किसी एक व्यक्ति के सुख से न तो खेतों में हरियाली छा जाती है, न उसके दुख के ताप से खेत, नदियां तालाब सूख जाते हैं। जब मन में पीड़ा का आलोड़न हिलोरें ले…
मत्स्यगंधा गीताश्री की कहानी “हे निषाद देवता...ई औरत तो सचमुच सनकल पुजारिन हो गई है। क्या गा रही है। सुरसती लोकगीत गाती है सुर में। गीतगाइन सुर…
मैंने राजवंती के गले में उस बूंदे को छूते हुए टोका — “ये बेटे के लिए पहना है न ?” गीताश्री पराई पीर समझने का नतीजा है ‘परिवर्तन’ — गीत…
शहर छूटा, लेकिन वो गलियां नहीं! — गीताश्री आखिर बाईजी का नाच शुरु हुआ। घर की औरतों को ऐसा नाच देखने की मनाही तो होती है, लेकिन घर की …
गीताश्री कहानियों के सेफ जोन से परिचित होते हुए भी बार-बार रिस्क लेती हैं। कहानियों में बोल्ड विषय लेने के आरोप उन पर निराधार है। वह बात को क…