संस्कृति और कलाओं से संबंधित राष्ट्रीय संस्थाओं में की जा रही दख़लन्दाज़ी के विरुद्ध क्षोभ वर्तमान केन्द्रीय सरकार जिस तरह से संस्कृति और कला…
एक-एक रोआँ कहानी ' युद्ध और बुद्ध' पढ़ते समय खड़ा रहा... और ख़त्म होने तक बरौनियाँ तर । मधु कांकरिया ने कश्मीर-आतंकवाद के मानवीय हिस्…
अनदेखी की आग - भरत तिवारी जनसत्ता 'दुनिया मेरे आगे' 1 मई 2015 में प्रकाशित लेख । लिंक ... न सिर्फ आग पहले से जल रही थी ब…
वर्तमान साहित्य साहित्य, कला और सोच की पत्रिका 'वर्तमान साहित्य' मई, 2015 - आवरण व अनुक्रमणिका आवरण के छायाकार दिलीप कुमार शर…
सुंदर सिर्फ बगीचा नहीं, संसार भी होना चाहिए प्रेम भरद्वाज आओ कि आत्महत्या करें! लाश वह चीज है जो संघर्ष के बाद बच रहती है उसमें सहे…
कविताएँ दीप्ति श्री वर्तमान से भविष्य को देखती दीप्ति श्री की पांच कवितायेँ... दरभंगा, बिहार की दीप्ति श्री वर्तमान में 'काशी हि…
भर्तृहरि कैलाश वाजपेयी चिड़ियाँ बूढ़ी नहीं होतीं कैलाश वाजपेयी अपनी कविता 'भर्तृहरि' का पाठ करते हुए 18 अगस्त 2013, इंडिया इ…