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'मुश्किल अभी कम नहीं हुयी है' हिन्दू-हिंसा पर ब्रजेश राजपूत #BharatBandh

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मुश्किल अभी कम नहीं हुयी है। वाटस अप पर चल रहे संदेशों को मानें तो 10 अप्रैल को सवर्णों ने बंद का आह्वान किया है तो 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती है। इन दोनों तारीखों पर कोई पक्ष बवाल खडा ना करें। इसकी चिंता है।



बारह बोर की हो या तेरह बोर की... मेरा बेटा तो गया साब...

( सुबह सबेरे में ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, की ग्राउंड रिपोर्ट )


‘इस गली में जो गोली चली वो रिवाल्वर की थी मगर दीपक को तो बारह बोर की गोली लगी है?’

दृश्य एक : ग्वालियर के थाटीपुर का गल्ला कोठार की हरि केटर्स वाली गली। एक दिन पहले हुये उपद्रव के निशान हर ओर मौजूद थे। टूटे कांच और हर ओर बिखरे पत्थर गवाही दे रहे थे कि उस दिन जमकर उपद्रव हुआ होगा। गली के मोड पर ही लगा था ‘हरि केटर्स’ का वो बोर्ड जहां से सटकर राजा चौहान नाम के युवक की रिवाल्वर से फायरिंग करते हुये का वीडियो वाइरल हुआ था।



गली के आखिर में ही है, टीन की छत से बना, दीपक जाटव का मकान। दो तारीख को हुयी हिंसा में दीपक को तीन गोलियां लगीं थीं। सोमवार की सुबह जब थाटीपुर में हिंसा भडकी तो दीपक अपनी मां और भाई को घर में बंद कर पिता को तलाशने निकला था मगर खुद गोली का शिकार हो गया। दीपक सुबह ‘हरि केटर्स’ के बोर्ड के सामने ही चाय का ठेला लगाता था तो दिन में लोन पर उठाया हुआ आटो चलाता था।



दीपक के पिता का बुरा हाल है, उस पर पत्रकारों के ये सवाल, ‘इस गली में जो गोली चली वो रिवाल्वर की थी मगर दीपक को तो बारह बोर की गोली लगी है?’, बूढा बाप सुबक उठता है, ‘बारह की हो या तेरह की साब! मुझे नहीं मालूम, मेरा बेटा तो गया, उसकी लाश घर भी नहीं ला पाये, रात में ही जलाना पडी, हम सरकार से तो लड नहीं सकते, आप बताओ, ये नया आटो कौन चलायेगा, हमारा घर कौन चलायेगा?’



दृश्य दो : भिंड जिले के मेहगांव की ‘कृषि उपज मंडी’ के किनारे बसी ‘बौद्ध विहार कालोनी’। यहीं के मकान नंबर दस के बाहर, लोग जमीन पर दरी बिछाकर बैठे हैं, और अखबारों में छपी हिंसा की कवरेज को पढकर सुलग रहे हैं।

‘हमारे ही लोग मरे हैं और हमारे ऊपर ही मुकदमे दर्ज हो रहे हैं ये कहां का इंसाफ है?’ 




इसी घर का सोलह साल का आकाश, मेहगांव में सोमवार को हुये उपद्रव में चली गोली बारी में नहीं रहा था। कैमरा देखते ही सुलग उठते हैं लोग। ‘हमारे ही लोग मरे हैं और हमारे ऊपर ही मुकदमे दर्ज हो रहे हैं ये कहां का इंसाफ है?’ छह बहनों का इकलौता भाई आकाश सब्जी लेने गया था मगर जाने कैसे उपद्रवियों की भीड का हिस्सा हो गया और दोपहर तक घर आयी उसकी मौत की खबर। आकाश के साथ उस दिन भीड में शामिल नौजवान बताने लगे कि हम तो शांति से दुकान बंद करा रहे थे, मगर थोडी देर बाद ही, आगे से पुलिस, और पीछे से आरएसएस के लोगों ने घेर लिया, ऐसे में हम डंडे नहीं लहराते तो क्या करते? जान बचाकर भागे तो अब तक भाग ही रहे हैं, पुलिस हमें तलाश रही है, सैंकडों लोगो के नाम एफआईआर में तहसीलदार ने लिखा दिये हैं।‘



दृश्य तीन :भिंड जिले से सत्तर किलोमीटर दूर पडता है मछंड कस्बा जहां पुलिस की फायरिंग में महावीर राजावत मारा गया था। मछंड से महावीर के गांव गांद जाने में जिस भी गांव में गये तो हमारी गाडी देखकर लोग छिपते मिले। सोमवार की हिंसा के बाद, अब, पुलिस लोगों को तलाशती घूम रही है। बत्तीस साल के महावीर ने मां-बाप की सेवा के लिये शादी नहीं की थी। सोमवार को जब मछंड में भाई की दुकान में आग लगने की खबर सुनी तो भाग कर यहां आया और थाने का घेराव करने वाली भीड का हिस्सा बन बैठा। पुलिस ने जब गोली बरसाई तो गोली सीने में धंस गयी। गोली अंत्येष्टि से पहले ही, पुलिस मेटल डिटैक्टर की मदद से, मुश्किल से निकल पायी। महावीर के बुजुर्ग पिता एक तरफ बैठे सुबक रहे हैं तो सूरत से सोमवार को आया भाई सुरेंद्र भी, ग्वालियर में हिंसक भीड से पिटा और अस्पताल में बेहोश मिला। यहां घर आया तो भाई की लाश दरवाजे पर मिली। उधर मछंड में पहले बाजार की दुकानें जलीं और लुटीं हैं तो बाद में दलितों के घर जला दिये गये हैं। पुत्तु राम के रोड का घर जला दिया गया है, पत्नी और बेटी को छोड परिवार के सारे पुरूष दो दिन से लापता है।



ग्वालियर चंबल संभाग में चार दिन बिताने के बाद जब लौटा हूं, तो ये ऐसे ढेर सारे सीन, आंखों के सामने गडड मडड हो रहे हैं। एससीएसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के बाद जो भारत बंद हुआ उसमें सबसे ज्यादा हिंसा यहीं देखी गयी। आठ लोग यहां मारे गये, सौ डेढ सौ लोग ग्वालियर और भिंड के अस्पताल में इलाज करा रहे हैं तो हजारों लोगों के नाम पर भिंड, मुरैना और ग्वालियर जिले के थानों में एफआईआर कट रही है। पुलिस घरों पर दबिश दे रही है, तो थानों में मुजरिमों को रखने की जगह नहीं बची है।



मेहगांव में हमारे सामने ही कई युवकों को पुलिस थाने ले गयी ये कहकर कि इनके नाम एफआईआर में लिखे गये हैं। शिवराज सरकार में चार मंत्रि, तो मोदी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री वाले, इस इलाके के लोग हैरान हैं कि यहां ऐसी हिंसा क्यों भडकी और उसे रोका क्यों नहीं गया। क्या नेता-मंत्री केवल गाडी, बंगले और रूतबे के लिये ही हैं। दलित और सवर्णों के बीच ऐसा भयानक बंटवारा और वैमनस्य यहां हुआ हो और इसकी खबर किसी को ना हो ऐसे कैसे हो सकता है? यहां भडकी हिंसा में इलाके के गन कल्चर ने आग में घी का काम किया है। शहर की गलियों में जितनी बंदूकें रिवाल्वर लहराती दिखीं उसे देख हैरानी हुयी। खैर अब चिंता ये है कि सामाजिक बंटवारे का ये घाव कब तक और कैसे भरेगा, क्योंकि कुछ महीनों बाद राज्य में चुनाव है और तब तक इन जख्मों को जिंदा रखकर पार्टियों अपनी वोटों की रोटियां तो सेकेंगीं हीं, इस कडवी सच्चाई से क्या आप इनकार करेगें।

मुश्किल अभी कम नहीं हुयी है। वाटस अप पर चल रहे संदेशों को मानें तो 10 अप्रैल को सवर्णों ने बंद का आह्वान किया है तो 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती है। इन दोनों तारीखों पर कोई पक्ष बवाल खडा ना करें। इसकी चिंता है।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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'विवेक’ और ‘अंतःकरण’ चालाकीपूर्ण शब्द बन गए हैं — प्रो. राजेंद्र कुमार



अमिताभ राय को उनकी आलोचना पुस्तक ‘सभ्यता की यात्रा : अंधेरे में’ के लिए तेईसवां देवीशंकर अवस्थी सम्मान-2017 

— पुखराज जाँगिड़





युवा आलोचक अमिताभ राय को उनकी आलोचना पुस्तक ‘सभ्यता की यात्रा : अंधेरे में’ के लिए तेईसवें देवीशंकर अवस्थी सम्मान-2017 से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान 5 अप्रैल 2018 को साहित्य अकादेमी सभागार (नयी दिल्ली) में आयोजित तेईसवें देवीशंकर अवस्थी सम्मान समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर आचार्य द्वारा प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र व ग्यारह हजार रुपये की राशि प्रदान की गयी।

 क्योंकर ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुता’ के विचार को लेकर आगे बढ़ने वाला यूरोपीय समाज अंततः दुनिया का सबसे बड़ा शोषक, आततायी, साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी समाज निकला? — अच्युतानंद मिश्र

प्रसिद्ध आलोचक देवीशंकर अवस्थी (5 अप्रैल 1930 से 13 जनवरी 1966) की स्मृति में उनके जन्मदिवस पर सन् 1995 से प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित सम्मान हिंदी में साहित्यिक आलोचना की संस्कृति के विकास के लिए किसी एक युवा आलोचक उसकी श्रेष्ठतम आलोचना कृति के लिए दिया जाता है। इस बार की निर्णायक मंडली के सदस्य सर्वश्री अशोक वाजपेयी, नंदकिशोर आचार्य, राजेंद्र कुमारकमलेश अवस्थी थे। निर्णायकों के प्रशस्ति वाचन में प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि आलोचनात्मक विवेक से पूर्ण अमिताभ राय की पुस्तक की हिंदी में एक ही कविता के पाठ पर केंद्रित आलोचना का श्रेष्ठ उदाहरण है, जो मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ कविता को सभ्यता मूलक दस्तावेज के रूप में देखने-समझने की कोशिश करती है।



देवीशंकर अवस्थी सम्मान की संस्थापक व नियामिका डॉ. कमलेश अवस्थी ने बताया कि अब तक यह सम्मान क्रमश: सर्वश्री मदन सोनी, पुरुषोत्तम अग्रवाल, विजय कुमार, सुरेश शर्मा, शंभुनाथ, वीरेन्द्र यादव, अजय तिवारी, पंकज चतुर्वेदी, अरविन्द त्रिपाठी, कृष्णमोहन, अनिल त्रिपाठी, ज्योतिष जोशी, प्रणयकृष्ण, प्रमिला के.पी., संजीव कुमार, जितेन्द्र श्रीवास्तव, प्रियम अंकित, विनोद तिवारी, जीतेन्द्र गुप्ता, वैभव सिंह और पंकज पाराशर को मिल चुका है।



कार्यक्रम की शुरूआत रेखा अवस्थी द्वारा संपादित और वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘देवीशंकर अवस्थी रचनावली’ के लोकार्पण से हुई। लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी और अशोक वाजपेयी ने किया। इस अवसर विश्वनाथ त्रिपाठी ने देवीशंकर अवस्थी से संबद्ध संस्मरण साझा करते हुए कहा कि वे बहुत तैयारी में थे, लेकिन सारे काम अधर में छोड़ गए, जिन्हें कमलेश अवस्थी ने सहेजा और आज वो एक समृद्ध रचनावली के रूप में हमारे सामने हैं। अशोक वाजपेयी ने कहा कि देवीशंकर अवस्थी के आलोचकीय आलोक का सबसे बड़ा देय हिंदी प्रदेश में नागरिक आलोचना समाज के निर्माण की कोशिश है। रचनावली-संपादक रेखा अवस्थी ने ‘क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!’ के रूपक में संस्मरणात्मक ढंग से रचनावली की रूपरेखा पर अपनी बात रखी और वाणी प्रकाशन के स्वत्वाधिकारी अरुण माहेश्वरी ने रचनावली के प्रकाशन संबंधी अपने अनुभव साझे किए तथा संपादकों और अवस्थी परिवार को धन्यवाद ज्ञापित किया।




पुरस्कार-अर्पण के बाद ‘आलोचना का अंतरःकरण’ विषयक विचारगोष्ठी आरंभ हुई, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर आचार्य ने की व वक्ताओं के रूप में युवा साहित्यकार अच्युतानंद मिश्र व वरिष्ठ आलोचक प्रो. राजेंद्र यादव ने शिरकत की। विचारगोष्ठी की शुरुआत पुरस्कृत आलोचक अमिताभ राय के वक्तव्य से हुई, जिसमें उन्होंने आलोचना को नैतिकता बोध से जोड़ते हुए उसे इंसान की बुनियादी प्रवृत्ति के रूप में चिह्नित किया, जो आज खतरे हैं। जिस तरह हर बड़ी रचना अपने समय की सबसे बड़ी आलोचना होती है उसी तरह आलोचना भी।



मौजूदा समाज में लगातार क्षीण होते आलोचनात्मक विवेक पर दुख प्रकट करते हुए युवा साहित्यकार अच्युतानंद मिश्र ने कि पश्चिमी समाज द्वारा आरोपित तकनीकी तार्किकता के कारण हमारा सामाजिक संस्पर्श और मानवीय विवेक तक खतरे में है और हम उसे समझा पाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं और बचाव में खुद ही पर निगरानी किए जा रहे हैं। भोथरे होते आलोचनात्मक अंतःकरण के ही कारण हम अपने नवजागरण तक को सही से मूल्यांकित नहीं कर पा रहे हैं कि क्योंकर ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुता’ के विचार को लेकर आगे बढ़ने वाला यूरोपीय समाज अंततः दुनिया का सबसे बड़ा शोषक, आततायी, साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी समाज निकला?



