने के आरोप से छलनी कर देते । उसे प्रथम गर्भावस्था के दौरान गाँव ले जाया गया था । गाँव में लगा जैसे बहू ना आई हो सर्कस से बंदरिया पकड़ी गयी हो । औरतें पूछती –

“ का जी, ये लंबी बाल गाँव आने की खातिर बढ़ाई हो का ? बरोनी भी नहीं बनवाई हो ? सहर में तो सुने है हर दूसरे रोज पार्लर जाती हो “ 

दूसरी बोली 

“ए भाभी sssआपकी लाइफ तो एकदमे मस्त है । सुने हैं हफ्ता में छ दिन होटले में खातीं हैं, का चाय भी नहीं बनाना आता आपको ? अएसे में हमारा भईया का खाएगा और का निचोड़ेगा ?”

“अरी हटीं, हमनी के बात करे दओ । बहुरिया हमारा सीधा बाबू के फंसा तो ली हो पर ऐसे काम नहीं चलेगा । रूप तो ढल जाता है, गुण काम देता है, सुन्नी ई ई ई... . भई दिल्ली की हो तो रंग ढंग तो तुमको नहीं हैं हम सब सुन चुके है बाबू की माई से । तुम्हारी माई का सोची थी की खाली दिल्लीए बस जाने से बेटी गुणी हो जाएगी । बाबू की माई के सताना छोड़ो और निमन बनो । “ बड़की बुआ अपना फरमान सुना कर चली गयी थी । 

पाँच दिन ये सिलसिला चलता रहा, औरतें आती और उसे, उसी के दिल्ली गर्ल यानि बिगड़ी लड़की यानि असंस्कारी होने के किस्सों के साथ रीति - नीति का पाठ पढ़ा कर जातीं । औरते उसे अय्याश होटलों में खाने वाली, सिनेमा देखने वाली, फैशनेबल असंस्कारी लड़की के सम्मान से पुरस्कृत कर चुकी थीं लेकिन क्यों ??? कब और किसलिए ??

उससे रहा ना गया तो बड़की बुआ की बेटी से पूछ लिया –

“ बबुनी हम होटलों में खाते हैं, कुछ पकाना नहीं जानते । ये सब किसने कहा रे सब से ?”

“ और कौन ? आपकी सास कहीं हैं । बड़की दीदी भी बता देती हैं । सचे भाभी आपको कुछ नहीं बनाना आता ?”

“ कहो क्या खाना चाहती हो, हम अभी बना देंगे । हमें खाना बनाने से लेकर सिलाई – कढ़ाई सब आता है । हम अपनी शादी को छोड़कर कभी पार्लर नहीं गए हैं । पिक्चर भी बचपन में देखे थे और फिर शादी के बाद इस घर आकर देखें हैं । इस घर मे तो सभी को घूमने का बहुत शौक है फिर हमारे बारे में... ....!!!! “ उसे रोना आ गया था 

“जाने दो भाभी... होता है, अभी आप नयकी कीनिया है ना “वो कहकर तो चली गयी लेकिन बाहर सबको उनके बीच हुए वार्तालाप का ढिंढोरा पीट दिया । गाँव मे तो कुछ नहीं कहा गया लेकिन कानपुर आकर बड़े ही विचित्र ढंग से उसे सबक सिखाया गया । घरवालों की अनुराग के साथ गुप्त मीटिंग हुई और अनुराग का व्यवहार उसके प्रति बदलता गया । गाँव की बातें अनुराग से कहने पर उसने ये कहकर टाल दिया की गाँव वाले मज़ाक कर रहे होंगे,वहाँ भाभियों और बहुओं के साथ ऐसा किया जाता है, दिल्ली की हो ना गाँव घर का मज़ाक तुम्हें समझ नहीं आता है । 

वो तड़प उठी थी, अब अनुराग उसकी सोच पर भी उंगली उठाने लगे थे । क्या उसे मज़ाक और संजीदगी का अंतर नहीं मालूम या मनुष्य के चेहरे के भावों से वो ये समझ नहीं पाती की वो किस मूड की बात कर रहा है । वो तो गाँव था लेकिन कानपुर के पड़ोसी, दोस्त भी तो उसे ऐसी ही समझते हैं । ये विचारों का युद्ध उसे मानसिक आघात देता रहता । वो जिस भी काम को करे उसकी निंदा की जाती, उसी काम को उसकी ननदें करें तो वो गुणवती कहलाती । उसके बनाए खाने को ननदों के नाम से मेहमानों के समक्ष परोसा जाता । उसकी पाक कला का परिचय कुछ यूं दिया जाता 

“इसकी माँ कहाँ कुछ सिखाई है जी, खुद भी छहतरी है इसे भी बना दी है । नखरा करवा लो बस, दिल्ली की हैं ना । कोई तो पाप किए होंगे हम जो ई बाबू को फंसा ली । “

