किस्सागोई का अनोखा वितान ('गाँव भीतर गाँव ' सत्यनारायण पटेल) मनीषा जैन 'गाँव भीतर गाँव' सत्यनारायण पटेल के पहले उपन्यास…
आत्महत्या और ज़िंदा लोग आशिमा हम ये सब बेशर्म आंखों से बर्दाश्त किये जा रहे हैं, और एक दिन जब इन्हीं में से किसी के आत्महत्या करने की खबर आत…
कम से कम एक दरवाज़ा सुधा अरोड़ा ( समाज में जो बदलाव हमें दिखाई दे रहे हैं, वे बहुत ऊपरी हैं. कहीं आज भी हम स्त्रियों को उनका अपेक्षित सम्मान…
इस फिल्म के नायक हैं कथाकार शिवमूर्ति - कमल पांडेय कैमरे की आंख से देखते हैं शिवमूर्ति ('मंच' जनवरी-मार्च 2011 से) मध…
मैं राम की बहुरिया राजेन्द्र राव सुखदेव प्रसाद अपनी मारुति-८०० में पहुंचे। पार्किंग में खड़ी करने लगे तो कुछ अकिंचन होने का एहसास…
अपमान – अपराध – प्रार्थना - चुप्पी... रानियों के पास सारे सच थे पर जुबां बंद। पलकें भीगीं। सांसें भारी। मन बेदम। रानियों की कहानी किसी दिन एक…