विचार गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि ‘विवेक’ और ‘अंतःकरण’ चालाकीपूर्ण शब्द बन गए हैं। अगर दोनों को सकारात्मक अर्थ में लिया जाए तो इनके संगत निर्वाह से ही बेहतर आलोचना सामने आती है। आलोचना के अंतःकरण की पहचान के लिए उन्होंने रचना के अंतःकरण, रचनाकार के अंतःकरण व आलोचक के अंतःकरण की पहचान के तीन स्तरों की बात कही। इसके अभाव में आज की आलोचना हमें यह नहीं समझा पाती कि रचना हमें क्या सौंपना चाहती है?


विचारगोष्ठी के अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर आचार्य ने देवीशंकर अवस्थी रचनावली के लिए हिंदी समाज को बधाई देते हुए कहा कि ‘आलोचना का अंतःकरण’ मूलतः नैतिक संवेदन है, जो साहित्य अंतर्मन की समझ व पहचान निर्मित करता है। उन्होंने ‘रामायण’ के अहल्या-प्रसंग व ‘महाभारत’ के द्रोपदी-प्रसंग, ‘त्यागपत्र’ के मृणाल-प्रसंग व कई अन्य पश्चिमी रचनाओं के प्रसंग के माध्यम से ‘शास्त्रगत नैतिकता’ व ‘लोकाचारगत नैतिकता’ में तमाम रचनाकारों ने अपने ‘आलोचनात्मक अंतःकरण’ के ही कारण ‘लोकाचारगत नैतिकता’ को तरजीह दी। इसलिए आलोचना अपने अंतःकरण को विस्मृत करने की कोशिशों से बचते हुए जीवन की अनुभूति से पैदा होने वाले साहित्य के भीतर प्रवेश करके उसके नजरिए को सामने रखना चाहिए। आज की आलोचना ऐसा करने से बच रही है, इसलिए उन्होंने आलोचना की ज्ञान-मीमांसा को फिर से निर्मित और व्याख्यायित करने पर जोर दिया।



समारोह में देश भर से समारोह में पधारे साहित्यानुरागी अतिथियों और साहित्यकारों का स्वागत अवस्थी परिवार ने किया और कार्यक्रम का संचालन देवीशंकर अवस्थी सम्मान से सम्मानित युवा आलोचक डॉ. संजीव कुमार ने किया।


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डेटा चोरी ज्यादातर...इसके लिए सबसे पहले आपको? | #जस्ट_ज़िंदगी #SundayNBT

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कैसे करें

इंटरनेट पर हम तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक सजग हैं।

ऐसे सेफ रखें मोबाइल का अपना डेटा

Save Your Mobile From Hacking

फेसबुक को लेकर हाल में जो खबरें आई हैं, वे यूजर्स को काफी डराने वाली हैं। माना जा रहा है कि फेसबुक से 5 करोड़ यूजर्स का डेटा खतरे में है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आप अपनी प्राइवेसी को कैसे बरकरार रख सकते हैं। विस्तार से जानकारी दे रहे हैं मुकेश कुमार सिंह

हाल ही में एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान खुलासा किया हुआ कि करोड़ों फेसबुक यूजर्स के डेटा का इस्तेमाल अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया। भारत में आयोजित चुनावों से भी इसको जोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि कंपनियां अपने प्रॉडक्ट को बेचने के लिए बड़े पैमाने पर डेटा खरीद रही है। यह एक तरह से यूजर्स की प्राइवेसी का हनन है।

परमिशन देने का मतलब होता है कि आपने उन्हें अपने घर की चाबी दे दी। अब जैसा मन करेगा, कंपनियां वैसे ही डेटा का इस्तेमाल कर सकती हैं।


फेसबुक ही नहीं, तमाम सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप्स यूज करने वाले यूजर्स भी अपने डेटा को लेकर फिक्रमंद हैं। डेटा लीक के बाद लाखों लोगों ने अपना फेसबुक अकाउंट डिलीट कर दिया, लेकिन बाकी यूजर्स के मन में बड़ा सवाल है कि क्या हमारा डेटा सुरक्षित है? इसका जवाब है कि इंटरनेट पर हम तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक सजग हैं। मोबाइल ऐप्स बड़ी आसानी से आपसे कुछ परमिशन ले लेते हैं और आपका डेटा इकट्ठा करते रहते हैं। ये ऐप आपकी हर गतिविधि पर नजर रखते हैं और आपको मालूम भी नहीं चलता। आप कहां जा रहे हैं, किसे कॉल कर रहे हैं, किसके साथ बैठे हैं और किस रेस्तरां में खाना खा रहे हैं, जैसी सारी जानकारी इनकी निगाह में होती है।

एंड्रॉयड ऐप एक्सपर्ट श्वेतांक आर्य कहते हैं कि एंड्रॉयड फ्रेमवर्क में आमतौर पर दो तरह की परमिशन होती हैं: नॉर्मल परमिशन और सेंसिटिव परमिशन। नॉर्मल परमिशन के लिए ऐप आपसे इजाजत नहीं मांगते बल्कि ऐप इंस्टॉल करते ही यह परमिशन उन्हें मिल जाती है। वाईफाई, ब्लूटूथ, वॉलपेपर और अलार्म जैसी चीजें इसमें आती हैं, जबकि कैमरा, लोकेशन, माइक्रोफोन और स्टोरेज समेत कई तरह के हार्डवेयर स्टोरेज की इजाजत आपसे मांगी जाती है, जोकि खतरनाक साबित हो सकती है। आमतौर पर आप ऐप इंस्टॉल करते वक्त परमिशन दे भी देते हैं क्योंकि कई ऐप्स बिना इन परमिशन के डाउनलोड ही नहीं होते। बेशक परमिशन देने का मतलब होता है कि आपने उन्हें अपने घर की चाबी दे दी। अब जैसा मन करेगा, कंपनियां वैसे ही डेटा का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसमें सबसे खतरनाक बात यह है कि आपको डेटा चोरी के बारे में पता भी नहीं चलेगा। आप जब परमिशन दे देते हैं तो एंड्रायड फ्रेमवर्क भी उन्हें आपका डेटा लेने से नहीं रोकता।

आप जल्दी से ऐप इंस्टॉल करने के चक्कर में यह नहीं देखते कि आपसे क्या मांगा जा रहा है।

कब आप देते हैं इजाजत

ऐप इंस्टॉल करने के दौरान कंपनियां आपसे कैमरा, माइक्रोफोन, मेसेज पढ़ने, कॉल डिटेल्स देखने और लोकेशन समेत कई जानकारियां लेने के लिए इजाजत मांगती हैं। आप जल्दी से ऐप इंस्टॉल करने के चक्कर में यह नहीं देखते कि आपसे क्या मांगा जा रहा है। इसका नुकसान यह होता है कि ये कंपनियां ऐप के जरिए हर वक्त आप पर नजर बनाए रखती हैं और समय-समय पर उस डेटा का इस्तेमाल अपने निजी फायदे के लिए करती हैं। ऐसा ही फेसबुक डेटा लीक मामले में भी हुआ।

आप अपने फेसबुक अकाउंट में इंटिग्रेटेड ऐप्स को जरूर जांचें। जिन पर शक हो, उन्हें फौरन हटा दें

सोच-समझ कर दें परमिशन

डेटा चोरी से बचने के लिए आपको शुरू से सजग रहना होगा। अगर आप प्लेस्टोर से कोई ऐप डाउनलोड करते हैं तो आपको वहीं सावधान रहना है। आप हर ऐप को किसी खास काम के लिए डाउनलोड करते हैं इसलिए हर चीज की परमिशन उसे न दें। अगर कोई रेस्तरां का ऐप है तो उसे कैमरा या मेसेज ऐक्सेस का कोई काम नहीं है। वहीं अगर कोई पेमेंट ऐप है तो वह लोकेशन एक्सेस क्यों जानना चाहता है, इस बारे में भी सोचें। आपने पहले से कई ऐप डाउनलोड किए होंगे। आप उनकी भी परमिशन का रिव्यू कर सकते हैं। आप देख सकते हैं कि कौन-कौन से ऐप आपसे क्या जानकारी ले रहे हैं।

  1. इसके लिए सबसे पहले आप फोन की Settings में जाएं। 
  2. वहां Apps या Apps & notifications में जाएं। 
  3. यहां पर आपके मोबाइल पर डाउनलोड हुए तमाम ऐप्स की लिस्ट सामने होगी। 
  4. अब आप उस ऐप को टैप करें जिसकी परमिशन को आप रिव्यू करना चाहते हैं। 
  5. यहां आपको कई सारे ऑप्शंस दिखेंगे जिनमें से एक Permissions होगा। 
  6. इसे टैप करने पर कुछ ऑप्शन के साथ आपको बॉडी सेंसर, कैलेंडर, कैमरा, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, माइक्रोफोन, फोन, एसएमएस और स्टोरेज की परमिशन का ऑप्शन मिलेगा। 
  7. यहां आप अपनी सुविधानुसार ऐप परमिशन को मॉडिफाई कर सकते हैं। बेशक जो जिस ऐप के लिए जरूरी परमिशन लगे, सिर्फ उन्हीं की परमिशन आप दें। 
गौरतलब है कि ऐप परमिशन रिव्यू की सुविधा एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम 6.0 मार्शमेलो या इससे ऊपर के संस्करण में ही उपलब्ध है।

वैसे आजकल के नए हैंडसेट्स में आपको बारी-बारी सभी ऐप में जाकर परमिशन को ऑन-ऑफ करने की जरूरत नहीं होती, बल्कि सेटिंग्स में जाकर सबसे पहले आपको ऐप्स का चुनाव करना होता है। फोन में नीचे या ऊपर राइट साइड में More का ऑप्शन या तीन डॉट (...) मिलेंगे। आपको उस पर क्लिक करना है। इसमें ही आपको ऐप परमिशन का ऑप्शन मिलेगा, उस पर टैप करें। यहां आपको बॉडी सेंसर, कैलेंडर, कैमरा, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, माइक्रोफोन, फोन, एसएमएस और स्टोरेज जैसे ऑप्शंस दिखेंगे। आप बारी-बारी से इन पर टैप कर देख सकते हैं कि कौन-सा ऐप किस तरह का डेटा ऐक्सेस कर रहा है। हर सेग्मेंट में ऐप की पूरी लिस्ट आ जाएगी। आप यहां खुद ही ऐप डेटा को मॉडिफाई कर सकते हैं।


