विदेशी फूल चाहे जितने रंगीन हों आकार-प्रकार-प्रजाति से जी को लुभाते हों, …
हाँ कहानी को बीच में तोड़ कर एक बात कहता हूँ कि कहीं उसी छवि की जीती जागती परिछाई थी वह। उस समय मेरी उम्र कोई तेरह - चौदह साल की रही होगी। मेरी अल्ह…
चौं रे चम्पू यादों के खट्टे-मीठे फल अशोक चक्रधर हिन्दी हमारे देश में बैकफुट पर रहती है, कभी अपने आपको बलपूर्वक आगे खड़ा नहीं करती। …
छवि कई बार सुरक्षा कवच भी बन जाती है, खासकर स्त्रियों के मामले में। वह हंसती है …
कफन : एक पाठ अमिताभ राय ‘ कफ़न ’ प्रेमचंद की ही नहीं, हिन्दी की भी सर्वश्रेष्ठ कहानियों में समादृत है । सन् 1936 में इसका लेखन प्रेमचंद ने …
श्रद्धाजंलि वह निर्छद्म हंसी रूपसिंह चन्देल कुछ लेखक डॉ. सिंह से इस बात से भी खफा थे कि वह उनके आत्मकथा लेखन का विरोध करते थे. डॉ. तेज सिं…