शब्द-चित्र - सौरभ पाण्डेय गाँव चर्चा : सात परिदृश्य १. मरे हुए कुएँ.. उकड़ूँ पड़े ढेंकुल.. करौन्दे की बेतरतीब झाड़ियाँ.. बाँस के निर्बीज को…
अपुष्ट तुष्टीकरण और बकवास संजय सहाय अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण एक ऐसा संवेदनशील मिथक है जिसपर अधिकांश बहुसंख्यक असहज रूप से भावुक हो उठत…
क्या -क्या है हंस जून 2014 संपादकीय - अपुष्ट तुष्टीकरण और बकवास: संजय सहाय ( शब्दांकन के पाठक सम्पादकीय यहाँ पढ़ सकते हैं ) अपना मोर्चा …
ईमानदार लोगों के साथ यही दिक़्क़त है, सच का बुरा मान जाते हैं। कम ईमानदार लोगों की यही सिफ़्त है, ज़िन्दादिल होते हैं, मज़ाक का बुरा नहीं मानते। …
अच्छे दिन आ गए हैं सत्ता बदल गई है आवाजें भी, चेहरे भी शब्दनाद भी, शंखनाद भी सत्ता के गलियारे में नए दमकते चेहरों की आमद हुई है हर सत्ता क…