कविता—दोहे—ग़ज़ल—ओ—नज़्म, पक्की है युवा कवि गौरव त्रिपाठी के कलम की सियाही अलमारी कभी गौर से देखा है? घर की अलमारी…
योजना आयोग की पूर्व सदस्या सईदा हामिद की दो नज़्में आसिफा भेड़ें चराते -चराते कहाँ खो गई किस जंगल में जा बस गई मेरी बेटी तुमपे मन्…
वो जला रहे हैं ये गुलिस्तां — भरत तिवारी वो जला रहे हैं ये गुलिस्तां हो बुझाने वालों तुम कहाँ यहाँ आग घर तक पहुँच रही ज…
खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो? गुलज़ार खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो? एक ख़ामोश-सा जवाब तो है। डाक से आया है तो कुछ कहा होगा "कोई …
हाल की घटनाओं पर जाने-माने ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव की नई नज़्म ये टोपी और तिलक-धारी ~ आलोक श्रीवास्तव टोपी, कुर्ता, छोटा जामा हर रोज…
मुईन अहसान 'जज़्बी' ~ असग़र वजाहत की यादें मुईन अहसान 'जज़्बी' उर्दू के मशहूर आधुनिक शायरों में थे. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद…
जगजीत एक बोछार था वो ... गुलज़ार एक बोछार था वो शख्स, …
वो भूली दास्तां ... एक रात हुआ कुछ ऐसा - कि मेरे बिस्तर पर लेटते ही और नींद के आने से पहले, एक नज़्म उतर आई, मेरी इन बंद आँखों में। पहले कुछ …