प्यार, अभिलाषा, जुनून, ज़मीन, रोमांच, प्रकृति जयश्री रॉय की कहानी 'इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया...' इन सब को जोड़ती-तोड़ती और मरोड़ती कहा…
सियासी धुंधलके को हटाना ‘पायजामें में नाड़ा डालने’ जैसा नहीं हैं। न ही बापू की तरह बैठ कर चरखा चलाने सरीखा बल्कि कंजूस की गांठ से पैसा निकालने-…
कोई फिल्म या कहानी एक रचनात्मक प्रक्रिया से गढ़ी जाती है, पर उसका एक संदर्भ-बिंदु जरूर होता है. इसी में अनेक तत्वों को मिलाकर कथानक बनता है. तो, …
दादी का बागीचा समृद्ध था। केला, पपीता, नींबू और आँवले के पेड़ थे। नींबू खूब फलता। चोरी होने के भय से नींबू काँटों की बाड़ से घिरे थे। भोजन के वक्…
देवदत्त पटनायक की वर्तिका का बल पांडित्य बघारने पर केंद्रित नहीं — मृणाल पाण्डे गैर-राजनीतिक इरादे से देसी परंपरा को हिंदी में सम…
मैंने चपरासी से कहकर अपने और उसके लिए चाय मंगवाई। चाय पीने के बहाने वह सामने बैठ गया वर्ना मैं तो उससे लेख लेकर उसे तुरंत विदा करने वाला थ…