फेसबुक के लिए

'Login with facebook' से बचें
कई बार आप ब्राउजर या ऐप में किसी चीज को खोलते हैं और वह आपको आईडी बनाने या फिर 'लॉग-इन विद फेसबुक' या 'लॉग-इन विद जीमेल' के लिए कहता है। आप भी जल्दी से लॉग-इन करने के लिए इन्हें ऐक्सेस दे देते हैं, लेकिन आपको शायद मालूम नहीं कि ऐसा करके वह वेबसाइट या ऐप आपसे जानकारियां हासिल कर लेता है और फिर हमेशा के लिए आपके फेसबुक में ताकझांक करने का इंतजाम कर लेता है। अगर आपने पहले से किसी को ऐक्सेस दे रखा है तो आप बाद में भी रिव्यू कर सकते हैं। 

  1. इसके लिए आप फेसबुक ऐप की Settings में जाएं। 
  2. यहां आप बिल्कुल नीचे स्क्रॉल करेंगे तो Apps का ऑप्शन मिलेगा। उस पर टैप करें। 
  3. यहां Logged in with Facebook पर टैप करने के बाद उन ऐप्स की पूरी लिस्ट आ जाएगी जिन्हें आपने 'लॉगिन विद फेसबुक' का ऐक्सेस दिया है। 
  4. यहां से आप ऐप को सिलेक्ट कर डिलीट कर सकते हैं।



अपनी प्राइवेसी जांचें

फेसबुक पर कुछ ऐसी तस्वीरें होती हैं, जिसे अपने दोस्तों में प्राइवेट रखना चाहते हैं या किसी सब्जेक्ट को दूसरों के साथ साझा नहीं करना चाहते। अच्छी बात यह है कि आप ऐसा कर सकते हैं। फेसबुक की सेटिंग्स में जाने के बाद प्राइवेसी के अंदर मिलेगा। यहां तय कर सकते हैं कि कौन आपके पोस्ट्स के साथ ही आपके प्रोफाइल की निजी जानकारियों, जैसे-फोन नंबर, ईमेल, पता आदि देखे। कई लोग फेसबुक पर अपनी निजी जानकारी को पब्लिक कर देते हैं, जबकि यह सही नहीं है। फेसबुक पर जन्मदिन, कॉन्टैक्ट नंबर और एड्रेस आदि को छुपाकर रखें तो बेहतर है। इसका तरीका है: 

  1. फेसबुक ऐप खोलें। 
  2. राइट साइड में ऊपर तीन लाइनों पर टैप करें। 
  3. नीचे स्क्रॉल करने पर आपको Account Settings मिलेंगी। इसे टैप करें। 
  4. इसमें Privacy पर जाएं। 
  5. यहां मिलेगा Check a few important settings, इसे टैप करें। 
  6. फिर Next पर टैप करें। 
  7. choose Audience को Public, Friends आदि में से चुन सकते हैं। फिर Next पर टैप करें। 
  8. यहां आपका मोबाइल नंबर, ईमेल, बर्थडेट आदि होगा। इन्हें Only me कर दें। 
  9. अगला स्टेप आप कर ही चुके हैं। 
  10. फिर Next पर जाएं। इसे बंद कर दें।


डुअल सिक्यॉरिटी

अगर अपने फेसबुक अकाउंट को बहुत ज्यादा सिक्योर रखना चाहते हैं, तो डुअल सिक्यॉरिटी का सहारा ले सकते हैं। जब फेसबुक खोलने के लिए आइडी और पासवर्ड डालेंगे, तो आपको एक अडिशनल कोड दिया जाएगा। यह कोड आपको मोबाइल पर मिलेगा। इससे आपका अकाउंट ज्यादा सुरक्षित होगा। इसके लिए

  1. ऐप खोलें। 
  2. तीन लाइनों पर टैप करें। 
  3. नीचे स्क्रॉल करें। 
  4. Account Settings में Security and login में जाएं। 
  5. यहां नीचे की तरफ स्क्रॉल करने पर Setting Up Extra Security के अंदर आपको Use two-factor authentication का ऑप्शन मिलेगा। 
  6. इसे On कर दें।


लॉगइन अलर्ट

अगर आप चाहते हैं कि कोई दूसरा शख्स आपका फेसबुक अकाउंट लॉगइन करे तो आपको सूचना मिल जाए तो आप लॉगइन अलर्ट्स फीचर को इनेबल कर सकते हैं।

  1. यह फीचर Account Settings में 
  2. Security and login के अंदर 
  3. Get alerts about unrecognized logins नाम से मिलेगा। 
  4. इसे On कर दें। 
आप नोटिफिकेशन फोन पर ले सकते हैं या फिर ईमेल पर।

ऐप्स की करें जांच

आप फेसबुक से जुड़ी हर चीजों का ध्यान नहीं रख सकते। देखा गया है कि अक्सर लोग फेसबुक पर दूसरों को गेम के लिए इनवाइट करते हैं। ये ऐप्स आपके फेसबुक अकाउंट में आकर बैठ जाते हैं और आप इनका इस्तेमाल न भी करें तो भी आपके निजी डेटा को ऐक्सेस करते रहते हैं। ऐसे में आप अपने फेसबुक अकाउंट में इंटिग्रेटेड ऐप्स को जरूर जांचें। जिन पर शक हो, उन्हें फौरन हटा दें।

चोर ऐप्स और डिवाइस का पता करें

अगर आप एंड्रॉयड फोन इस्तेमाल कर रहे हैं तो जाहिर है गूगल अकाउंट भी होगा। गूगल अकाउंट से ही फोन की कई सर्विसेज़ कनेक्ट होती हैं। कई ऐप्स गूगल अकाउंट के जरिए ही काम करते हैं। आप ऐप इस्तेमाल करने के दौरान उसे ऐक्सेस दे देते हैं, लेकिन बाद में उसे हटाना भूल जाते हैं। ये ऐप्स चुपचाप आप पर निगाह रखते हैं। हालांकि आप चाहें तो इसे रिव्यू कर सकते हैं और इन ऐप्स और डिवाइस को हटा सकते हैं।

चोर डिवाइस का पता

इसके लिए सबसे पहले

  1. लैपटॉप या कंप्यूटर पर आपको अपना जीमेल अकाउंट खोलना है। 
  2. जीमेल में टॉप राइट साइड में आपको अपनी तस्वीर दिखाई देगी। आपने अगर तस्वीर नहीं लगाई है तो आपके नाम का लोगो आएगा। उस पर क्लिक करें। 
  3. इसके साथ ही आपको ब्लू बैकग्राउंड के साथ My Account लिखा दिखाई देगा। उस पर क्लिक करें।
  4. आप सीधे myaccount.google.com टाइप करके भी जा सकते हैं। 
  5. यहां Sign-in and security के अंदर आपको Device activity & security events का ऑप्शन दिखाई देगा। उस पर क्लिक करने पर एक नया विंडो खुलकर आ जाएगा और 
  6. आप यहां से Recently used devices देख सकते हैं। 
  7. यहीं पर थोड़ा नीचे REVIEW DEVICES का ऑप्शन होगा और आप उस पर क्लिक कर देख सकते हैं कि किस-किस फोन, टैब्लेट और कंप्यूटर में आपका गूगल आईडी इंटिग्रेटेड है। 
  8. जिन डिवाइस की जानकारी आपको नहीं हैं, उन्हें यहां से हटा दें। इसके लिए आपको उस डिवाइस पर क्लिक करना है और सामने ही REMOVE का ऑप्शन होगा। उस पर क्लिक कर उस डिवाइस को आप रिमूव कर दें।



चोर ऐप्स की करें पहचान

डेटा चोरी ज्यादातर ऐप्स के जरिए ही होती है। आप चोर ऐप्स की भी पहचान कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आपको

  1. लैपटॉप या कंप्यूटर पर अपना जीमेल अकाउंट खोलना है। 
  2. यहां से टॉप राइट में अपने फोटो या नाम पर क्लिक करना है और फिर 
  3. My Account पर क्लिक करना है। 
  4. यहां आपको Apps with account access का ऑप्शन मिलेगा। आप उस पर क्लिक कर दें। 
  5. यहीं नीचे की ओर आपको Manage Apps का ऑप्शन मिलेगा। उस पर क्लिक करते ही ऐप्स की पूरी लिस्ट आ जाएगी, जो आपका जीमेल डेटा ऐक्सेस कर रहे हैं। 
  6. आप जिस ऐप को हटाना चाहते हैं, उस पर क्लिक करें। 
  7. आपको सामने Remove का ऑप्शन दिखेगा। इस ऑप्शन पर क्लिक कर उस ऐप को आप हटा सकते हैं।


कुछ जरूरी सावधानियां

हर मोबाइल और इंटरनेट यूजर को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:

न रखें आसान पासवर्ड: ज्यादातर लोग जन्मदिन या मोबाइल नंबर को अपना पासवर्ड बना लेते हैं। वहीं कई लोग नाम के आगे 123456 जैसे शब्द जोड़कर पासवर्ड रख लेते हैं। यह बेहद खतरनाक है। पासवर्ड बनाते वक्त हमेशा ध्यान रहे कि बिल्कुल अगल तरह का पासवर्ड हो। स्पेशल कैरक्टर्स का जरूर इस्तेमाल करें और हर अकाउंट के लिए अलग पासवर्ड रखें।

बदलते रहें पासवर्ड: कोशिश करें कि महीने, दो महीने में पासवर्ड बदलते रहें। हर बार नया पासवर्ड बनाएं और स्पेशल कैरक्टर्स जरूर रखें। उन्हें ट्रैक करना मुश्किल होता है। वहीं पासवर्ड बनाते वक्त सिक्यॉरिटी सवाल और जवाब को ज्यादा मजबूत रखने की कोशिश करें ताकि कोई बंदा अनुमान न लगा सके।

डुअल सिक्यॉरिटी: डुअल सिक्यॉरिटी का इस्तेमाल आपको अतिरिक्त सुरक्षा का भरोसा देता है। जब आप ईमेल खोलने के लिए आईडी और पासवर्ड डालेंगे तो आपको एक अडिशनल कोड दिया जाएगा। यह कोड आपके मोबाइल पर मिलेगा। इससे आपका अकाउंट ज्यादा सुरक्षित होगा।

अनजान ईमेल न खोलें: आपके मेल बॉक्स या मेसेज में कोई भी अनजान मेल या लिंक आए तो उसे बिल्कुल न खोलें। वह वायरस हो सकता है, जो आपका ईमेल अकाउंट और डेटा हैक कर सकता है। वहीं कई वेबसाइट आपको लॉटरी या गिफ्ट का लालच दे रहा हो तो उस पर भी बिल्कुल क्लिक न करें।

प्राइवेट ब्राउजिंग: अगर किसी वजह से अनजान पीसी या मोबाइल पर आप अपना ईमेल या सोशल अकाउंट खोल रहे हैं तो प्राइवेट ब्राउजिंग का सहारा लें। साइबर कैफे, दोस्त के कंप्यूटर या मोबाइल आदि में तो यह और भी जरूरी है। सार्वजनिक स्थानों में सुरक्षा नियमों का सही से पालन नहीं किया जाता और हैकिंग का खतरा होता है। क्रोम ब्राउजर में Incognito Private Browising प्राइवेट मोड में है।

ओपन वाईफाई के इस्तेमाल से बचें: आजकल ज्यादातर जगह फ्री यानी ओपन वाईफाई सर्विस उपलब्ध होती है। कोशिश करें कि ओपन वाईफाई का इस्तेमाल न करें। इससे मोबाइल या लैपटॉप के हैकिंग का खतरा रहता है।

न रखें अपना ब्लूटूथ ओपन: डेटा ट्रांसफर का आसान जरिया ब्लूटूथ है और हैकर्स के लिए डेटा हैक का भी यह आसान जरिया है। अपने फोन का ब्लूटूथ तभी ऑन करें, जब जरूरत हो और इसके बाद फौरन बाद ऑफ कर दें।

साइड लोडिंग न करें: अक्सर आप किसी फोन या कंप्यूटर से ऐप्लिकेशन ट्रांसफर कर लेते हैं। इसे साइड लोडिंग कहते हैं। इससे भी वायरस आने का खतरा होता है। वायरस के जरिए हैकर्स फोन से डेटा चोरी करते हैं। ऐप स्टोर से ही ऐप डाउनलोड करें।

अगर आप अपना फोन सर्विस के लिए दे रहे हैं, उसे बेच रहे हैं या ...


