रवींद्र कालिया की कहानियों से मैं चमत्कृत था; उनकी भाषा, उनका यथार्थ के प्रति सुलूक, उनकी मध्यवर्गीय भावुकताविहीनता, उनका खिलंदड़ा अंदाज, इन …
अधिकतर ऐसा ही हुआ : कोई कालिया जी से मिला और उनका होकर ही रुखसत हुआ । उनका अत्यंत महत्वपूर्ण लेखक होना, आकर्षक अनोखा व्यक्तित्व, उनका वातावरण …
बैल बाजार भाव, साहित्य, समाज और अनुज की कहानी "खूँटा" मेरे एक जानकार ने कहा हिंदी की साहित्यिक कहानी मुझसे नहीं पढ़ी जाती... मैं…
रवीन्द्र कालिया पर लिखा ममता कालिया का संस्मरण रवि कथा — भाग २ भाग १ पढ़ें 30 जनवरी सन् 1965 को जिस रवींद्र कालिया से चंड…
रवीन्द्र कालिया पर लिखा ममता कालिया का संस्मरण रवि कथा — भाग १ इन दिनों वक्त मेरे लिए गड्डमड्ड हो रहा है। एक साथ मैं तीन स…
Lively and generous Ravindra Kalia — Mridula Garg "सांप कब सोते हैं?" कालिया बेहद संजीदगी से कहते , ''मृदुला गर्ग से…