बिल्लियो मूंछें झुकाओ! — अशोक चक्रधर चौं रे चम्पू! सराबबंदी ते कोई असर परौ? हर पाबंदी, …
उन कुंठाहीन हिंदी-कर्मी द्विभाषी या त्रिभाषी बालकों और युवाओं का अभिनंदन करता हूं जो हिंदी के सारथी हैं — अशोक चक्रधर हिंदी-सेवी या हिंदी-कर…
...आपका घोड़ा ऐंड़ता हुआ पड़ौसी के खेत में चराई करने लगे तब तो दूसरे की आज़ादी का हनन हो जाएगा। अपने घोड़े को अस्तबल में बांधकर नहीं रखा तो पड़ौसी आप…
अर्धसजीव धरती की अरदास —अशोक चक्रधर चौं रे चम्पू! धरम एक अफ़ीम ऐ, जे बात कौन्नैं कही? कही तो मार्क्स ने थी, लेकिन बात…
मामला हार-जीत का है ही नहीं। स्त्री द्वारा पुरुष के सामने अपने अस्तित्व की रक्षा करने का है — अशोक चक्रधर — चौं रे चम्पू! औरत सनी द…
मौन की राष्ट्रभाषा —अशोक चक्रधर मीडिया शाश्वत सजीव पेटू है, जिसे चौबीस घंटे भोजन चाहिए — चौं रे चम्पू! हरियाना और जेएनयू पै इत…