फैक्टरी डेटा रीसेट करें: अगर आप अपना फोन सर्विस के लिए दे रहे हैं, उसे बेच रहे हैं या अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त या नौकर को दे रहे हैं तो सबसे पहले उसे फैक्ट्री रीसेट करें। ज्यादा अच्छा होगा कि हार्डबूट करें। इसके लिए

  1. Settings में जाएं वहां Backup & reset में जाएं। 
  2. यहां आपको Factory data reset का ऑप्शन मिलेगा। उसे टैप करें। 
आपका फोन अब किसी को देने के लिए तैयार है। दूसरी ओर, हार्डबूट के लिए आपको फोन को रिकवरी मोड में ले जाना होगा। इसके लिए सबसे पहले 


  1. फोन को ऑफ करना है और 
  2. वॉल्यूम डाउन और पावर बटन को एक साथ दबाना होता है। 
  3. कुछ देर दबाने के बाद यह रिकवरी मोड में चला जाएगा। 
यहां टच काम नहीं करेगा और आपको पावर और वॉल्यूम बटन का सहारा लेकर डेटा वाइप करना होगा।

किन ऐप्स को क्या दें परमिशन

आजकल डेटा प्राइवेसी बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है और फेसबुक डेटा स्कैम ने इसे और बढ़ा दिया है। ऐसे में ऐप्स को उतना ही ऐक्सेस दें, जितना जरूरी है। यहां 15 ऐसे ऐप्स की लिस्ट दी गई है, जिनका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। साथ ही, उनके लिए जरूरी और गैर-जरूरी परमिशन की जानकारी भी दी गई है।

1. WhatsApp

Permissions On:
1. Camera
2. Contacts
3. Microphone
4. Storage
Permissions Off:
1. Location: जब जरूरत हो तभी लोकेशन ऐक्सेस दें।
2. SMS
3. Phone

2. FaceBook

Permissions On:
1. Camera
2. Storage
Permissions Off:
1. Calendar
2. Contacts: लोग ज्यादातर यहां से कॉलिंग नहीं करते इसलिए जरूरी नहीं है।
3. Location: लोकेशन सार्वजनिक न करें तो बेहतर है।
4. Microphone
5. SMS
6. Phone

3. Paytm

Permissions On:
1. Camera: क्यूआर कोड स्कैनर के लिए देना जरूरी है।
2. Contacts: कॉन्टैक्ट से जल्दी पैसे भेज सकते हैं।
Permissions Off:
1. Calendar
2. Location: लोकेशन देना सही नहीं है।
3. SMS
4. Storage
5. Phone

4. Twitter

Permissions On:
1. Camera
2. Storage
Permissions Off:
1. Calendar
2. Location
3. Microphone
4. SMS
5. Phone

5. SnapChat

Permissions On:
1. Camera
2. Contacts
3. Storage
4. Mike
Permissions Off:
1. Calendar
2. Location: सार्वजनिक प्लैटफॉर्म पर लोकेशन शेयर न करें।
3. SMS
4. Phone

6. Instagram 

Permissions On:
1. Camera
2. Location
3. Microphone
4. Storage
Permissions Off:
1. Contacts: फोटो शेयरिंग के इस ऐप में आप कॉन्टैक्ट ऐक्सेस न दें तो अच्छा है।
2. SMS
3. Phone


7. Tinder

Permissions On:
1. Camera
2. Contacts
3. Location
Permissions Off:
1. Body Sensors
2. Calendar
3. Microphone
4. SMS
5. Storage
6. Telephone

8. TrueCaller

Permissions On:
1. Contacts
2. SMS
Permissions Off:
1. Calendar
2. Camera: कोई काम नहीं है इसमें कैमरे का।
3. Location: लोकेशन ऐक्सेस न दें। इस ऐप में जरूरी नहीं है।
4. Microphone
5. Storage
6. Phone

9. Jio

Permissions On:
1. Contacts
2. SMS
3. Location
PPermissions Off:
1. Camera
2. Microphone
3. Phone
4. Storage

10. Flipkart

Permissions On:
1. Storage: फोन में मेमरी ज्यादा नहीं है तो यह ऐप एसडी कार्ड में सेव हो जाएगा।
Permissions Off:
1. Camera
2. Contacts: ई-कॉमर्स ऐप में कॉन्टैक्ट ऐक्सेस नहीं देना चाहिए।
3. Microphone
4. SMS
5. Location
6. Phone

11. Amazon

Permissions On:
1. Storage: यह ऐप एसडी कार्ड में सेव हो जाएगा।
Permissions Off:
1. Camera
2. Contacts
3. SMS
4. Location
5. Phone


12. Gana/Savan

Permissions On:
1. Storage: स्टोरेज के अलावा दूसरे ऐक्सेस बंद कर दें।
Permissions Off:
1. Camera
2. Contacts
3. Location
4. Microphone
5. SMS
6. Phone

13. Gmail

Permissions On:
1. Calendar
2. Storage
3. Contacts

14. Google Map

Permissions On:
1. Location: सिर्फ लोकेशन ही ऐक्सेस होना चाहिए।
Permissions Off:
1. Camera
2. Contacts
3. Microphone
4. SMS
5. Storage
6. Phone

15. Uber/Ola

1. Location: सिर्फ लोकेशन ऐक्सेस ही दें।
Permissions Off:
1. Camera
2. Contacts
3. Microphone
4. SMS
5. Storage
6. Phone

16. BHIM

Permissions On:
1. Camera
2. Contacts
3. SMS
Permissions Off:
1. Location
2. Microphone
3. Storage
4. Phone

नोट: यहां हमने एंड्रॉयड ऐप्स की परमिशन के बारे में दिया है। आईफोन के ऐप्स में भी कमोबेश इसी तरह का तरीका लागू होगा। वहां कुछ परमिशन कम हो सकती हैं।



(संडे नवभारत टाइम्स से साभार)
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मैं विपक्ष हूँ!!! ......... #FakeNews

EDITORIALCARTOONISTS.COM  Dated 11/18/2016 (ID = 155946)

क्या ये फरमान उस पत्रकार के लिया था जो टीवी पर दंगा भड़काने का काम करता है? नहीं! 

 — अभिसार शर्मा


क्या ये बताने की ज़रुरत है कि देश में फर्ज़ी-न्यूज़ यानी फेक-न्यूज़ का सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ है? क्या ये बताने की ज़रुरत है कि कासगंज में किस दंगाई पत्रकार ने गलत बयानी और झूठ अपने शो में प्रसारित किया था...और उसके झूठ से खुद उसकी संस्था इतनी परेशान हो गई कि उन्हें मामले को संभालने के लिए एक अदद पत्रकार को जमीन पर भेजना पड़ा। मकसद था कि कासगंज के सहारे ऐसा दोहराव पैदा हो, ऐसा ध्रुवीकरण हो कि वोटर खुद हिंदू-मुसलमान के आधार पर बंट जाए। और क्या ये बताने की ज़रुरत है कि इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को होता है? दंगा हो सो हो... तनाव हो सो हो... भाड़ में जाए देश का सुख-चैन। क्या मेरी ये चिंता बेमानी है? बताइए न बिहार में क्या हो रहा है। कैसे नियम-कानून की धज्जियां उड़ा कर यात्राएं निकाली गई, माहौल को भड़काया गया और नतीजा आपके सामने है। वो बिहार जिसमें साम्प्रदायिक दंगे न के बराबर होते थे, वहां मानो दंगों की झड़ी लग गई। और क्या ये कहना गलत होगा कि बीजेपी का प्रौपगैंडा वार... या जंग जो वो इन पत्रकारों और फर्ज़ी भड़काऊ वेबसाईट्स के जरिए करती है, उसका असर सीधा सियासी तौर पर वोट के बंट जाने के तौर पर सामने आता है?

Postcard और 'दैनिक भारत' नाम की दो दंगा भड़काऊ ऐजेंसियां, इन्हें न सिर्फ बीजेपी की बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है, अलबत्ता जब Postcard से जुड़े दंगाबाज विक्रम हेगड़े की गिरफ्तारी हुई, तब न सिर्फ पूरी मोदी भक्त मंडली बल्कि कई बीजेपी नेता औऱ सासंद उसके पक्ष में उतर आए। यहां तक कि बीजेपी के सांसद के पैसे से खड़े हुए चैनल ने तो हेगड़े को पत्रकार तक बता दिया। सूचना और प्रसारण मंत्री फेक न्यूज़ में जो क्रान्ति लाने वाली थीं, जिसे प्रधानमंत्री ने पत्रकारों में आक्रोश देख कर धराशाई कर दिया और स्मृति ईरानी का सपना अधूरा रह गया। पत्रकारों पर लगाम लगाने का यही प्रयास बीजेपी की राजस्थान सरकार ने किया था, वो भी चुनावी साल में। उसमें बड़े अधिकारियों पर रिपोर्ट करने पर कई बंदिशें लगाई जा रही थीं। स्मृतिजी भी यही हरकत चुनावी साल में ही कर रही थीं।


मकसद साफ है कि जो झुका नहीं है उसे बरगलाओ। एक शिकायत के आधार पर आपकी मान्यता (accredition) 15 दिन तक लटक जाए। बाद में एनबीए और प्रेस काउंसिल फैसला करती रहेगी। सवाल ये नहीं कि फैसला तो पत्रकारों की इकाई को करना है, सवाल ये कि आप संदेश क्या देना चाह रहे हैं। सवाल ये कि इन हरकतों से सत्ता के खिलाफ रिपोर्ट करने वाले, कठिन सवाल करने वालों पर इसका क्या असर पड़ेगा। आधार में कमियां बताने वाली रिपोर्ट के पत्रकार के खिलाफ आप एफआईआर दर्ज करवा देते हैं और कुछ ही दिनों में सम्पादक हरीश खरे को इस्तीफा तक देना पड़ता है।

क्या ये बताने की ज़रुरत है कि मौजूदा सरकार में पत्रकार को कैसे-कैसे दबावों से गुज़रना पड़ रहा है। और उसे कैसे कैसे फोन काल्स आते हैं? एक एक शब्द एक एक बोली पर निगाह! अगर ये सब न हो रहा होता तो स्मृतिजी की पहल पर विश्वास किया जा सकता था।

क्या ये फरमान उस पत्रकार के लिया था जो टीवी पर दंगा भड़काने का काम करता है? नहीं!

क्या ये फरमान उन फर्ज़ी दंगा भड़काऊ एजेंसियों के लिए है जो कथित तौर पर बीजेपी और सहयोग संस्थाओं की मदद से चल रही है, जिन्हें उनके नेता खुले आम समर्थन करते हैं? नहीं!

आप TRUEPICTURE. IN नाम की वेबसाईट को ही ले लीजिए। ये वो वेबसाईट है जिसका हवाला अखबारों और टीवी चैनल्स की खबरों को गलत साबित करने के लिए सूचना प्रसारण मंत्री देती रहती है। बड़े बड़े मंत्री मसलन पीयूष गोयल, एमजे अकबर इसका हवाला देते हैं। क्या आप जानते हैं कि जब आप कनाट प्लेस में इसके दफ्तर पहुंचते हैं तो वहां बैठे लोग कहते हैं कि ऐसी कोई वेबसाईट यहां से ऑपरेट नहीं करती। वेबसाईट के मालिक राजेश जैन जिन्होंने 2014 में मोदी के सोशल मीडिया अभियान को संभाला था, वो इस सवाल का जवाब नहीं देते? बड़ी रहस्यमयी है इनकी दुनिया। और इसी रहस्यमयी दुनिया वाले, अब मीडिया पर अंकुश लगाने का काम करेंगे।

मेरा एक सीधा सा सवाल है कि जब आपके हितों को कुछ पत्रकार बाकायदा प्राईम टाईम में प्रसारित कर रहे हैं, जब आपने आपसे सवाल करने वाले पत्रकारों के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं तो आपको ऐसे फरमानों की ज़रुरत क्या है?

मुद्दा नीयत का है। आपकी नीयत साफ नहीं है। आप वो हैं जो सवाल करने पर शिकायत कर देते हैं, आपके जवाब पर मुस्कुराने पर शिकायत कर देते हैं, लिहाज़ा आपके हर कदम पर शक पैदा होता है। इस अविश्वास की खाई को पाटने के गम्भीर प्रयास कीजिए। जो आपके चाटुकार हैं वो आपके सत्ता से बाहर होने के बाद आपका साथ छोड़ देंगे। आप जब विपक्ष में थे... तब पत्रकारिता के मानचित्र पर ये चाटुकार कहां थे? बोलिए?

