रैनेसाँ प्रियंवद रैनेसाँ ! इस दफा की 'बहुवचन' में जब यह लेख देखा तो लगा कि 'किस ज़माने की बात करते हो ..' लेकिन लेख प्रियंवद …
कवितायेँ: स्वप्निल श्रीवास्तव ♒ बांसुरी मैं बांस का टुकड़ा था तुमने यातना देकर मुझे बांसुरी बनाया मैं तुम्हारे आनंद के लिये बजता रहा फ…
नीरजा पाण्डेय की लेखनी बहुत सशक्त है, उनकी कहानियां, कवितायेँ पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. स्त्री विमर्श को आगे बढ़ाने में उनके लेख हमेश…
साहित्य के संत अशोक सेकसरिया को शब्दांकन परिवार की श्रधांजलि अशोक सेकसरिया अच्छाई उपजाने वाले व्यक्ति थे - प्रयाग शुक्ल दो दिन …
राग दरबारी - आलोचना की फांस रेखा अवस्थी राग दरबारी पर एक संकलन तैयार करने की इच्छा संभवत: 2005 में मेरे मन में आई थी । अपनी इस योजना पर जब मै…
एक शहर की मौत विजय कुमार सप्पत्ति पर्दा उठता है मंच पर अँधेरे के बीच एक स्पॉट लाइट पड़ती है. उस स्पॉट लाइट के केंद्र में सूत्रधार आता है …