30 कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह "गुलमोहर" सान्निध्य : लीलाधर मंडलोई, वरिष्ठ कवि सुमन केशरी, वरिष्ठ कवयित्री लक्…
सूफ़ी संत सचिन - रवीश सुबह से ही सचिन ऐसे खेल रहे थे जैसे वे गुज़िश्ता चौबीस साल के एक एक लम्हे को फिर से जी लेना चाहते हों । जैसे विदाई के वक…
घूरना - आँचल ऋचा आज बहुत जल्दी में थी... घर से निकलने में ही उसे देर हो गयी थी और ऊपर से सुबह-सुबह मेट्रो की भीड़ लेडीज कोच तक पहुँचने में २…
अवसान एक युग पुरुष का अशोक मिश्र सुबह की पौ फूटते ही जैसे ही मोबाइल फोन को उठाया वैसे ही स्क्रीन पर कई मिस्ड काल और इनबाक्स में मैसेज दिखे। पह…
1857 गुलज़ार एक ख़्याल था...इन्क़लाब का इक जज़बा था सन अठारह सौ सत्तावन!! एक घुटन थी, दर्द था वो, अंगारा था, जो फूटा था डेढ़ सौ साल हुए…
राजेन्द्र यादव और नामवर सिंह Rajendra Yadav and Namvar Singh
कल रात्रि एक बहुत ही सजीव स्वप्न देखा। स्वप्न के दो छोर थे। एक तरफ शब्द था, दूसरी तरफ भी शब्द ही था। दूर कहीं रेगिस्तान के बीचोबीच दौड़ती, हांफती,…
अपर्णा प्रवीन कुमार... पांच सालों तक हिंदुस्तान टाइम्स जयपुर लाइव के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता। . साथ ही कुछ कवितायेँ और लेख अहा ज़िन्दगी और दैनिक भ…