वर्तमान साहित्य साहित्य, कला और सोच की पत्रिका वर्ष 31 अंक 12 दिसम्बर, 2014 सलाहकार संपादक: रवीन्द्र कालिया संपादक: विभूति नारायण राय …
कबिरा हम सबकी कहैं बिना सांस्कृतिक सफाई के भौतिक सफाई संभव नहीं है विभूति नारायण राय दुनिया भर की बेहतरीन शाक सब्जियां, फल और अन्न उत्…
वर्तमान साहित्य दिसंबर, 2014 मेरे मन में अनेक विचार उठ-गिर रहे हैं - भारत भारद्वाज ‘जा चुके थे जो बहुत दूर, …
भारत भी पाकिस्तान की तरह एक धर्माधारित राज्य अथवा हिन्दू राष्ट्र बन गया होता तो आज उसकी शक्ल क्या होती? उसमें रहने वाले शूद्रों, पिछड़ों या स्त्रिय…
'वर्तमान साहित्य' अगस्त–सितम्बर, 2014 दुर्लभ साहित्य विशेषांक विज्ञान और युग — जवाहरलाल नेहरू हिंदू संस्कृति — डा. राममनोहर लोहिया…
संवाद आलोचना के जोखिम नामवर सिंह से कवि केदारनाथ सिंह की बातचीत Risks of Criticism Namvar Singh in Conversation with Poet Kedarnath S…
8 अक्टूबर को दिल्ली में 'वर्तमान साहित्य' के संपादक और पूर्व कुलपति अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा , पूर्व महा-निदेशक उ०प्र० प…
हमारे कवि क्या कर रहे हैं? क्या यह भयानक समय अब भी उन्हें डराता है? या फिर वे आने वाले अच्छे दिनों में अपना …
वर्तमान साहित्य "अगस्त-सितम्बर 2014" सलाहकार संपादक: रवीन्द्र कालिया | संपादक: विभूति नारायण राय | कार्यकारी संपादक: भारत भारद्…
क्या -क्या है हंस सितम्बर 2014 संपादकीय - एक दुर्घटना के सामाजिक पहलू : संजय सहाय अपना मोर्चा कहानियाँ डेरिक की तीर्थयात्रा : अर्…
फारवर्ड प्रेस जुलाई 2014 1. लोकसभा चुनावों का प्रेमकुमार मणि द्वारा बहुजन दृष्टिकोण से मूल्यांकन 2. मुस्लिम राजनीति पर अतिफ रब्बानी का लेख…
इधर बहुत तेज़ी से हर वर्ग में मुनाफे का खेल पनपा है, उसने सबसे ज्यादा हमारी संवेदनाओं को नुकसान पहुंचाया है। आज हर वस्तु की कीमत है। मनुष्य भी वस्तु…
जनवादी लेखक संघ की केन्द्रीय पत्रिका "नया पथ" जनवरी-मार्च 2014 शब्दांकन के पाठकों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध है. जिसका अनुक्रम न…
युवा से युवतर होते रचनाकारों के उपन्यास का आकार भी छोटा होता जा रहा है जबकि इसके विपरीत कहानियों का औसत आकार बढ़ रहा है । कहानी का आकार क्यों बढ़ रह…