अगर हम साहित्य अकादमी के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो यह देखकर तकलीफ होती है कि वहां किस तरह से स्वायत्ता के नाम पर प्रतिभाहीनता को बढ़ावा दिया जा …
पुस्तक समीक्षा साहित्य और समाज के लोकतान्त्रिककरण की प्रक्रिया का नया आख्यान ‘मुस्लिम विमर्श : साहित्य के आईने में’ एम. फिरोज खान की नई …
रोशनी कहाँ है? राजेन्द्र यादव वाकई बिस्सो बाबू आज परेशान था। इतने विश्वास का परिणाम यह हुआ! भूखे मरते उस सोभा को खिलाया-पिलाया, रखा, और अब यों…
टेलीविजन पत्रकारों ने खबरों को समझना बंद कर दिया है - शैलेश (न्यूज नेशन) मीडिया की भाषा- खतरे और चुनौतियां के साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के …
राजेन्द्र यादव की कवितायेँ न-बोले क्षण न, कुछ न बोलो मौन पीने दो मुझे अपनी हथेली से तुम्हारी उँगलियों का कम्प... उँह, गुज़रते सै…
अंधेरी कोठरी मेँ रोशनदान की तरह कविता ‘हंस’ मेरा दूसरा मायका था आज राजेन्द्र जी पर जब लिखने बैठी हूँ, ऐन सुबह का वही समय है जब वे अपने …
राजेंद्र यादव के जाने से साहित्य जगत में जो सन्नाटा पसरा है वह हाल फिलहाल में टूटता नजर नहीं आ रहा है - हमारे समय का कबीर - अनंत विजय …