मैं नीचे चल के रहता हूं.... जनाज़ा गुलज़ार मैं नीचे चल के रहता हूं ज़मीं के पास ही रहने दो मुझ को मुझे घर से उठाने में बड़ी आसानी होगी …
वो रात अनामिका चक्रवर्ती हाँ कड़कड़ाती ठंड की वो भयानक रात जब भी याद आती है तो रूह तक कांप जाती है। जब, सब अपने घरो में रजाई की गर्मी में सुक…
कृष्ण बिहारी जी और उनकी कहनियों के बारे में आपने सुना होगा, बेमिसाल कथाकार हैं कृष्ण जी ... उन्होंने अपनी कहानी "करगिल के साथ-साथ", मुझे…
भोर की प्रतीक्षा -पद्मा मिश्रा आज प्लेटफार्म पर कुछ ज्यादा ही भीड़ थी, शायद कोई रैली जा रही थी ..पटना, लोग दल के दल उमड़े चले आ रहे थे, हाथों म…
यथार्थवाद और नवजागरण : व्यक्ति की महानता की त्रसद परिणति-कथा - अमिताभ राय चंद्रधर शर्मा गुलेरी के अनुसार उनके समकालीन दो प्रकार की र…
विमलेश त्रिपाठी की कविताएं तीसरा एक कवि ने लिखा 'क' से कविता दूसरे ने लिखा 'क' से कहानी तीसरा चुप था बाकी दो के लि…
ज़ख्म - डॉ. रश्मि कैसा है यह द्वंद्व, समझ ही नहीं पा रही हूँ........... एक तरफ ‘तुम’ हो.....तो दूसरी तरफ है ‘वो’। प्रेम के ये दोनों सिरे मुझ…
अब जो प्रस्तुत है उसका आधार है जैसा मैने जाना के अलावा जैसा राजेन्द्र जी ने जहां तहां लिखा और उसे जैसा मैने पढ़ा। – अर्चना वर्मा आत्मकथ्य सिर्फ अप…