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छोड़ आये हम वो गलियाँ — ममता कालिया
शार्टकट कवितइ — कविता का कुलीनतंत्र (5) — उमाशंकर सिंह परमार
जैज़ की रात
अगर कोई तुम्हें बादल देता है / तो मैं बारिश दूँगा — प्रकाश के रे द्वारा अनुदित कवितायेँ
रामचरितमानस में नपुंसक — देवदत्त पट्टनायक | अनुवाद: भरत तिवारी
कई बार देखना, संजू —अशोक चक्रधर | #Sanju @ChakradharAshok @duttsanjay @RajkumarHirani
न्याय काल का सवाल नहीं अधिकार और हक है — कविता का कुलीनतंत्र (4) — उमाशंकर सिंह परमार
पुरस्कार सब कुछ नहीं होते — कविता का कुलीनतंत्र (3) — उमाशंकर सिंह परमार
गलत
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