रोशनी कहाँ है? राजेन्द्र यादव वाकई बिस्सो बाबू आज परेशान था। इतने विश्वास का परिणाम यह हुआ! भूखे मरते उस सोभा को खिलाया-पिलाया, रखा, और अब यों…
टेलीविजन पत्रकारों ने खबरों को समझना बंद कर दिया है - शैलेश (न्यूज नेशन) मीडिया की भाषा- खतरे और चुनौतियां के साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के …
राजेन्द्र यादव की कवितायेँ न-बोले क्षण न, कुछ न बोलो मौन पीने दो मुझे अपनी हथेली से तुम्हारी उँगलियों का कम्प... उँह, गुज़रते सै…
अंधेरी कोठरी मेँ रोशनदान की तरह कविता ‘हंस’ मेरा दूसरा मायका था आज राजेन्द्र जी पर जब लिखने बैठी हूँ, ऐन सुबह का वही समय है जब वे अपने …
राजेंद्र यादव के जाने से साहित्य जगत में जो सन्नाटा पसरा है वह हाल फिलहाल में टूटता नजर नहीं आ रहा है - हमारे समय का कबीर - अनंत विजय …
अनामिका की कवितायेँ Poems of Anamika स्त्रियाँ पढ़ा गया हमको जैसे पढ़ा जाता है कागज बच्चों की फटी कॉपि…