उसकी गर्भावस्था की परेशानियों को कोरे ड्रामे का नाम दिया गया । उसकी सूखती देह को उसकी मनबड़पनती कहा गया –

“अजी, का कहें घर का खाना इनको अच्छा नहीं न लगता है । “

अनुराग को पीठ पीछे मनघढ़न्त कहानियों के द्वारा उसके बुरे व्यवहार के किस्से सुनाए जाते, इसके बाद वो चाहे कितनी भी सफाई दे अनुराग उसे झूठी और घर फोड़ू कहते । अजीब सी दलदल का शिकार हुई थी वो ना धंस रही थी और ना निकल । धीरे – धीरे वक्त के साथ उसे एहसास हुआ की उससे शादी करना अनुराग का प्रेम नहीं था बल्कि उसके पुरुषत्व का नमूना था । वो अनुराग को पसंद तो थी लेकिन शादी की हद तक नहीं, मगर उसके पारिवारिक सोच के चलते अनुराग ने मैरिज परपोजल का एक्का फेंका था । अनुराग को उम्मीद नहीं थी की वो शादी के नाम पर भी उसे चार छ महीना घूमने का पास नहीं देगी । उसने बात सीधी घरवालों को कह दी थी और अब अनुराग फंस गए थे । पारिवारिक स्तर पर बात ना बनती देख जब उसने अनुराग को शादी ना करने का फैसला सुनाया था तो उसके पुरुष अहंकार पर चोट लगी थी । कोई लड़की उसको ना कैसे कह सकती है ? होगी दिल्ली गर्ल, माई फुट...  । 

एक सोची समझी योजना के तहत अनुराग ने उसे और उसके घरवालों को मनाया था, हर बात को ऐसे पेश किया था की कोई ना ना कर सके । अनुराग के घरवाले इस बात पर राजी हुए थे की वो उसे एक नौकरानी या आया का दर्जा तो देंगे लेकिन दिल से कभी बहू नहीं मानेगे । उसका किसी संपति, यहाँ तक की अनुराग की तनख्वाह पर भी कोई हक नहीं होगा । पुरुषत्व के अहंकार में अनुराग ने बिना उसके बारे में सोचे सब स्वीकार कर लिया था । 

अनुराग के इस घृणित कृत्य ने उसे खुद से ही विरक्त कर दिया था और दिल्ली गर्ल के लेबल ने उससे उसकी मुस्कान छिन ली थी । शेष थे उसकी बगिया में खिले दो पौधे (संताने), जिनके पतों से वो अपने ज़ख्म सहलाती थी । 

इस सब के बीच दिल्ली गर्ल ने अनुराग से पति सत्ता के नाम पर अपने साथ होने वाले बलात्कार पर रोक लगा दी थी । बिना कोई कारण बताए वो अनुराग को अपनी देह से दूर धकेल देती थी । अनुराग उसकी देह को केवल तब भोग सकता था जब उसकी इच्छा हो और वो जानती थी झूठे कलयुगी राम के रोल से निकल कर अनुराग कभी कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे बदनामी हो । सबकी नजरों मे अच्छे बने रहने का भूत उनके सिर पर सवार रहता है । वो ससुराल और समाज के तानो और गलत व्यवहार को चुप्पी मार कर सहती । अपने गुस्से में भी शांत रहती और शांति में भी गहरा कोप पालती । नित नए श्रृंगार से अपनी देह के उभारो को सुशोभित करती और अनुराग को ललचाती । अनुराग के नजदीक आने पर वो उसे बिना कारण दिए धिक्कार देती । जिस पुरुष अहंकार ने उससे उसका स्वर्ग छीना था उसके तिलमिलाने पर वो असीम आनंद की अनुभूति जीती ।

अपनी शांति के लिए उसने कल्पनाओं में अपने एक अनाम प्रेमी को जन्म दिया था, जिसके अनछुए हाथों को थामकर वो प्रेम की गलियों में भटकती फिरती । आकार विहीन प्रेमी के कदमों से कदम मिलाकर जीवन का सफ़र तय करती । उसके अस्पष्ट अधरों से अधर मिलाकर प्रेमरस का स्वाद लेती, अधनींदी अवस्था में अपने खामोश शरीरविहीन प्रेमी के साथ प्रेमगीत गाते हुए प्रेमालाप करती । वो जानती थी बिना आँखों में झाँके सच्चे प्रेम को महसूस नहीं किया जा सकता लेकिन जीवन काटने के लिए ये मृगतृष्णा उसके लिए डूबते को तिनके का सहारा थी । 

संजना तिवारी 
9/406, A-1 & A-2, 
Opp New RTC Bus Stand, Main Road,
Rajampet - 516 115, Distt. - Kadapa
(Andhra Pradesh)
मोबाईल : 08985088566
ईमेल: sanjanaabhishektiwari@gmail.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