विकास का मतलब पूरी दुनिया में अलग अलग तरीके से समझा गया है । जो इसके आलोचक हैं उनमें संवाद की ऐसी क्षमता नहीं है जिससे वे किसी विकल्प को स्थापित …
मैंने पूछा -‘वन बीएचके क्यों? वह बोला-‘जानता हूँ आप हिन्दी के लेखक हैं इसलिए’ लेखन में मुकाम हासिल करना आसान है, मकान हासिल करना बहुत टफ है। बुक…
कई ऐसी एजेंसियां भी मैदान में आ गई हैं जो अपना सर्वे मुफ्त में न्यूज चैनलों के मुहैया करवाती हैं और उनकी एकमात्र शर्त होती है कि उनके नतीजों को बगै…
गर्व से कहो हम फासिस्ट हैं संजय सहाय 1921 में नेशनल फासिस्ट पार्टी (पीएनएफ) के जन्म के साथ ही इटली में फासिज्म का उदय हुआ. इस नए राजनीतिक विच…
ज़ख़्म भले न भरें, पर समय उन पर पपड़ी तो डाल ही देता है हलंत हृषीकेष सुलभ ≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡ अजीब-सी चुप्पी, जिसका कोई ओर-छोर नहीं था। लगता,…
कविताओँ मेँ इन दिनों माँ उन्नीस सौ नब्बे का साल । इस साल कवियों नेँ माँ पर कविताएँ लिखीं अनगिनत। कविताओं में इन दिनों जहाँ देखो तहाँ …
‘हिंदी के लिए कुछ किया जाए’ इसी उधेड़बुन ने कोई सवा साल पहले शब्दांकन की शुरुआत की। आसान होगा और इस तरह हिंदी और उसके चाहने वालों के लिए शायद कुछ …
स्मृतियाँ भी तो थकाती हैं कभी-कभी, जब वे ठाट की ठाट उमड़ती हुई बे-लगाम चली आती हैं उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ ≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡ ज़िन्दगी…