पत्रकार विपक्ष होता है। और मैं आज भी विपक्ष में हूं और उस वक्त भी विपक्ष में था, जब आप विपक्ष में थे ...और तब भी विपक्ष में ही रहूंगा, जब आप सत्ता से बाहर होंगे।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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अमर उजाला शब्द सम्मान #ShabdSamman | #Shabdankan #Hindi #Award


शब्द होंगे सम्मानित




नई दिल्ली। साहित्य के सम्मान के लिए अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए समाचार पत्र अमर उजाला इस साल से साहित्य अलंकरण अमर उजाला शब्द सम्मान की शुरुआत कर रहा है। इसके तहत सतत रचनात्मकता के लिए हिंदी और एक अन्य भारतीय भाषा में पांच-पांच लाख रुपये के दो सर्वोच्च अलंकरण आकाशदीप दिए जाएंगे। इसके अलावा तीन अन्य तरह के पुरस्कार भी दिए जाएंगे, जिसमें थाप के तहत हिन्दी में किसी भी लेखक की पहली पुस्तक के लिए एक लाख रुपये की सम्मान राशि दी जाएगी। छाप के तहत तीन विधाओं में तीन कृतियों; कविताए, कथा और गैर कथाद्ध के लिए एक-एक लाख रुपये के तीन साहित्य सम्मान दिए जाएंगे। साथ ही भाषा बंधु के तहत भारतीय भाषाओं में वर्ष की सर्वश्रेष्ठ अनूदित कृति के लिए एक लाख रुपये का सम्मान दिया जाएगा। इस तरह अमर उजाला ने कुल मिलाकर 15 लाख रुपये के सात शब्द सम्मान  स्थापित किए हैं।

पुरस्कार पाने के इच्छुक लेखकों को 10 मई 2018 तक नियमों व शर्तों सहित प्रस्ताव पत्र भेजने होंगे। अमर उजाला फाउंडेशन द्वारा गठित निर्णायक मंडल सम्मान देने के लिए कृतियों का चयन करेगा। इससे संबंधित पूरी जानकारी shabdsamman.amarujala.com पर उपलब्ध है, डाउनलोड कीजिये http://bit.ly/AUSS18

साहित्य के लिए अमर उजाला द्वारा की गई इस पहल का पोस्टर जारी करते हुए कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने कहा कि इससे साहित्यकारों को नई ऊर्जा और प्रेरणा मिलेगी तथा नए साहित्यकार भी सामने आएंगे। वरिष्ठ लेखिका नयनतारा सहगल, वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह,  चर्चित लेखिका तस्लीमा नसरीन, रस्किन बांड, रामदरश मिश्र, काशीनाथ सिंह, लीलाधर जगूड़ी, शम्सुर्रहमान फारूकी, सुरजीत पातर, शेखर जोशी, काजी अब्दुल सत्तार आदि ने विभिन्न शहरों में इसके पोस्टर जारी किए।




अनुदेश

  • अमर उजाला शब्द सम्मान-2018 के लिए श्रेष्ठ कृतियों की प्रकाशन अवधि वर्ष 2017 निर्धारित की गई है।
  • सर्वोच्च सम्मान के लिए किसी भी भारतीय रचनाकार के समग्र अवदान को रेखांकित करने वाले विवरण के साथ अनुशंसाएं भेजी जा सकती हैं। 
  • किसी भी सम्मान के लिए कोई आयु सीमा नहीं है
  • पुरस्कार के लिए प्रस्ताव कोई भी भारतीय नागरिक कर सकता है। ये प्रकाशक, किन्हीं मर्मज्ञ या संस्था द्वारा भी भेजे जा सकते हैं। हिंदीतर भाषाओं पर प्रस्तावों के साथ मूल प्रति के साथ-साथ उसका हिंदी या अंग्रेजी में उपलब्ध अनुवाद, पुस्तक का सारांश और लेखन का विस्तृत परिचय अवश्य प्रेषित करें। |
  • प्रस्ताव प्रपत्र http://bit.ly/AUSS18  से भी डाउनलोड किए जा सकते हैं। 
  • यदि किसी वर्ष निर्णायक मंडल की दृष्टि में कोई प्रस्ताव पुरस्कार के योग्य नहीं पाया जाता है तो उस वर्ष पुरस्कार नहीं भी दिया जा सकता है। 
  • हिंदी के अलावा, जो अन्य भाषा पुरस्कृत होती है, वह अगले दो वर्ष के लिए विचारार्थ नहीं ली जाएगी। 
  • एक प्रस्ताव प्रपत्र पर किसी भी एक साहित्यकार के नाम की ही संस्तुति मान्य होगी। निर्धारित तिथि के उपरांत प्राप्त प्रस्तावों पर विचार नहीं किया जाएगा।
  • पहली किताब को छोड़कर (जिसमें प्रथम कृति का घोषणा-पत्र सम्मिलित है), अन्य पुरस्कारों के लिए स्वयं के प्रस्तावित नाम पर विचार नहीं किया जाएगा, न ही दिवंगत साहित्यकार का नाम विचारार्थ लिया जाएगा। 
  • सम्मान या कृति विशेष के संदर्भ में संपर्क, प्रभाव, प्रतिवाद संबंधित प्रस्ताव को स्वतः अमान्य कर सकता है। 
  • निर्णायक मंडल द्वारा केवल नियत तिथि तक प्राप्त प्रस्ताव-प्रपत्रों पर विचार किया जाएगा। निर्णायक चयन के लिए आए प्रस्तावों के अतिरिक्त भी अन्य उपयुक्त प्रस्तावों पर विचार कर सकते हैं। अमर उजाला फाउंडेशन एवं निर्णायक मंडल का निर्णय अंतिम और सर्वमान्य होगा।
  • प्रस्ताव निर्धारित प्रपत्र के साथ नीचे दिए गए पते पर 10 मई, 2018 तक अवश्य पहुंच जाने चाहिए। कवर पर यह स्पष्ट रूप से अंकित करें कि प्रस्ताव किस श्रेणी के लिए है। 
संयोजक,
अमर उजाला शब्द सम्मान,
अमर उजाला फाउंडेशन,
सी-21/22, सेक्टर-59,
नोएडा-201301
शब्दांकन Shabdankan

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आकांक्षा पारे की कहानी 'मणिकर्णिका' #Hindi #Shabdankan


दूर से नीले रंग की बस ऐसे चली आ रही थी जैसे अगर एक्सीलेटर से पैर हटा तो चालान कट जाएगा। सड़क पर खड़े लोग तितर-बितर हो गए। बस ने चीखते हुए ब्रेक लगाया और बस की हालत देख कर इंतजार में खड़े लोग सकते में आ गए। अंदर सवारियों और बकरियों में अंतर करना मुश्किल था। बाहर लोग फेविकोल के विज्ञापन की तरह चिपके हुए थे। — मणिकर्णिका (आकांक्षा पारे)






'स्त्री विमर्श' साहित्य के लिए नुकसान दायक है' जैसा जिसकिसी ने कहा है पिछले दिनों, उसे आकांक्षा पारे की 'मणिकर्णिका' पढ़ा दी जाए!!! 

सुन्दर लेखनी और उससे लगातार नए-नए प्रयोग, हिंदी सहित्य और उसकी कहानी, उसके पाठक, पुराने और नए दोनों सबका खुश होना तय 'कहानी' है यह.

पढ़िए और कैसी लगी, यह बताने से न चूको सिकंदर .

भरत तिवारी

मणिकर्णिका

— आकांक्षा पारे


घूं...घूं की आवाज के साथ पहियों ने धूल उड़ाई। सड़क किनारे खड़ी सारी लड़कियों की आंखें वहां टिक गईं। लड़की ने अपनी आंखें नुकीली कीं और गाड़ी को रफ्तार देने के लिए कलाइयां हैंडल पर टिका कर मोड़ दीं। हेलमेट में से उसकी छोटी आंखें लगभग गुम गई सी लग रही थीं। मोटर साइकिल पूरी रफ्तार के साथ दौड़ी और सामने रखे पटिए पर चढ़ कर एक बड़े गड़्डे को छलांगती हुई उस पार निकल गई। लड़की जब लौटी तो उसने देखा सभी की निगाह में तारीफ के छोटे-छोटे टुकड़े तैर रहे हैं सिवाय उस नई लड़की के जो हाल ही में मुहल्ले में रहने आई है। लड़की ने हेलमेट उतारा और अपनी सहेलियों की ओर देखा। सब दौड़ कर उसके पास चली आईं।

मजा आया?’ लड़की ने गर्व के साथ सहेलियों से पूछा।

मेरी भैन भी ऐसा कर लेती है’ नई लड़की ने तारीफ के गुब्बारे में पिन चुभोने की कोशिश की। लड़की ने उसे घूरा तो उसने जल्दी से आगे जोड़ा, ‘जब उसकी सादी नी हुई थी तब करती थी।

लड़की खिलखिलाकर हंस दी। उसने दोबारा हेलमेट पहना तो उसकी सहेली ने रोक लिया।

घर चलते हैं सोभा, देख तो काम पे जाने का टेम हो गया है

लड़की ने लापरवाही से अपनी बांह छुड़ाई और मोटरसाइकल पर ऐड़ लगा दी। इस बार उसने गाड़ी को तेज रफ्तार में एक पहिए पर बहुत दूर चलाया। फिर उसने अगला पहिया जमीन पर टिकाया और अपने दोनों हाथ छोड़ दिए। उसने एक तरफ पैर करके मैदान के कई चक्कर लगाए। जब वह लौटी तो इस बार नई लड़की का मुंह खुला हुआ था।

तेरी भैन ऐसा कर लेती थी’ लड़की ने उसकी आंखों में आंखें डालीं, ‘सादी से पहले’ और जोर से खिलखिलाकर हंस दी। लड़की अपना सा मुंह लेकर बहुत देर खड़ी रही। उसने मुंह में कुछ शब्द चुभलाए लेकिन बाहर नहीं निकाले। बाकी लड़कियों ने उसके कंधे पर सांत्वना का हाथ रखा और पलकें झपका दीं। लड़की इस समूह में नई थी फिर भी उसने आंखों में तैरते संदेश को तुरंत पकड़ लिया और समझ गई कि सौ बात से भली एक चुप होती है। उसने भले ही कह दिया था कि उसकी बहन भी गाड़ी चलाती है पर यहां के करतब देख कर वह समझ गई थी कि स्कूटी चलाने और हीरो होंडा चलाने में उतना ही फर्क है जितना दाल-भात में घी गिरा कर खाने में और घी के बारे में सोचने में होता है। उसने कई दफे अपनी मालकिन के यहां दाल-भात में घी खाया है इसलिए वह उस स्वाद और स्वाद की कल्पना के अंतर को बखूबी समझ गई।

अभी तो वह बस यह कल्पना करना चाहती थी कि वह भी ऐसी रफ्तार से गाड़ी चला कर सबको चौंका दे। वह यह भी जानती थी कि सांप निकलने के बाद लकीर पीटने के बजाय अवसरों को सामने से पकड़ना चाहिए। पांच मिनट की टुच्ची सी बहस के कारण वह रफ्तार से गाड़ी चलाने के अपने सपने पर पानी नहीं फेर सकती थी। उसने अपने चेहरे पर बाकी लड़कियों के मुकाबले प्रशंसा के अतिरिक्त भाव लाए और अपनी आंखों में कौतूहल के लंबे धागे ले आई। लड़की ने उन धागे के सिरे झूलते छोड़ दिए जिसे करतब वाली लड़की जिसका नाम शोभा था, ने तुरंत थाम लिया। आंखो ही आंखों में एक अनकहा समझौता हो गया। यह संदेश इतनी बारीक तरंगों पर सवार होकर एक-दूसरे तक पहुंचा कि किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी।

चारों लड़कियां मोटरसाइकिल जैसे तैसे लद गईं और चल पड़ीं।


.................

