चौं रे चम्पू किसके पास नहीं हैं द्रोणाचार्य — अशोक चक्रधर — चौं रे चम्पू! उदैपुर ते सूधौ ई मुंबई चलौ गयौका? द्रोणाचार्य ने एकलव्…
चर्चा में दो किताबें गोधरा दंगों के बाद मोदी पर दो लेखकों के विरोधाभासी तर्क ------------------------------------------------- दो क…
विनोद तिवारी और समकालीन आलोचना रचनाकार का यह आरोप कि, आलोचक ने उसकी रचना को समझा ही नहीं है, उसने अपने मन और विचार से असंगत निष्कर्षों को मेरी…
मीडिया का अतिरेकी आचरण - अशोक मिश्र देखते ही देखते वर्ष 2013 धीरे से विदा हो गया और एक नए साल के साथ ही हम वर्ष 2014 में आ पहुंचे हैं । अगर ह…
नारे विकास के हों, सपने भविष्य के हों, बातें सुशासन की हों, दावे कड़क कप्तानी के हों, तेवर टनाटन ओज के हों, और टीका हिन्दुत्व का हो, तो फिर और क्य…
तमंचे की नोक पर स्त्री लेखन और हाशिए उलांघती औरत - गीताश्री समय बदला, तकनीक बदली, दुनिया की शक्लो सूरत बदल गई, रहन सहन बदल गए, जीवन शैली बदल …