मासूम कहानियाँ जिनमें इंसानियत अपने रोज़मर्रा के रूप में नज़र आती रहती है, उन्हें पढ़ना न सिर्फ एक मुस्कान दिए रहता है साथ ही स्फूर्ति भी देता है.…
हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये हो पिता का फ़र्ज़ निभाने। अरे कॉलेज जा पहुंचे हैं बच्चे तुम्हारे। …
तारीखी तस्वीर — मुकेश भारद्वाज आमार शोनार बांग्ला, आमि तोमाए भालोबाशी. (मेरा सोने जैसा बंगाल / मैं तुमसे प्यार करता हूं) ...रवी…
प्रताप सोमवंशी की ग़ज़ल Pratap Somvanshi Ki Ghazal उलझ रहा हूं, सुलझ रहा हूं, उजड़ रहा हूं, संवर रहा हूं जितना खुद में डू…
Photo (c) Krishna Sobti कृष्णा सोबतीजी की "मार्फ़त दिल्ली" पढ़ रहा हूँ. मैं, साहित्य आदतन तोड़ा धीरे-धीरे ही पढ़ता हूँ. और तब तो …
लोग आपके खाने मे शौच मिला रहे हैं — अभिसार शर्मा अभिसार शर्मा अपने फेसबुक से पर्दाफाश करते हैं: मानो सामूहिक सम्मोहन किया गया हो. आज स…