मुहल्ला आने से पहले ही लड़कियां गाड़ी से उतरीं और गलियों में ऐसे समा गईं जैसे हवा। सुबह का सूरज अलसाता हुआ सा पृथ्वी की सीढ़ी चढ़ रहा था। शोभा ने धीरे से गाड़ी को गली के मुंहाने पर रखा और बिना आवाज किए उसे जंजीर से बांध कर पतली गली में गुम हो गई। लड़कियों के आते ही मकान घर में तब्दील हो गए। चूल्हे जल उठे, चाय की भाप उठने लगी, सौंधे छौंक से चौका गमक गया और नारंगी आंच पर रोटियां फूल गईं। हर घर से स्टील की टनटनाहट ऐसे उठी जैसे किसी आरकेस्ट्रा के साजिंदे अपनी मनमानी पर उतर आएं लेकिन फिर भी सुर ताल बेसुरी न हो। डब्बों में रोटियां, सालन कैद हो कर किसी की साइकिल तो किसी के हाथ की थैलियों में समा गए। थोड़ी देर पहले बाइक में किक लगाती, गेयर बदलने की कोशिश करतीं, ताली पीट कर उत्साह से उछलती लड़कियां ने नई काया धर ली। ढीले शलवार-ऊंचे कुरते और बालों के बुल्लों से लड़कियों का कद और ऊंचा हो गया। सुबह का बासीपन काजल खिंची आंखों के आगे दुबक गया। लापरवाह दुपट्टे हवा के संग अठखेलियां खाने लगे। सब एक-दूसरे को देख कर हंसी और जंजीर में बंधी मोटर साइकिल के पास से यूं गुजर गईं जैसे उसे पहचानती ही न हों। लड़कियां गलियों की भूल-भुलैया से निकल कर मेन रोड पर आ गईं। एक बार फिर उनका कायांतरण हो गया। उनकी तनी हुई गर्दन झुक गई, लापरवाह दुपट्टे छातियों पर सरक आए। उनकी चाल से लापरवाही जाती रही और उनके भाव इतने संतुलित हो गए कि किसी की नजर उन पर पड़ती तो वे लड़कियां न होकर चलते-फिरते पुतले की तरह लगतीं। लड़कियां बस के इंतजार में खड़ी हो गईं। इस बस्ती से उस शहर तक का सफर उनके लिए रोज परेशानी लेकर आता है। लेकिन बाप के कर्ज और घर के खर्च के आगे ये परेशानियां उन्हें कुछ भी नहीं लगतीं। कोई फैक्ट्री में काम करती है तो कोई किसी के यहां आया है। सब की अपनी दुनिया और अपनी जिंदगी। सबके अपने सपने और सबकी अपनी सच्चाइयां। धूप चढ़ती जा रही थी। सही वक्त पर काम पर न पहुंचने की घबराहट का पसीना गर्मी के पसीने से ज्यादा तेजी से माथे पर चमकने लगा। शोभा ग्लानि में आ गई। आज उसने नई लड़की को अपना करतब दिखाने के लिए पूरे दस मिनट सभी को देरी करा दी थी। अंदाजा था कि रोज वाली बस निकल गई है। अब अगली बस का इंतजार के सिवाय कुछ नहीं किया जा सकता। और अगर वह सीधी बस न हुई तो सब लोग कम से कम आधा घंटा देर से अपने काम पर पहुंचेंगे। शोभा जानती है शीतल जिसके यहां बच्चे की देखभाल के लिए जाती है वो लोग बहुत सख्त हैं। ठीक साढ़े नौ दोनों मियां-बीबी निकल जाते हैं। यदि पांच मिनट भी ऊपर हुआ तो बच्चे की मां हाय-तौबा मचा देती है। उसे सबसे ज्यादा फिक्र शीतल की ही है। वह ज्यादा बहस भी नहीं कर पाती। शोभा ने बातचीत को फिर सपने पर आकर टिका दिया।

सीतल तेरे को तन्खा कब मिलेगी।

आज मिलेगी। आठ तारीख है न आज

हओ आठ ही है।’ शोभा ने तस्दीक की। ‘मेने इसलिए पूछा कि इस बार पेटरोल के पैसे तेरे को देने हैं

हओ, याद है मेरे को’ शीतल ने इतना कह कर मुंह उधर घुमा लिया जहां से बस आने की संभावना थी।

मेरे को भी देर हो गई है आज’ शोभा ने चिंता जताई। जबकि वह जानती है कि उसकी फैक्ट्री में तीन दिन देर से हाजिरी लगाई जा सकती है। और यदि उसे देरी होती है तो यह उसका पहला दिन ही होगा। वैसे भी वह इन सब लोगों से पहले ही पहुंच जाएगी। जहां बस उतारेगी वहां से उसकी फैक्ट्री मुश्किल से आधा किलोमीटर है। बस अभी भी नहीं आई थी और सूरज सिर पर चढ़ कर नाच रहा था। पसीना लड़कियों के माथे पर सैकड़ों बिंदियों की तरह टिमटिमाने लगा। रूपा ने अपना दुपट्टा सिर पर रख लिया। सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगीं। और थोड़ी देर बस नहीं आई तो सबका गाली खाना तय है। शीतल की आंखों की कोर भीगने लगीं। वह बाकियों से हट कर खड़ी हो गई। शोभा का मन भर गया। शीतल के घर में वही अकेली कमाती है। भाई दिन भर मटरगश्ती करता है, दो छोटी बहनें घर में रहती हैं, मां खाट पर और पिता जेल में है। अगर उसकी नौकरी चली गई तो? इतना सोचते ही शोभा का दिल मुंह तक आ गया। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह शीतल को सांत्वना में कुछ कहे। उसने अपनी हथेलियों को बार-बार रगड़ा। रूपाली थक कर पास की चाय की टपरी की बेंच पर बैठ गई। चाय वाले ने उसे हसरत से भरी नजर से देखा और तुम तो ठहरे परदेसी जोर-जोर से गाने लगा।

चाय वाला बदल-बदल कर गाना गा रहा था और बीच-बीच में रूपाली को कुछ न कुछ कह रहा था। रूपाली निरपेक्ष भाव से बैठी थी और कभी-कभी चायवाले के घूर कर देख लेती थी। नई लड़की निर्मला ने आंखों से इशारा किया जिसका अर्थ था, ‘वहां मत बैठ, यहीं चली आ।’ रूपाली ने निर्मला की अनदेखी की और वहीं टिकी रही। जब रूपाली उसके भद्दे तानों पर भी नहीं उठी तो शोभा ने टपरी की ओर लंबे डग बढ़ा दिए। निर्मला ने शोभा का रास्ता रोक लिया। शोभा ने उसे गुस्से में देखा तो शीतल गुस्से में आई और बोली, ‘सोभा, सुबह से पहले ही बहुत नाटक हो चुका है

नाटक का क्या मतलब है, बस नहीं आई तो मैं क्या करूं’ शोभा ने तमक कर बोला।

मैंने बस का नाम लिया क्या अभी। तू खुद से ही काय को बोल रही है’ शीतल शायद पहली बार किसी बात का प्रतिवाद कर रही थी।

तो तू नाटक क्यों बोल रही है

नाटक नी तो क्या है, जब तय है कि हम लोग छै बजे तक लौट आएंगे तो तूने निर्मला को दिखाने के लिए काय को और गाड़ी चलाई। तभी देर हुई है।

मैं...’ शीतल-शोभा की बहस बढ़ने लगी तो रूपाली खुद ही उठ कर चली आई और जोर से बोली, ‘तू खुद को मेरी काम समझती है क्या कि तूने एक मुक्का मारा और सब हार जाएंगे।’ रूपाली ने गुस्से से शीतल को डपटा।

मैं काय को मेरी काम समझूं, मैंने क्या किया जो तू भी मुझ पर चढ़ रही है

दो घड़ी बैठने भी मत दे। सुबह से पेट में दर्द है। चार दिन पहले महीना आ गया है। पीठ और पैर टूट रहे हैं। पर तेरे को क्या तू अपने आगे किसी को कुछ समझती है क्या।’ रूपाली बिफर गई

अब मैंने क्या किया’ शोभा के हाथ में अचानक काल्पनिक सफेद झंडा आ गया।

तू बमकती हुई क्यों आ रही थी उस तरफ। गाना गा रहा है तो गाने दे। तेरा क्या जाता है। बस आएगी तो चले जाएंगे। रोज कौन सा हम इतनी देर यहां खड़े रहते हैं।

तो क्या ऐसे ही गुंडई सहते रहें?

नहीं मेरी मणिकर्णिका, जा। तू जा और जाके अभी असकी नाक तोड़ दे, फिर पुलिस आएगी हम सब को ले जाएगी, हममें से कोई काम पे नी जाएगा और फिर अपन पुलिस के लफड़े झेलेंगे। अच्छा। खुश। अब जा उसको मार के आ जा।’ रूपाली का चेहरा तमक गया।

बाकी छोड़ ये बता मणिकर्णिका कौन हुई’ निर्मला ने बात हल्की करने के गरज से रूपाली को छेड़ा। रूपाली ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से शीतल को घूरती रही।

तुम सब ऐसे ही रहो। हमेशा दबे से। लड़की होने का अभिशाप भुगतो। कभी खड़े मत हो गुंडों के खिलाफ। तू खुद नहीं बोल सकती कि गाना क्यों गा रहे हो। बड़ी बनती है सिकोरिटी अफसर। मॉल में ऐसे सिकोरिटी करती है, किसी को आंख तक दिखाना नी आती, हुंअ।

शोभा जब कड़वी होती है तो बस होती चली जाती है। उसकी कड़वाहट में शब्द नीम की पत्ती हो जाते हैं। उसके तर्क अंगार। सब मिलाजुलाकर तिलमिलाहट की पूरी रसद। उसके सहित छह बहनों और एक भाई का परिवार है। मां घरों में खाना बनाने का काम करती है और पिता प्लंबर है। वह सबसे बड़ी और उसके पीछे भाई की आस में पांच बहनें। दादी कहती है वह अपनी पीठ पर वह इतनी बहनों को लाद लाई है। जैसे मां-बाप का इसमें कोई योगदान नहीं! भाई की पीठ पर भी एक बहन है पर उसमें भाई की नहीं है!

तू तो ऐसे बोल रही है जैसे कभी माल गई ही न है। मेकअप करके, अपने बायफ्रेंड के साथ हाथ में हाथ डाले जब मैडम लोग आती हैं तो पर्स खोलने में भी ना नुकूर करती हैं। कोई कहती है, हम आतंकवादी है क्या, कोई कहेगी इत्ते से बैग में मैं क्या ले आऊंगी। हर जगह दिखावे की सिकोरिटी है। नीले रंग की वर्दी पहन लेने भर से क्या कोई सिकोरिटी अफसर हो जाता है। माल में आने वाले दो कौड़ी की इज्जत नहीं रखते हमारी। जैसे और चीजें सजावट के लिए होती हैं न बस हम वैसे ही हैं। तेरे को मालूम नी है क्या’ रूपाली ने उसी तरह चिढ़ कर कहा।

इज्जत...’ शोभा आगे कुछ बोलती उससे पहले ही ‘बस आ गई, बस आ गई’ के कोलाहल में उसके शब्द दब गए।

दूर से नीले रंग की बस ऐसे चली आ रही थी जैसे अगर एक्सीलेटर से पैर हटा तो चालान कट जाएगा। सड़क पर खड़े लोग तितर-बितर हो गए। बस ने चीखते हुए ब्रेक लगाया और बस की हालत देख कर इंतजार में खड़े लोग सकते में आ गए। अंदर सवारियों और बकरियों में अंतर करना मुश्किल था। बाहर लोग फेविकोल के विज्ञापन की तरह चिपके हुए थे। लड़कियों ने एक दूसरे का मुंह ताका। आसपास खड़ी सवारियां कुनमुनाईं, ड्राइवर ने बस थोड़ी सी आगे बढ़ा कर जोर से ब्रेक मारा। बस के अंदर से समवेत चीख गूंजी, लटके लोग गरियाए फिर भी जगह नहीं बनी। कुछ सेकंड बस ऐसे ही खड़ी रही तो ड्राइवर ने एक्सीलेटर पर पैर देकर धूल उड़ा दी।

शीतल की रुलाई फूट पड़ी और वह जार-जार रो दी।


.................

टीवी पर रियलिटी शो जैसा कोई कार्यक्रम चल रहा था। गहरे मेकअप में बैठी जज किसी लड़की की कहानी सुन कर अपनी आंखों की कोर पर आने से पहले आंसू रुमाल से पोंछ रही थी। लड़की की बातें सुनकर शोभा ने सोचा इससे ज्यादा तो हम झेलते हैं। पर ऐसे टीवी पर आकर बोल नहीं सकते। शोभा ने अनमने ढंग से स्क्रीन पर देखा और सब्जी काटने में व्यस्त हो गई। एक टेबल पर रखे गैस चूल्हे, मसालों के कुछ डब्बों और चंद बर्तन से वह जगह रसोई होने का भान कराती थी। गैस चूल्हे पर चाय उबल कर काढ़ा हो रही थी। उसने बेमन से चाय छानी और खटिया पर लेटी दादी को पकड़ा दी। वह पलटी और एक चूल्हे पर तवा चढ़ा कर दूसरे बर्नर पर सब्जी बघारने की तैयारी करने लगी।

हर दिन बैगन क्यों बनाती है’ छोटे भाई की आवाज जैसे ही उसके कानों में पड़ी उसका मन किया उसे कस कर एक लात जमा दे।

तू दूसरी सब्जी ला दे, मैं वही बना दूंगी

ज्यादा अपने पैसे की ऐंठ मत दिखाया कर समझी। मुंह तोड़ दूंगा।

शोभा ने पूरी ताकत से भाई के चेहरे पर तमाचा मार दिया। भाई ने तेल की गर्म कढ़ाई में पास रखा पानी डाल दिया। तेल के छींटे शोभा के हाथ और मुंह पर पड़े। जलन से बचने के लिए वह पीछे हुई कि उसने फुर्ती से पतीली में रखा दूध जमीन पर गिराया और बाहर भाग गया। कच्ची सूखी जमीन धीरे-धीरे दूध पीने लगी। हाथ और मुंह से ज्यादा शोभा का दिल जल उठा। उसकी फैक्ट्री मैनेजर ने बताया था, ‘फुलक्रीम दूध से खीर अच्छी बनती है।’ घर में शायद पहली बार एक साथ इतना दूध आया था। शोभा अपनी छोटी बहन खुशी को खीर का तोहफा देना चाहती थी। कल उसका जन्मदिन था। शोभा के आंसू सूखने से पहले जमीन का दूध सूख गया था। जमीन नमी की तृप्ती लिए थोड़े गहरे रंग की हो गई। मलाई के कुछ सफेद कतरे आढ़ी-तिरछी अल्पना की तरह सजे रह गए।

घर में दादी और उसके सिवा बस हवा थी, जो दरवाजे बजा रही थी। फिर भी दादी दरवाजे की तरफ मुंह कर जोर-जोर से गालियां बकने लगीं। फिर शोभा की तरफ मुंह करके उसी को चिल्लाने लगीं कि उस आवारा लड़के के मुंह क्यों लगना। दादी ने भाई को खूब गालियां सुनाईं। उसके दो कारण थे। मां घर पर नहीं थी। मां के सामने उनके लाड़ले को इतनी गालियां बकना आसान नहीं था। दूसरा हफ्ते भर से खीर की संजोई हुई आस अभी-अभी धूमिल हो गई थी। दादी जानती थी, एक लीटर दूध दोबारा तो नहीं आ सकता। शोभा ने टेबल पर सिमटे चौके का काम निबटा कर उसे दोबारा संवार दिया। खीर के सपने का अवशेष भी शेष नहीं था। तभी उसे बाहर से आवाज आई, ‘सोभा

शोभा ने आवाज सुनी तो उसका मन खिल गया। सामने शीतल खड़ी थी सकुचाई सी। पूरे एक हफ्ते बाद शीतल शोभा के घर आई थी। उस दिन के झगड़े के बाद दोनों में अबोला था।

सीतल’ कहते हुए शोभा ने उसके दोनों हाथ कस के पकड़ लिए।

पेसे देने आई थी तेरे को

तेरे को तनखा मिली’ शोभा ने सशंकित हो कर पूछा

हां, उस दिन के पेसे भी नी काटे

काम छूट गया क्या

शीतल ने शोभा के मुंह पर उंगली रख दी। क्योंकि अमूमन पूरे पैसे उसी हालत में मिलते थे जब काम से निकाल दिया जाता था।

काम क्यों छूटेगा। बस उसी दिन नी गई थी, मैडम ने बहुत गुस्सा किया। उनको दफ्तर से छुट्टी करनी पड़ी। फिर जब मैंने बताया कि मोटरसाइकिल सीख रही हूं। इसी कारण उस दिन रोज वाली बस निकल गई। तेरा भी बताया कि तू सिखा रही है तो खुस हो गईं। बोलीं, अच्छे से मन लगा कर सीख लूंगी तो साहब की पुरानी फटफटी दे देंगी।

क्या के रही है तू, सच्ची’ शोभा की आवाज बता रही है कि एक लीटर दूध के अवसाद से वह बाहर आ गई है।

इस बार पेट्रेल की मेरी बारी है तो मेने सोचा तेरेको रात में ही पेसे देती हूं।

तेरे को आपत तो नहीं है न इस महीने

नहीं कोई परेसानी नी है। बस तू रख ले। कल सुबह जल्दी चलेंगे ताकि ज्यादा चक्कर लगा सकें।

पर कल...

कल क्या मुस्किल है

आज आयुस ने दूध गिरा दिया। मेने बताया था न खुसी के जनमदिन पर खीर बनाऊंगी वोई वाला। उससे लड़ाई हो गई है, मेरे को लगता है उसको पता है कि हम रोज सुबह उसकी मोटरसाइकिल चुपके से चलाते हैं, पता नहीं कल कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे।

सुबह उठ तो जाएंगे, नी हो पाएगा तो तैयार होकर जल्दी काम पे चले जाएंगे। अपने मालिक लोग भी खुस हो जाएंगे।

हां सई हे, हिम्मत नी हारनी है। जब तक अपन चारों लड़कों जैसी बाइक चलाना नी सीख जाते चाहे कुछ हो जाए इसे बंद नी करना है।

आश्वस्ति की मुस्कान दोनों के चेहरों पर आई।


.................

शीतल हेलमेट लगाए काली हीरो होंडा पर सवार होकर चली आई थी। गाड़ी स्टैंड पर लगा कर उसने अदा से हेलमेट उतारा जैसे अभी-अभी सुखोई की उड़ान भर कर उतरी हो। पर्स से मोबाइल निकाल कर देखा, कुल पैंतीस मिनट। उसकी मुस्कराहट दो कोनों तक पहुंच गई। रूपाली ने उसे मुस्कराते देखा तो आंखों ही आंखों में पूछा, ‘क्या हुआ’ शीतल ने मोबाइल की स्क्रीन उसके सामने चमका दी। धुंधलके में मोबाइल की रोशनी में रूपाली के दांत चमक उठे।

अपनी गाड़ी के कित्ते मजे हें न’ रूपाली ने थोड़ा लड़ियाते हुए कहा।

शीतल ने हामी भरी। जो दूरी पचपन मिनट या उससे ज्यादा समय में तय होती थी आज पैंतीस मिनट में पूरी हो गई थी। बिना किसी से रगड़ खाए हुए, बिना किसी को बार-बार कहते हुए, ‘भाई साहब ठीक से खड़े रहिए’, बिना कंडक्टर के भद्दे गाने सुने हुए। दोनों चली आईं थी बस हवा की छुअन महसूस करते हुए। शीतल लौटते हुए रूपाली को उसके मॉल से लेती आई थी। रूपाली को इतनी जल्दी थी मोटरसाइकल पर बैठने की कि उसने अपनी यूनिफॉर्म भी नहीं बदली थी। गहरी नीली पैंट और हल्की नीली कमीज को खोंसे वह काले जूतों में टिपटॉप लग रही थी। पांच-दस मिनट जब दोनों ने ‘अपनी गाड़ी के फायदे’ पर एक-दूसरे को निबंध सुना दिया तो चिंता शुरू हुई इस काली घोड़ी को कहां बांधा जाए। घर पर बताया तो गाड़ी के भाई द्वारा हथिया लेने की पूरी संभावना है। ‘तू कहां गाड़ी लेकर जाएगी से लेकर’ ‘तेरे को मोटरसाइकिल क्यों दी’, ‘फ्री में क्यों दी कोई तो बात है,’ ‘तू तो बेवकूफ है जरूर तेरे साहब की बुरी नजर है’ जैसे हजारों सवालों के जवाब वह देते-देते थक जाएगी। पर मां और भाई के सवाल खत्म नहीं होंगे। शोभा की सलाह के बिना कुछ भी करना उसे खतरा लगा। कुछ हो गया तो बाद में शोभा कहेगी, ‘पेले मेरे से पूछा था क्या? वैसे भी वह जितने अच्छे तरीके सुझा सकती है कोई नहीं सुझा सकता। वह कहेगी कि घर में बता दो तो बता दिया जाएगा। वरना इसे कहीं ठिकाने से लगाया जाएगा ताकि रोज सुबह वहीं से मोटरसाइकिल उठा कर काम पर पहुंचे और वापस आकर फिर उसी जगह टिका दिया जाए। बस एक मोटरसाइकिल और मिल जाए तो शोभा और निर्मला भी अपनी गाड़ी पर काम के लिए जा सकते हैं। चारों सहेलियां घर जाने से पहले यहीं बस स्टॉप पर मिलती हैं। फिर थोड़ी सी गप्पे मार कर घर चल देती हैं। यह बस स्टॉप उन लोगों का अपना अड्डा है। दोनों बस स्टॉप पर शोभा के आने का इंतजार करने लगीं। रोज तो चारों पांच-सात मिनट के अंतर पर पहुंच ही जाती हैं। लेकिन आज शीतल और रूपाली दोनों ‘अपनी गाड़ी’ पर जल्दी पहुंच गई थीं।

शाम घिरने लगी तो पास की कलाली पर भीड़ का दबाव बढ़ गया। पकौड़े वाले, भूजा की रेहड़ी, मोमोज वाले, बस के यात्री, सब्जी के ठेले, पापड़ वालों का शोर बढ़ता जा रहा था। दोनों खड़ी-खड़ी उबने लगीं। हर आती हुई बस से उन्हें लगता कि अब शोभा और निर्मला उतरेंगी। दोनों निर्मला की बातें करने लगे। जब नई आई थी तो कैसी बड़ी-बड़ी बातें करती थीं लेकिन अब ऐसे हो गई है जैसे पता नहीं बरसों से जान-पहचान हो। शीतल ने उसे भी अपनी फैक्ट्री में लगवा लिया है। बिना मां-बाप की लड़की है पर कोई दया दिखाए तो खाल उधड़े देती हैं अपनी बातों से। चाचा-चाची के यहां रहती है लेकिन चाची को कभी मौका नहीं देती कि वह उसे एक बात कह सके। उसके बारे में मोहल्ले में प्रसिद्ध है कि उसे कभी किसी ने सोते हुए नहीं देखा। चाची सिलाई करती है और वह जाते हुए चाची के लिए पानी का लोटा तक पास में भर कर जाती है। उसकी मेहनत पर बात करो तो वो हमेशा कहती है, ‘काम सबको प्यारा, चाम किसी को नहीं।’ जब तक बड़ी बहन थी, दोनों दादी के पास रहती थीं। लेकिन बड़ी बहन की शादी हो गई और दादी स्वर्ग चली गई तो वह चाचा के पास चली आई। दोनों अपनी बातों में लगी हुई थीं कि एक बाइक तेजी से आई और पीछे बैठे लड़के ने रूपाली के नितंब पर जोर से हाथ दे मारा। रूपाली चिहुंकी तब तक बाइक तेजी से आगे निकल गई। दोनों ने एक-दूसरे की आंखों में देखा। डर के खरगोश वहां दुबके हुए थे। आंखों से इशारा किया कि निकल चलते हैं। तभी बाइक वाले लड़के फिर पलट कर आ गए। लड़का रूपाली को आगे की तरफ हाथ मारता उससे पहले वह झुक गई। इस बार पता नहीं क्या हुआ रूपाली ने अपनी लंबी टांगे हवा में लहराई और हेलमेट कस लिया। शीतल मजबूती से पिछली सीट पर बैठ गई और बाइक ने रफ्तार पकड़ ली। घूं...की आवाज के साथ बाइक पास गई तो शीतल ने पूरी ताकत से अपना झोला लड़के के मुंह पर दे मारा। झोले में रखे स्टील के टिफिन ने कमाल दिखाया और हेलमेट न होने की वजह से लड़के के मुंह पर जोर से चोट लगी। लड़का लड़खड़ाया लेकिन हिम्मत नहीं छोड़ी। उसने मोटरसाइकिल को एक पैर पर घुमाया और लड़कियों की विपरीत दिशा में मुड़ गया। लड़का जैसे ही मुड़ा उसे समझ आ गया कि उससे गलती हो गई है। नीली-पीली बत्तियों से चमकती सड़क पर सुई रखने की भी जगह नहीं थी। उसने हड़बड़ाहट में गाड़ी खाली मैदान में मोड़ ली जहां हर मंगल को हाट लगा करता था। मैदान से निकलना इतना आसान नहीं था। खाली मैदान में धूल उड़ने लगी, शीतल ने खाली टपरे से एक बांस खींच लिया। रूपाली बाइक पर लड़के का पीछा करने लगी। बाइक पास गई तो शीतल ने कस कर पीछे बैठे लड़के को बांस से मारा। लड़का बाइक को जैसे ही लहराता, रूपाली उसी संतुलन से अपनी बाइक को लहरा देती। बाइक के शोर से भीड़ इकट्ठी हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे अनुराग कश्यप की गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट तीन की शूटिंग चल रही है। कभी झोले तो कभी डंडे से शीतल सही समय पर मार लगा रही थी। रूपाली इतनी कुशलता से बाइक संभाले थी कि दोनों लड़के उनकी हिम्मत देख कर ही आधे पस्त हो गए। भीड़ ने गोल घेरा बना कर एक मजबूत दीवार बना दी थी। इस दीवार के बीच चलती दो मोटरसाइकिलें मौत के कुएं की याद दिला रही थीं। पीछे बैठे लड़के के मुंह से खून निकल रहा था। इस बार रूपाली ने बाइक एक पैर पर घुमाई और सामने वाला पहिया हवा में उठा दिया। घुर्र की आवाज हुई और लड़कों ने बाइक रोक दी। रूपाली ने गाड़ी का अगला पहिया टिकाया और पिछले पहिए पर से गाड़ी 360 डिग्री पर घुमा दी। ठीक इसी वक्त खड़े हुए लड़कों पर शीतल ने बांस की चोट की। लड़के भरभरा कर जमीन पर गिर गए। रूपाली ने बाइक रोकी और सांस लेने लगी। लड़के जमीन पर धूल में पड़े हुए थे। रूपाली ने जैसे ही हेलमेट उतारा उसके बाल बिखर गए। उसके बाल देखते ही भीड़ में चुप्पी छा गई। रूपाली और शीतल ने गहरी सांस ली।

सामने से शोभा और निर्मला चले आ रहे थे। दोनों के चेहरे पर थोड़ा आश्चर्य, थोड़ी खुशी थी। शोभा ने आते ही पूछा, ‘बाइक कहां से आई

तू कब से गलत सवाल पूछने लगी, तू तो ये पूछ हिम्मत कहां से आई’ रूपाली ने शीतल की ओर देखते हुए हंसते-हंसते कहा। दोनों के चेहरे पर पसीने से बाल चिपक गए थे। निर्मला ने रूपाली और शीतल के बालों को पीछे किया और दोनों को गले लगा लिया। रूपाली ने प्यार से निर्मला की ठोड़ी को छुआ और बोली, तू उस दिन पूछ रही थी न मणिकर्णिका कौन थी?

निर्मला ने उस दिन की बात याद कर हां में सिर हिलाया।

झांसी की रानी का नाम था मणिकर्णिका। शादी से पहले का नाम।




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अबकी बार बेदिल सरकार | मंत्रियों के विभाग और मंत्रियों की प्राथमिकता — अभिसार शर्मा #CBSE


बच्चे रो रहे हैं...उनकी मेहनत और प्लानिंग बर्बाद हो गई, मगर ये नाकारा सरकार हमें लोगों को बांटने वाली सियासत के रास्ते पर चलाना चाहती है...अबकी बार बेदिल सरकार...

क्या मोदी सरकार के दिल में बच्चों की फ़िक्र है ?

— अभिसार शर्मा

एक ऐसे दिन जब सीबीएससी का पेपर लीक हो गया हो और जब दसवीं के गणित और बारहवीं के अर्थशास्त्र का पेपर WhatsAPP पर आ गया हो, देश के शिक्षामंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर प्रेस कांफ्रेस करते हैं बंगाल की साम्प्रदायिक हिंसा पर।  बच्चे रो रहे हैं...उनकी मेहनत और प्लानिंग बर्बाद हो गई, मगर ये नाकारा सरकार हमें लोगों को बांटने वाली सियासत के रास्ते पर चलाना चाहती है। गज़ब की प्राथमिकता है इस सरकार की, बच्चों के आंसू भी इनके लिए मायने नहीं रखते।

यही हुआ था उस दिन जब एलओसी पर गोलाबारी में 3 मासूम बच्चे मारे गए थे (पता नहीं आप तक खबर पहुँचने पायी या नहीं) उस दिन भी रक्षा मंत्री सामने आई थीं, मगर प्राथमिकता थी राहुल गांधी पर हमला। देश को सूचना प्रसारण मंत्री भी मिला है...मैडम भी अपनी सारी ऊर्जा राहुल गांधी पर केंन्द्रित रखती हैं।

मगर क्या प्रकाश जावड़ेकरजी की इस संवेदनहीनता को किसी भी सूरत में जायज़ ठहरा सकते हैं? बच्चों के आंसू मायने रखते है आपके लिए? अगर बंगाल के दंगे मायने रखते हैं तो फिर बिहार पर खामोशी क्यों? और बिहार में तो हद ही हो गई है न? वहां पर अबतक चार-चार जिलों में दंगे भड़क चुके हैं? ऐसा पहले तो कभी नही हुआ! बिहार तो दंगों से अछूता था ना? वहां पर तो आपके मंत्री खुले आम अपनी ही सरकार यानि नीतीश सरकार की बखिया उधेड़ रहे हैं। भागलपुर से जो दंगे शुरू हुए, उसकी वजह तो मंत्री श्री अश्विनी चौबे के होनहार बेटे अर्जित थे, जिन्होंने नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए यात्रा कर डाली और नतीजा आपके सामने है .

इसी तरह बंगाल में भी जहां ममता बनर्जी सरकार की नाकामी है, ये भी तो देखिए कि आपके मंत्री कैसे कैसे बयान दे रहे हैं ?

ये हर तरफ दंगें जैसे माहौल आपको बेशक सियासी फायदा पहुंचा दें, मगर आप एक आम भारतीय परिवार के लिए कैसा माहौल कायम कर रहे हैं, बताईये? और उसी परिवार में बच्चे भी आते हैं, क्या उनकी चिंता है आपको? देश में अगर नियमित रूप से दंगे होते रहे, तो पेपर लीक होना तो दूर की बात है, पेपर हो पाएंगे? क्या इसलिए शिक्षा मंत्री होते हुए भी, आप जब देश के सामने आते हैं तो दंगों पर अपना आंशिक दर्द बयान करते हैं लेकिन ये नहीं बताते कि बिहार में आपकी पार्टी के नेता खुलेआम भड़काऊ बयान दे रहे हैं?

क्या यही वजह है कि आप इस कदर उदासीन और बेपरवाह हो गए हैं कि सीबीएससी पेपर लीक आपके लिए दोयम दर्जे की बात हो जाती है?

मेरे बच्चे, मेरा मज़हब हैं, मेरा जुनून हैं। लिहाज़ा मैं उनके बारे में बहुत इमोशनल हूं। यही वजह है कि जब मैं ऐसी सरकार देखता हूं जिसके लिए मेरे बच्चे उसकी प्राथमिकता में दूसरे नम्बर पर हैं, तो मुझे हैरत ही नहीं होती, गुस्सा भी आता है। बोर्ड की परीक्षा आसान बात नहीं जावड़ेकर साहब। आप भी जानते हैं। कम से कम दो जगहों से खबर मिली है, मेरे जानकार हैं। पेपर लीक होने की वजह से उनके बच्चों का रो रो कर बुरा हाल है। सारी की सारी प्लानिंग चौपट हो गई है। भविष्य की रूपरेखा बिगड़ गई है इन बच्चों की। कम से कम आज, देश के सामने आकर, आपको सबसे पहले और सबसे पहले ही नहीं सिर्फ इसी मुद्दे पर, उन बच्चों का हौसला बढाना चाहिए था...मगर अफसोस...इसीलिए दुखी मन से कहना पड़ रहा है: अबकी बार बेदिल सरकार!


(ये लेखक की फेसबुक वाल से लिए गए यह लेखक के अपने विचार हैं ))
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मुकेश पोपली की कविताएं



सुनो राजा: एक

सुनो राजा
तुम ही थे
जो उछल-उछल कर
पहुंच जाते थे
सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर
चिढ़ाते थे सबको यह कहकर
तुम सब हार गए
मैं जीत गया
मैं राजा तुम प्रजा

तुम बेवकूफ़ थे
तुम निष्ठुर थे
तुम दानव थे
तुम जानते ही नहीं थे
एक राजा की गरिमा
इंसानी फितरत
विजेता होने का अर्थ
तुमने हिटलर को पढ़ा
गांधी को नहीं
तुमको विदेशी पसंद
स्वदेशी नहीं

तुम फस चुके हो
शीशे की इमारतों के बीच
अब जिस दिन
हवा लेगी तूफान का रूप
चकनाचूर हो जाएंगे
सारे घमंडी शीशे
वो सबसे ऊपर वाली सीढ़ी
गिर पड़ेगी नीचे
धड़ाम से।

मुकेश पोपली की कविताएं 

सुनो राजा: दो

सुनो राजा
तुम अभी बच्चे हो
अक्ल के कच्चे हो
तुम भटका रहे हो
सयानों को
उजाड़ रहे हो
गरीबखानों को
पाल रहे हो
धनवानों को
डरते हो सच कहने वालों से
बहा रहे हो झूठ के
दरिया में इंसानों को
तुम्हारी जिद तुम्हें
घायल करेगी एक दिन
जैसे रोशनी हरा देती है
हैवानों को
सत्ता की भूख में
अपनों को खो चुके
अपने घर में बसाते हो
अनजानों को
तुम कुछ करने के
काबिल नहीं रहे अब
तुम हटा चुके हो गलियारों से
रोशनदानों को।



महाभारत

इतिहास गवाह है
युद्ध हुए हैं सारे
जर जोरू और
जमीन के लिए
महाभारत नाम बहुत पुराना है
सदियों से यह धारावाहिक
जारी है अभी भी निरंतर
   किसान की ज़मीन
   नई द्रौपदी के रूप में
   मुख्य पात्र है
सत्ताधारी हुए हैं भ्रष्टाचारी 
और विपक्ष है खामोश
दोनों ही खलनायक बने हैं
   और एक गरीब किसान
   जिस पर है जमीन बेचने का दबाव
   अपना किरदार
    बखूबी निभाने की
कोशिश कर रहा है।



जायदाद

हम लड़ रहे हैं
वो अड़ रहे हैं
हम भूखे सो रहे हैं
वो तृप्त हो रहे हैं
हम उजड़ रहे हैं
वो उजाड़ रहे हैं
हम रो रहे हैं
वो छीनकर हंस रहे हैं
हम विरोध कर रहे हैं
वो खुशी मना रहे हैं।

यह कैसा लोकतंत्र है
जहां मुट्ठी भर
ताकतवर लोग
जमा रहे हैं अपनी धौंस
निरंकुशता के चाबुक के साथ
लाखों लोगों पर
और वंचित कर रहे हैं हमें
हमारी पुश्तैनी जायदाद से
अपनी आने वाली नस्लों को
जायदाद देने के लिए। 



ज़मीर

जब
नहीं मिलती ज़मीन
बेच डालते हैं
ज़मीर अपना
किसी और के हक का
टुकड़ा हासिल करने के लिए

फेंकते हैं
धन के कागज़ उसके सामने
ज़मीन के कागज पर
अंगूठा लगवाने के लिए

एक हाथ लो हमारा ज़मीर
दूसरे हाथ दो अपनी ज़मीन।


मुकेश पोपली
भारतीय स्टेट बैंक में राजभाषा अधिकारी
जन्म :  11 मार्च 1959, बीकानेर
एम कॉम, एम ए (हिंदी), जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातकोत्तर।
आकाशवाणी बीकानेर से रचनाओं का प्रसारण; कहीं जरा सा…(कहानी संग्रह) (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर), विभिन्न समाचार-पत्रों और साहित्यिक पत्रिकाओं में और ऑनलाइन पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित; भारतीय स्टेट बैंक की गृह पत्रिकाओं का संपादन और रचनात्मक सहयोग, भारतीय रिज़र्व बैंक एवं अन्य बैंकों से बैंकिंग विषयों पर आलेख पुरस्कृत

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